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जानिए क्यों ओबीसी और पिछड़ों को BJP दे रही तवज्जो, लोकसभा चुनाव में यूपी और बिहार पर मोदी- शाह की विशेष नजर

BySumit ZaaDav

फरवरी 9, 2024
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देश में लोकसभा चुनाव को लेकर अब महज दो से 3 महीने बचे हुए हैं। ऐसे में देश की तमाम राजनीतिक पार्टी अपनी चुनावी रणनीति को अब अंतिम रूप देने में जुटी हुई है। ऐसे में भाजपा ने नीतीश कुमार को अपने साथ लाकर ओबिसी और पिछड़ों के बीच अपनी पकड़ को और अधिक मजबूत कर ली है। जिसका फायदा उसे बिहार और यूपी में देखने को मिल सकता है। एक सर्वे के अनुसार बीजेपी की इस तरकीब से उत्तर प्रदेश के 80 में से 72 सीटों पर भाजपा चुनाव जीत रही है तो बिहार के 40 सीटों में से 35 पर भाजपा अपना कब्जा जमा सकती है।

यदि हम उत्तर प्रदेश में लोकसभा सीट की बात करें तो इस प्रदेश में कुल 80 लोकसभा सीट हैं। जो देश में सबसे अधिक है। उसके बाद बंगाल और फिर बिहार का नंबर आता है बिहार की बात करें तो यहां 40 लोकसभा सीट है जिसमें पिछली बार भी भाजपा का वर्चस्व रहा है।

ऐसे में उत्तर प्रदेश और बिहार में पिछड़ों और अति पिछड़ों की संख्या सबसे अधिक है। लिहाजा भाजपा यह बात अच्छी तरह समझती है कि यदि इन दोनों राज्यों में पिछड़ा वोट बैंक को अपने साथ कर लिया जाए तो वापस से केंद्र की सत्ता में काबिज होने के लिए अधिक कठिनाई नहीं उठानी पड़ेगी। ऐसे में भाजपा ने बिहार में लालू और उत्तर प्रदेश में अखिलेश फैक्टर को काटने के लिए मध्य प्रदेश में मोहन यादव को मुख्यमंत्री फेस बनाया और उसके कुछ दिन बाद नीतीश कुमार के दरवाजे को खोल दिया गया और उनकी वापसी हो गई। इतना ही नहीं कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न देने का भी ऐलान कर दिया। साथ ही साथ राम मंदिर का मुद्दे से भी सुलझा लिया गया जिससे भाजपा को काफी हद तक फायदा पहुंच सकती है।

वहीं, छत्तीसगढ़ में विष्णु देव को सीएम बनने से भाजपा ने अति पिछड़ा वोट बैंक के जरिए झारखंड और देश के अन्य राज्यों को साधने की कोशिश की है। इससे पहले भी भाजपा इसी समाज से आने वाली एक महिला को राष्ट्रपति बना कर इस वोट बैंक को साथ चुकी है। ऐसे में अब भाजपा ने अति पिछड़ा समाज से आने वाले नेता को मुख्यमंत्री बनकर इस समाज पर अपना गहरा असर डालने की कोशिश की है।

इसके अलावा बात करेंगे यदि मुस्लिम वोट बैंक की तो भाजपा इस बार मुस्लिम वोट बैंक को अपने साथ लाने के लिए अधिक प्रयास तो नहीं कर रही है लेकिन छोटे-छोटे प्रदेशों में अल्पसंख्यक चेतना रैली जैसे कार्यक्रम कारण किए जाने की बातें कही जा रही है।हालांकि भाजपा या बात अच्छी तरह से जानती है कि अल्पसंख्यक समाज का जो वोट बैंक उसके पास है उसमें कोई बड़ा बढ़ोतरी नहीं होने वाला है और ना ही कोई बड़ा नुकसान होने वाला है। ऐसे में भाजपा इस वोट बैंक को लेकर अधिक रणनीति बनाते हुए नजर नहीं आ रही है।

उधर सवर्ण समुदाय की बात करें तो सवर्ण समुदाय का वोट बैंक पहले से ही भाजपा के साथ रहा है क्योंकि इस समुदाय को बुद्धिजीवियों में गिना जाता है और भाजपा विशेष रूप से इस समाज को तवज्जो देते रही है। भाजपा के संगठन में बड़े-बड़े और ऊंचे ऊंचे पदों पर इस समाज के नेता काबिज है। ऐसे में भाजपा ने बिहार में में इसी समाज से आने वाले नेता को डिप्टी सीएम बनाकर एक खुशखबरी तो दी ही है और सवर्ण को अच्छे पदों पर बैठाकर भाजपा इस वोट पर अपना कब्जा जमाए हुए हैं।

बहरहाल, अब देखना यह है कि भाजपा ने जो यह चुनावी रणनीति अपनाई है उसका लोकसभा चुनाव में फायदा होता है या फिर विपक्षियों के तरफ से जो इंडी गठबंधन तैयार किया गया है वह इस रणनीति का काट तैयार कर लेती है और लोकसभा चुनाव में भाजपा को करारा झटका दे देती है।


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