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खूंखार डाकुओं द्वारा निर्मित और संरक्षित:- भवाल माता मंदिर

हिंदू देवी-देवताओं से जुड़ी भारत में अनेक किवदंतियां है। देश में ऐसे कई मंदिर है, जिनके रहस्य लोगों को हैरान कर देते है। आज हम उस मंदिर के बारे में बात कर रहे है जिसकी रक्षा डाकुओं ने की थी। इतना ही नहीं डाकुओं ने ही मंदिर का भव्य निर्माण कराया था। हम बात कर रहे है भंवाला माता मंदिर की।

 

 

नागौर जिले में मेड़ता से लगभग 20-22 कि.मी. दक्षिण में स्थित एक गाँव है, भवाल। यहाँ लगभग 700 वर्ष पूर्व निर्मित महाकाली का एक प्राचीन मन्दिर है। इस मन्दिर के शिलालेख से पता चलता है कि विक्रम संवत् 1380 की माघ बदी एकादशी को इस मन्दिर का निर्माण हुआ था। महाकाली भवाल माता के नाम पर ही इस कस्बे का नाम भवाल पड़ा। लोगो की परम्परा के अनुसार इस देवी को मंदिरा का भोग चढ़ाया जाता है। लोकविश्वास के अनुसार यह देवी जिस भक्त पर प्रसन्न होती है उसी का भोग ग्रहण करती है।

 

 

 

पौराणिक कथाओं के अनुसार असुरों के अत्याचारों से व्यधित होकर त्रिदेव ब्रह्मा, विष्णु, महेश और अन्य देवी देवताओं ने माता पार्वती को दो रूप प्रदान किये। एक वात्सल्य की प्रतिमूर्ति अम्बा और दूसरी पाप का नाश करने वाली रुद्राणी। सौभाग्य से देवी के दोनों रूपों का प्रत्यक्ष दर्शन भवाल ग्राम के इस मंदिर में देखने को मिलता है।

 

 

 

इस मंदिर के गर्भगृह में देवी माता की दो मूर्तिया विराजमान है। दाईं ओर ब्रह्माणी माता और बाएं और काली माता की मूर्ति स्थापित है। ब्रह्माणी माता को मीठे प्रसाद का भोग लगाया जाता है, जबकि काली काता को शराब का भोग लगाया जाता है। इस मंदिर में लाखों भक्तों का तांता लगा रहता है। भक्त अपनी मन्नत पूरी होने के बाद भी मंदिर में दोबारा माथा टेकने के लिए आते हैं।

 

 

 

नागौर जिले के भंवाल ग्राम में स्थित भंवाल माता मंदिर की कहानी थोड़ी अलग है। दूसरे देवी मंदिरों की तरह यहां माता को सिर्फ लड्डू, पेड़े या बर्फी का नहीं, शराब का भोग भी लगता है। वह भी ढाई प्याला शराब। सुनने में यह थोड़ा अजीब जरूर लगता है, लेकिन यह सच है। यह भोग मगर हर भक्त नहीं चढ़ा सकता। इसके लिए भक्तों को भी आस्था की कसौटी पर परखा जाता है। यदि माता को प्रसाद चढ़ाने आए श्रद्धालुओं के पास बीड़ी, सिगरेट, जर्दा, तंबाकू और चमड़े का बेल्ट, चमड़े का पर्स आदि होता है तो भक्त का प्रसाद माँ द्वारा ग्रहण नहीं किया जाता है।

 

 

 

मंदिर में स्थापित काली माता को प्रत्येक भक्त द्वारा लगी गई मदिरा में से ढाई प्याला शराब का भोग लगाया जाता है। लेकिन हर किसी भक्त का भोग माता द्वारा ग्रहण नहीं किया जाता। ऐसी मान्यता है कि माता को जिस भक्त की मन्नत पूरी करनी होती है, सिर्फ उसी का भोग माता ग्रहण करती हैं। मदिरा के भोग के दौरान मंदिर के पुजारी अपनी आंखें बंद कर देवी माता से प्रसाद ग्रहण करने का आग्रह करते है। पलक झपकते ही प्याले से मदिरा अपने आप गायब हो जाती है। चांदी के प्याले को भरकर 3 बार मदिरा का भोग लगाया जाता है। बताया जाता है कि जब तीसरी बार माता को भोग लगाया जाता है तो प्याला आधा भरा हुआ बच जाता है।

 

 

 

मंदिर प्राचीन हिन्दू स्थापत्य कला के अनुसार तराशे गए पत्थरों को आपस में जोड़ कर बनाया गया था। सीमेंट जैसे तत्वों का उपयोग नहीं किया गया था। मंदिर के चारों और देवी-देवताओं की सुन्दर प्रतिमाएं व कारीगरी की गई है। मंदिर के ऊपरी भाग में गुप्त कक्ष बनाया गया था, जिसे गुफा भी कहा जाता है। इसके द्वार को बंद करने के लिए भारी पत्थर का उपयोग होता था।

 

 

 

बताया जाता है कि तकरीबन 700 साल पुराने इस मंदिर को किसी धर्मात्मा या सज्जन ने नहीं, बल्कि डाकुओं ने बनवाया था। स्थानीय बड़े-बुजुर्गों के मुताबिक यहां एक कहानी प्रचलित है कि इस स्थान पर डाकुओं के एक दल को राजा की फौज ने घेर लिया था। मृत्यु को निकट देख उन्होंने मां को याद किया। मां ने अपने प्रताप से डाकुओं को भेड़-बकरी के झुंड में बदल दिया। इस प्रकार डाकुओं के प्राण बच गए। इसके बाद उन्होंने यहां इस मंदिर का निर्माण करवाया।

 

 

 

माता इतनी चमत्कारी है कि वह अपने प्रत्येक भक्त की मनोकामना पूर्ण करती है। इस का प्रत्यक्ष दर्शन किसी भी दिन किसी भी समय मंदिर में जाकर अनुभव कर सकते हैं। रुद्राणी को शराब चढ़ाने वालों की पंक्ति लगी रहती है। श्रद्धालु कहते हैं कि वे मां से कोई मन्नत मांगते हैं तो वे उसे जरूर पूरा करती हैं। मन्नत के अनुसार जब उन्हें मंदिरा चढ़ाई जाती है तो इसका भी एक नियम है। श्रद्धालु ने जितनी प्रसाद चढ़ाने की मन्नत मांगी है, माँ को उतने ही मूल्य का प्रसाद चढ़ाना होता है। न कम और न अधिक।

 

भवाल माता बैंगानी, झांबड, तोडरवाल (ओसवाल, जैन), राजपूत, गुर्जरगौड़ ब्राह्मण आदि समुदायों की कुलदेवी हैं। भवाल, जसनगर-रियांबङी मार्ग पर स्थित है। निकट का रेलवे स्टेशन मेड़ता रोड हैं। मेड़ता रोड से मेड़ता सिटी जाना होता है और मेड़ता सिटी से जैतारण जाने वाली बस के द्वारा बीच में आने वाले शहर जसनगर उतरना पड़ता है। जसनगर से ऑटो या बस के द्वारा आप भुवाल या भवाल माता मंदिर के लिए जा सकते है।


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Satyavrat Singh

I am satyavrat Singh news reporter of vob from Munger Bihar.

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