राजनीति में लालू यादव का दौर खत्म हुआ? खुद को दांव पर लगाया लेकिन नकार दिये गये
देश के दो राज्यों में विधानसभा चुनाव के साथ साथ बिहार की चार सीटों पर उप चुनाव के रिजल्ट आज आ गये. चुनाव परिणाम के अलग अलग मायने निकाले जा रहे हैं. लेकिन इसका एक तार लालू यादव से भी जुड़ा है. इस चुनाव में लालू प्रसाद यादव ने भी खुद को दांव पर लगाया था, लेकिन परिणाम उल्टा हो गया. लालू प्रसाद यादव कोई चमत्कार नहीं कर पाये.
लालू यादव ने खुद को दांव पर कैसे लगाया?
पहले ये समझिये कि लालू प्रसाद यादव ने खुद को कैसे दांव पर लगाया. दरअसल, बिहार में पिछले तीन चुनाव में लालू प्रसाद यादव चुनावी परिदृश्य से बाहर रहे. 2019 में लोकसभा चुनाव हुए थे. लालू प्रसाद यादव ने उसमें प्रचार नहीं किया. 2020 में बिहार में विधानसभा चुनाव हुए, लालू प्रसाद यादव चुनाव प्रचार में नहीं थे.
इसी साल यानि 2024 में कुछ महीने पहले लोकसभा चुनाव हुए थे. लालू प्रसाद यादव अपनी पार्टी के उम्मीदवारों को टिकट तो बांट रहे थे लेकिन उनकी भूमिका वहीं तक सीमित थे. 2024 के लोकसभा चुनाव में लालू यादव ने खुद को अपनी दोनों बेटियां मीसा भारती और रोहिणी आचार्या के चुनावी मैनेजमेंट में लगाये रखा. मीसा के लिए पाटलिपुत्रा और रोहिणी के लिए सारण लोकसभा क्षेत्र में लालू यादव ने सियासी बिसात बिछायी. वे लोगों से मिले, फोन पर मैनेज किया. लेकिन दोनों बेटियों के लिए भी कोई चुनावी जनसभा नहीं की.
सालों बाद चुनावी सभा के लिए निकले लालू
लेकिन 2024 के नवंबर में लालू प्रसाद यादव चुनावी सभा के लिए बाहर निकले. झारखंड के कोडरमा सीट से उनके बेहद करीबी सुभाष यादव चुनाव लड़ रहे थे. ईडी और दूसरी एजेंसियों द्वारा बालू माफिया करार दिये गये सुभाष यादव जेल में बंद हैं. लालू प्रसाद यादव अपने रथ में सवार होकर पटना से कोडरमा पहुंच गये. वहां बकायदा जनसभा की. लेकिन झारखंड में इंडिया गठबंधन की लहर चलने के बावजूद सुभाष यादव चुनाव हार गये. यानि लालू की जनसभा का कोई असर नहीं हुआ.
बिहार में भी मिली असफलता
लालू प्रसाद यादव सिर्फ झारखंड के कोडरमा में ही प्रचार करने नहीं गये. बल्कि उन्होंने बिहार में हो रहे उप चुनाव में भी जनसभा की. लालू यादव को ये पता था कि 30 साल से राजद के गढ़ रहे बेलागंज सीट पर इस उप चुनाव में आरजेडी की स्थिति बेहद खराब है. आरजेडी का एमवाई समीकरण दरक गया है. लिहाजा लालू प्रसाद यादव ने बेलागंज पहुंच कर खुद जनसभा की. अपने भाषण में वे बार-बार कहते रहे कि हमलोगों को एकजुट रहना है. वे यादव और मुस्लिम वोटरों को मैसेज दे रहे थे.
लेकिन, बेलागंज में हुए उप चुनाव का रिजल्ट बता रहा है कि लालू का जलवा शायद खत्म हो गया है. 2020 में इस विधानसभा सीट पर हुए चुनाव में आरजेडी के सुरेंद्र यादव ने करीब 24 हजार वोट से जीत हासिल की थी. सुरेंद्र यादव के सांसद बन जाने के बाद हुए उप चुनाव में आरजेडी ने उनके बेटे विश्वनाथ सिंह को कैंडिडेट बनाया था. उनका हाल बेहद बुरा हुआ.
बेलागंज में जेडीयू की उम्मीदवार मनोरमा देवी ने 21 हजार से ज्यादा वोटों से आरजेडी के विश्वनाथ सिंह को हरा दिया. 2020 के विधानसभा चुनाव और इस उप चुनाव के रिजल्ट को जोड़ें तो आरजेडी के खाते से करीब 45 हजार वोट निकल गये. आंकड़े बता रहे हैं कि आरजेडी के न सिर्फ मुसलमान बल्कि यादव वोटरों में भी जबरदस्त सेंधमारी हो गयी. तभी जेडीयू को इतनी बड़ी जीत हासिल हुई.
ऐसे में लालू यादव पर सवाल उठ रहे हैं. 1990 से लेकर अब तक बिहार की राजनीति लालू प्रसाद यादव के इर्द गिर्द ही घूमती रही है. लालू विपक्ष में रहकर भी चुनाव में सबसे बड़ा मुद्दा होते थे. लेकिन अब उनके आधार वोटर भी खिसक रहे हैं. तब सवाल उठेगा ही क्या बिहार की राजनीति से लालू यादव का दौर हमेशा के लिए खत्म हो गया है.
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