आज यम दिवाली है अर्थात छोटी दिवाली और कल दीपावली. अमीर हो या गरीब सभी जात और धर्म के लोग इस पर्व को धूमधाम से मनाते हैं, क्योंकि यह कारोबार का पर्व है। कहते हैं माता लक्ष्मी दिवाली के दिन सब पर अपनी कृपा बरसाती है।
शहर से लेकर गांव तक सभी लोग अपने-अपने घरों को सजा रहे हैं. लेकिन हमको और आपको यह भूलना नहीं चाहिए की दिवाली दीपक का पर्व है. वही दीपक जिसे कुम्हार समाज के लोग मेहनत से बनाते हैं. आधुनिकीकरण के इस दौर में लोग मिट्टी के दीपक जलाने के बदले बिजली के बल्ब जलने लगे हैं. इसमें कोई दो राय नहीं की बिजली बल्ब दीप से अधिक सस्ता होता है और दिखने में भी अच्छा लगता है. लेकिन आपको यह भी ध्यान रखना चाहिए की मिट्टी के दीए जलाने से मां लक्ष्मी खुश होती है और भक्तों को मनचाहा वरदान देती है।
दिवाली पर मिट्टी के दीये जलाने के पीछे कई मान्यताएं हैं:
ज्योतिष शास्त्र के मुताबिक, मंगल ग्रह को मिट्टी और भूमि का कारक माना जाता है. वहीं, सरसों के तेल का संबंध शनि ग्रह से है. इसलिए, मिट्टी और सरसों के तेल का दीपक जलाने से मंगल और शनि ग्रह दोनों मजबूत होते हैं।
शास्त्रों के अनुसार, मिट्टी के दीपक जलाने से मानसिक और शारीरिक तनाव दूर होता है. माहौल में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है. इससे जीवन में सुख-समृद्धि आती है।
दीपक से निकलने वाली गर्म, चमकदार चमक को शुभ माना जाता है. यह ज्ञान, समृद्धि, ज्ञान और बुद्धिमत्ता का प्रतिनिधित्व करती है।
भारतीय दर्शन में दीपक जलाना दीपदान और देव पूजा का एक अंग होता है।
दिवाली के दिन शुद्ध देसी घी और सरसों के तेल के दीपक जलाए जाते हैं. इनके जलाने से पर्यावरण शुद्ध होता है।
धनतेरस पर दक्षिण दिशा की ओर मुंह करके 13 दीये जलाने की परंपरा है. ऐसा माना जाता है कि पहला दीया परिवार को असामयिक मृत्यु से बचाता है।
दिवाली की रात को मंदिर के सामने एक दीपक जलाया जाता है. माना जाता है कि इससे घर में सौभाग्य आता है।