अयोध्या नाम सुनते ही आपके मन में प्रभु श्री राम का चिंतन आरंभ हो जाता होगा। आप सब अयोध्या को भगवान राम की जन्मस्थली के रूप में तो जानते ही हैं। लेकिन क्या आपको पता है त्रेतायुग से पहले यह भगवान विष्णु की तपोस्थली भी रह चुकी है। त्रेतायुग में भगवन राम ने अयोध्या धाम में जन्म लिया था और रामायण के अनुसार उन्होंने रावण का संहार करने के बाद यहां 11 हजार वर्षों तक राज किया था। उसके बाद वह अपने बैकुंठ धाम पधारे थे।
यह रामकथा तो आप सभी जानते हैं पर क्या आपको पता है कि भगवान राम के जन्म लेने से पहले सतयुग में साक्षात विष्णु भगवान ने अयोध्या को अपनी तपोस्थली के रूप में चुना था। अयोध्या में वो जगह कहां पर है और क्यों भगवान विष्णु ने वर्षों तक किया था अयोध्या में तप, आइए जानते हैं इस जगह के पौराणिक महत्व के बारे में।
सतयुग में भगवान विष्णु जब आए थे अयोध्या
स्कंद पुराण के अनुसार एक बार देवताओं और दानवों में भयंकर युद्ध हो रहा था। दानवों ने संसार में हाहाकार मचा दिया था। तब देवता भगवान विष्णु के पास सहायता लेने के लिए पहुंचे। भगवान विष्णु ने देवताओं से कहा कि आप चिंता न करें। मैं असुरों के प्रकोप को कम करने के लिए आपकी मदद करुंगा। इतना कहते ही भगवान विष्णु अंतर्ध्यान हो गए और गुप्त रूप से अयोध्या नगरी के गुप्तहरी तीर्थ में आकर वर्षों तक तपस्या करने लगे। उनके तप से जो तेज प्रकट हुआ वह उन्होंने देवताओं को प्रदान किया और उस तेज से असुरों का संहार हुआ।
कहते हैं पृथ्वी का बैकुंठ
गोप्रतार समं तीर्थं न भूतो न भविष्यति।
अर्थ- गुप्तहरि तीर्थ के समान न कोई तीर्थ था और न ही भविष्य में होगा।
भगवान विष्णु के गुप्त रूप से तपस्या करने के कारण इस स्थान का नाम गुप्तहरि तीर्थ पड़ा। वर्तमान समय में इसी को गुप्तार घाट कहते हैं। त्रेतायुग में भगवान राम यहीं से अपने बैकुंठ लोक प्रधारे थे। शास्त्रों के अनुसार भगवान विष्णु को अयोध्या नगरी बहुत प्रिय है और यह उनकी पहली पुरी भी मानी जाती है। अयोध्या के गुप्तार घाट को भगवान विष्णु का निवास स्थान भी कहा गया हैं। इस बात का विस्तार पूर्वक वर्णन स्कंद पुराण के वैष्णव खंड के अयोध्या महात्म में मिलता है।
भगवान विष्णु का अति प्राचीन मंदिर ( गुप्तहरि मंदिर)
गुप्तार घाट में स्नान-दान एवं दर्शन करने से जन्म-जन्मांतर के पाप से प्राणी मुक्त हो जाता है। घाट पर जो एक बार सरयू जल में स्नान कर लेता है फिर उसे यमलोक की यातना नहीं सहनी पड़ती है और अंत में उसे बैकुंठ लोक प्राप्त होता है। जिस जगह पर भगवान विष्णु ने तप्सया की थी वहां गुप्तहरी नाम से प्रसिद्ध वर्षों पुराना एक मंदिर है। मंदिर के अंदर अत्यंत दुर्लभ शालिग्राम भगवान विराजमान हैं। वहां आपको गुप्तहरि भगवान के भी दर्शन होंगे। मंदिर राम जन्मभूमि से मात्र 6-7 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। जो भक्त अयोध्या दर्शन के लिए आते हैं वह गुप्तार घाट अवश्य आते हैं। यह एक मात्र ऐसा भगवान विष्णु जी का मंदिर है जहां आने मात्र से हरि कृपा प्राप्त हो जाती है।