BiharPatna

भारत के प्रमुख शक्तिपीठों में से एक मां ताराचंडी मंदिर, यहां मनोकामना पूर्ण होने पर अखंड दीप जलाते हैं श्रद्धालु

बिहार में रोहतास जिले के सासाराम स्थित मां ताराचंडी के मंदिर में पूजा करने वाले श्रद्धालुओं की हर मनोकामना पूरी होती है। सासाराम से महज पांच किलोमीटर की दूरी पर कैमूर पहाड़ी की गुफा में मां ताराचंडी का मंदिर है। इस मंदिर के आस-पास पहाड़, झरने एवं अन्य जल स्रोत हैं। यह मंदिर भारत के प्रमुख शक्तिपीठों में से एक है। मनोकामनाएं पूरी होने की लालसा में दूर-दूर से भक्त यहां आते हैं। वैसे तो यहां सालो भर भक्तों का आना लगा रहता है, लेकिन नवरात्र मे यहां पूजा-अर्चना का विशेष महत्व है।

कहा जाता है कि यहां आने वालों की हर मनोकामना माता रानी पूरी करती हैं, इसलिए लोग इसे मनोकामना सिद्धी देवी भी कहते हैं। मान्यता है कि इस स्थल पर माता सती की दाहिनी आंख गिरी थी। पौराणिक मान्यता के अनुसार, भगवान शंकर जब अपनी पत्नी सती के मृत शरीर को लेकर तीनों लोकों में घूम रहे थे तब संपूर्ण सृष्टि भयाकूल हो गई थीं तभी देवताओं के अनुरोध पर भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र से सती के शरीर को खंडित किया था। जहां-जहां सती के शरीर का खंड गिरा उसे शक्तिपीठ माना गया। सासाराम का ताराचंडी मंदिर भी उन्हीं शक्तिपीठों में से एक है। मंदिर की प्राचीनता के बारे में कोई लिखित साक्ष्य उपलब्ध नहीं है लेकिन मंदिर के शिलालेख से स्पष्ट होता है कि 11वीं सदी में भी यह देश के विख्यात शक्ति स्थलों में से एक था।

कहा जाता है कि महर्षि विश्वामित्र ने इस पीठ का नाम तारा रखा था। यहीं पर परशुराम ने सहस्त्रबाहु को पराजित कर मां तारा की उपासना की थी। इस शक्तिपीठ में मां ताराचंडी बालिका के रूप में प्रकट हुई थीं और यहीं पर चंड का वध कर चंडी कहलाई थीं। इस धाम पर वर्ष में तीन बार मेला लगता है, जहां हजारों श्रद्धालु मां का दर्शन पूजन कर मन्नते मांगते हैं। यहां मनोकामना पूर्ण होने पर अखंड दीप जलाया जाता है। मंदिर के गर्भगृह के निकट संवत 1229 का खरवार वंश के राजा प्रताप धवल देव की ब्राह्मी लिपि में उत्कीर्ण शिलालेख भी है, जो मंदिर की ख्याति एवं प्राचीनता को दर्शाता है। सावन में यहां एक महीने का भव्य मेला भी लगता है।

श्रावणी पूर्णिमा के दिन स्थानीय लोग देवी को शहर की कुलदेवी मानकर चुनरी के साथ काफी संख्या में प्रसाद चढ़ाने धाम पर पहुंचते हैं। हाथी-घोड़ा एवं बैंडबाजे के साथ शोभायात्रा भी निकाली जाती है। शारदीय नवरात्र में लगभग दो लाख श्रद्धालु मां का दर्शन-पूजन करने पहुंचते हैं। नवरात्र मे मां के आठवें रूप की पूजा होती है। मां ताराचंडी धाम में शारदीय एवं चैत्र नवरात्र में अखंड दीप जलाने की परम्परा बन गई है। पहले दो-चार अखंड दीप जलते थे लेकिन अब कुछ सालों से इसकी संख्या हजारों में पहुंच गई है। शारदीय नवरात्र और चैत्र नवरात्र में ताराचंडी धाम पर अखंड दीप जलाने के लिए दूसरे प्रदेशों से भी लोग पहुंचते है।


Discover more from Voice Of Bihar

Subscribe to get the latest posts sent to your email.

Discover more from Voice Of Bihar

Subscribe now to keep reading and get access to the full archive.

Continue reading

मत्स्य पालन और जलीय कृषि में ड्रोन प्रौद्योगिकी के अनुप्रयोग और प्रदर्शन पर कार्यशाला आयोजित बिहार में बाढ़ राहत के लिए भारतीय वायु सेना ने संभाली कमान बिहार के बाढ़ग्रस्त क्षेत्रों का हवाई सर्वेक्षण करने रवाना हुए सीएम नीतीश पति की तारीफ सुन हसी नही रोक पाई पत्नी भागलपुर में खुला पटना का फैमस चिका लिट्टी