केंद्र सरकार ने गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट में कहा कि यदि वैवाहिक दुष्कर्म को अपराध की श्रेणी में लाया जाता है, तो यह न सिर्फ वैवाहिक संबंधों को बुरी तरह से प्रभावित करेगा बल्कि विवाह संस्था में भी गंभीर गड़बड़ी पैदा होगी।
सरकार ने कहा कि यह कानूनी से कहीं अधिक सामाजिक मुद्दा है। केंद्र सरकार ने याचिकाओं का विरोध करते हुए अपने हलफनामे में ये बातें रखीं। सुप्रीम कोर्ट में दाखिल याचिकाओं में आईपीसी की धारा 375 (दुष्कर्म) के अपवाद 2 और नए कानून बीएनएस की धारा 63 (दुष्कर्म) के अपवाद 2 को चुनौती दी गई है। याचिकाओं में नए और पुराने कानूनों के उस प्रावधान को रद्द करने की मांग की गई है, जिसमें पत्नी की सहमति बिना यौन संबंध बनाने को दुष्कर्म के अपराध की श्रेणी से बाहर रखा गया है। केंद्र ने कहा, यदि वैवाहिक दुष्कर्म को अपराध की श्रेणी में लाया जाता है, तो सामाजिक और पारिवारिक ढांचे में दुरुपयोग भी हो सकता है। ऐसा इसलिए होगा कि किसी व्यक्ति के लिए यह साबित करना मुश्किल और चुनौतीपूर्ण हो जाएगा कि यौन संबंध के लिए पत्नी की सहमति थी या नहीं।
सहमति से संबंध को रेप नहीं माना जा सकता
प्रयागराज। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में रेप और जबरन वसूली के आरोपी के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही रद्द कर दी है। अदालत ने कहा कि 12 साल से अधिक समय तक सहमति से चलने वाले संबंध को केवल शादी करने के वादे के उल्लंघन के आधार पर रेप नहीं माना जा सकता। न्यायमूर्ति अनीश कुमार गुप्ता ने यह निर्णय श्रेय गुप्ता की याचिका पर दिया है। कार्यवाही 21 मार्च 2018 को दर्ज प्राथमिकी से उत्पन्न हुई थी।