बिहार की सियासत में जाति के जाल में लगभग सभी राजनीतिक पार्टियाँ फंस जाती है। यहाँ जाति की राजनीति सभी मुद्दों पर भारी पड़ जाती है। यही वजह है की जातीय समीकरण को ध्यान में रखकर खासकर बिहार में राजनीतिक पार्टियाँ अपने उम्मीदवार उतारती है।
लोकसभा चुनाव में भी इस समीकरण का बेहद ख्याल रखा गया था। अब केंद्र में एनडीए की सरकार बन गयी है। लेकिन चुनाव की बात करें तो एनडीए में शामिल भाजपा ने जहाँ जातीय समीकरण को ध्यान में रखते हुए 5 राजपूतों को टिकट दिया था।
वहीं जदयू ने एक राजपूत उम्मीदवार लवली आनंद को मैदान में उतारा था। इसी तर्ज पर लोक जनशक्ति पार्टी( रा) ने भी जातीय समीकरण को ध्यान में रखते हुए वैशाली से राजपूत प्रत्याशी वीणा देवी को उम्मीदवार बनाया था। इनमें भारतीय जनता पार्टी से 3 उम्मीदवार, जदयू से एक और लोजपा(रा) से एक राजपूत उम्मीवार ने जीत दर्ज करायी। इस तरह एनडीए के पांच राजपूत प्रत्याशियों ने लोकसभा चुनाव में जीत दर्ज कराई। लेकिन नरेन्द्र मोदी के शपथ ग्रहण समारोह में राजपूतों को बिहार में दरकिनार कर दिया गया। जिसका खामियाजा एनडीए को बिहार विधानसभा चुनाव में भुगतना पड़ सकता है।
हालांकि बिहार में आगामी विधानसभा चुनाव को देखते हुए केंद्र की मोदी सरकार में जातीय समीकरण का ख्याल रखा गया है। बिहार से दो भूमिहार को मंत्री बनाया गया। निषाद समाज को एकजुट करने के लिए पहले बिहार में हरि सहनी को मंत्री बनाया गया। वहीँ आज निषाद समाज के राजभूषण निषाद को भी केंद्र की मोदी सरकार में जगह दी गयी है। यादव समाज से नित्यानंद राय को जगह दी गयी है। वहीँ जीतनराम मांझी को मंत्रिमंडल में जगह दी गयी है।
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