मोदी सरकार ने जातीय जनगणना का जवाब तलाशा: पिछड़ी जातियों के आरक्षण को लेकर बड़ा फैसला ले सकती है केंद्र सरकार

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बीजेपी के खिलाफ बने विपक्षी दलों का गठबंधन INDIA नरेंद्र मोदी को मात देने के लिए जातीय जनगणना का दांव खेल रहा है. मकसद साफ है पिछ़ड़ी जातियों को बीजेपी के खिलाफ खड़ा करना. बिहार में जातिगत जनगणना का सियासी मकसद यही है. बिहार में जातीय जनगणना लगभग पूरा हो चुका है और अब विपक्षी दलों का गठबंधन पूरे देश में जातीय जनगणना कराने की मांग कर रहा है. विपक्षी पार्टियों की रणनीति को समझ रही नरेंद्र मोदी सरकार ने इसका काट ढ़ूंढ़ लिया है. सूत्र बता रहे हैं कि केंद्र सरकार पिछड़ी जातियों को मिल रहे आरक्षण को लेकर बड़ा फैसला कर सकती है।

दो भागों में बंटेगा पिछड़ी जातियों का आरक्षण

जानकार सूत्र बता रहे हैं कि नरेंद्र मोदी सरकार 18 से 22 सितंबर तक बुलाए गए संसद के विशेष सत्र में जस्टिस रोहिणी कमेटी की रिपोर्ट को पेश कर सकती है. भाजपा सूत्र बता रहे हैं कि संसद के पांच दिनों के विशेष सत्र में महिला आरक्षण, समान नागरिक संहिता, वन नेशन वन इलेक्शन पर चर्चा के साथ साथ जस्टिस रोहिणी कमेटी की रिपोर्ट को पेश करेगी. बता दें कि जस्टिस रोहिणी कमेटी का गठन पिछ़ड़ों को मिल रहे आरक्षण में सब कैटगराइजेशन के लिए किया गया था. इस कमेटी ने इस जुलाई में ही राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु को अपनी रिपोर्ट सौंप दी थी।

भाजपा नेताओं का एक बड़ा वर्ग मान रहा है कि जस्टिस रोहिणी कमेटी की रिपोर्ट पेश होने के बाद ओबीसी वोट बैंक की राजनीति कर रहे विपक्षी पार्टियों की बोलती बंद हो जायेगी. इस कमेटी की रिपोर्ट को लागू कर बीजेपी पिछ़ड़ों के एक बड़े वर्ग को अपने साथ कर सकती है. पिछ़ड़ों का एक बड़ा वर्ग कुछ दबंग जातियों के कारण आरक्षण का लाभ नहीं उठा पा रहा है. वह बीजेपी के साथ आ सकता है।

क्या है रोहिणी कमेटी?

दरअसल केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने अक्टूबर 2017 में जस्टिस रोहिणी कमेटी का गठन किया था. इस कमेटी को टास्क दिया गया था कि वह पता लगाये कि क्या ओबीसी कोटे के आरक्षण का लाभ सारी पिछड़ी जातियों को समान रूप से मिल रहा है? अगर सभी पिछड़े तबके को आरक्षण का लाभ नहीं मिल रहा है तो ओबीसी के अंदर 27 फीसदी आरक्षण बंटवारे का तरीका, आधार और मानदंड तय करना और ओबीसी की जातियों का उपवर्गों में बांटने के लिए पहचान करना।

खास जातियां ही उठा रही हैं आरक्षण का लाभ

दरअसल ये आम धारणा रही है कि पिछ़डी जातियों को मिल रहे आरक्षण का लाभ कुछ खास जातियों के लोग ही उठा रहे हैं. पिछ़ड़ी जातियों के भीतर जिनकी तादाद कम है या फिर जो ज्यादा पिछ़ड़े हैं उन्हें आरक्षण का लाभ नहीं मिल पा रहा है. इस असामनता को दूर करने के लिए ही पिछ़डों के आरक्षण को दो भागों में बांटने की कवायद की जा रही है. केंद्र सरकार पिछ़ड़ी जातियों को अति पिछड़ा और पिछड़ा दो वर्ग में बांट कर उनके लिए अलग अलग आरक्षण की व्यवस्था कर सकती है. बता दें कि बिहार में आरक्षण की ऐसी व्यवस्था पहले से है. बिहार में पिछ़ड़े और अति पिछ़ड़े के लिए अलग आरक्षण है. केंद्र सरकार पूरे देश में ऐसी व्यवस्था लागू कर सकती है।

जस्टिस रोहिणी कमीशन ने करीब 1100 पन्नों की रिपोर्ट राष्ट्रपति को सौंपी है. इस रिपोर्ट के दो भाग है. पहले भाग मे पिछड़ों को मिल रहे आरक्षण को ओबीसी जातियों के बीच बंटवारे से संबंधित है. वहीं रिपोर्ट के दूसरे भाग में 2633 पिछड़ी जातियों की पहचान कर जनसंख्या के मुताबिक उनका प्रतिनिधित्व और आरक्षण के पर है. डेटा के साथ ये बताया गया है कि आरक्षण का लाभ किन्हें मिल रहा है।

सूत्रों के मुताबिक रोहिणी कमीशन की रिपोर्ट से मोदी सरकार ने पिछड़ों के एक बड़े वर्ग को अपने पाले में ला सकती है. पिछड़ी जातियों में शामिल यादव समुदाय के लोग बीजेपी के वोट बैंक नहीं हैं लेकिन कई राज्यों में वह ओबीसी आरक्षण का सबसे ज्यादा लाभ उठा रहा है. जबकि नोनिया, कहार, बढ़ई, कुम्हार, धानुक, चौरसिया, राजभर, कश्यप, बिंद केवट, निषाद जैसी कई जातियां हैं जिन्हें आरक्षण का सही लाभ नहीं मिल रहा है. ये पिछड़ों में भी ज्यादा पिछ़ड़ी जातियां हैं. अगर उनके लिए अलग से आरक्षण की व्यवस्था की जाती है तो भाजपा को बड़ा लाभ हो सकता है।

बीजेपी नेताओं का एक बड़ा वर्ग मान रहा है कि जस्टिस रोहिणी आयोग की रिपोर्ट न सिर्फ जाति जनगणना की मांग की बड़ी काट हो सकती है बल्कि ओबीसी वोट बैंक को बीजेपी के खिलाफ खड़ा करने की कोशिश को फेल कर देगा. बता दें कि NSSO के सर्वे के मुताबिक देश में करीब 41 फीसदी ओबीसी आबादी है. हालांकि मंडल कमीशन की रिपोर्ट के मुताबिक पिछड़ों की आबादी 52 फीसदी है।

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