28 जनवरी 2024 को बिहार की सियासत ने पलटी खाई और महागठबंधन से निकलकर नीतीश कुमार NDA के साथ आ गये. नीतीश कुमार ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दिया और फिर से नीतीश कुमार के नेतृत्व में ही NDA की सरकार बन गयी. बीजेपी के सम्राट चौधरी और विजय कुमार सिन्हा डिप्टी सीएम बने. तेजी से बदले सियासी घटनाक्रम के दौरान आरजेडी के 5 और कांग्रेस के दो विधायकों ने भी पाला बदला था. ऐसे में दोनों दल इन बागियों की सदस्यता खत्म करने की मांग कर रहे हैं।
किन-किन विधायकों ने बदला था पाला ?: नीतीश के नेतृत्व में नयी सरकार बनने के बाद नये सिरे से बिहार विधानसभाध्यक्ष के चुनाव की प्रक्रिया भी हुई. महागठबंधन सरकार में विधानसभा स्पीकर चुने गये अवध बिहारी चौधरी पद से इस्तीफा देने के तैयार नहीं थे तो वहीं NDA की ओर बीजेपी के नंदकिशोर यादव को प्रत्याशी बनाया गया. मत विभाजन से पहले ही सूर्यगढ़ा से आरजेडी के विधायक प्रह्लाद यादव, मोकामा से आरजेडी विधायक नीलम देवी और शिवहर से आरजेडी विधायक चेतन आनंद ने पाला बदल लिया और सत्तापक्ष के साथ जा बैठे।
सेशन के दौरान 4 और विधायक हुए बागीः वहीं 12 फरवरी को फ्लोर टेस्ट में नीतीश सरकार की जीत हुई और बजट सत्र के दौरान कांग्रेस के बिक्रम विधायक सिद्धार्थ सौरव और कांग्रेस के ही चेनारी से विधायक मुरारी गौतम ने भी पाला बदल लिया. इसके अलावा मोहनिया से आरजेडी की विधायक संगीता देवी और भभुआ से आरजेडी के विधायक भरत बिंद ने भी अपनी पार्टी को बाय-बाय बोल दिया।
बागियों के खिलाफ कार्रवाई की मांगः बजट सत्र के दौरान आरजेडी और कांग्रेस के विधायकों के पाला बदलने पर खूब सियासत हुई थी. दोनों दलों ने अपने बागी विधायकों पर कार्रवाई की मांग को लेकर बिहार विधानसभा के अध्यक्ष नंदकिशोर यादव को पत्र भी लिखा, जिसमें उन्होंने दलबदल दल बदल विरोधी कानून के तहत इन सभी बागी विधायकों की सदस्यता रद्द करने की मांग की. लेकिन विधानसभा अध्यक्ष ने कोई कार्रवाई नहीं की।
मॉनसून सत्र से पहले फिर तेज हुई मांगः 22 जुलाई से बिहार विधानसभा का मॉनसून सत्र शुरू हो रहा है और अब एक बार फिर विपक्ष ने इन बागी विधायकों की सदस्यता रद्द करने की मांग तेज कर दी है.आरजेडी के प्रवक्ता और पूर्व विधायक ऋषि मिश्रा का कहना है कि “बीजेपी और जेडीयू के नेता हर बात में संविधान की दुहाई देते हैं. ऐसे में बीजेपी और जेडीयू के नेताओं को बताना चाहिए कि सदन के अंदर यदि कोई विधायक पाला बदलता है तो उसे पर दल बदल विरोधी कानून लागू होता है या नहीं.”
” बजट सत्र के दौरान आरजेडी और कांग्रेस के जो विधायक सरकार के खेमे में चले गये थे, उनके खिलाफ दलबदल विरोधी कानून के तहत कार्रवाई क्यों नहीं हुई ? आरजेडी और कांग्रेस के जिन विधायकों ने पार्टी से बगावत की है, उनकी सदस्यता खत्म की जाए और फिर से चुनाव करवाया जाए” ऋषि मिश्रा, प्रवक्ता, आरजेडी
बीजेपी ने दिया जवाबः बागी विधायकों के खिलाफ कार्रवाई की मांग पर बीजेपी ने आरजेडी को जवाब दिया है. बीजेपी प्रवक्ता राकेश कुमार सिंह का कहना है कि “ये अधिकार बिहार विधानसभा के अध्यक्ष का है.आज बिहार विकास के रास्ते पर चल रहा है.आरजेडी और कांग्रेस के विधायकों ने अपनी अंतरात्मा की आवाज पर NDA के साथ जाने का फैसला लिया था. विधानसभा अध्यक्ष किसी की डिमांड या दबाव बनाने पर अपना फैसला नहीं सुनाते हैं.”
क्या कहते हैं राजनीतिक विशेषज्ञ ?: इस मामले पर वरिष्ठ पत्रकार अरुण पांडेय का कहना है “बागी विधायकों पर कार्रवाई करने का विशेष अधिकार विधानसभा के अध्यक्ष को है. जहां तक नियम की बात है तो पाला बदलने के बाद यदि बहुमत उनके साथ नहीं है तब उनकी सदस्यता रद्द करने का प्रावधान है. जो भी बदलने का काम हुआ वह स्पीकर के सामने हुआ था.अब स्पीकर के पास अधिकार है कि वो बागी विधायकों के खिलाफ कार्रवाई करते हैं या नहीं.”
“महाराष्ट्र के मामले में तो कोर्ट को हस्तक्षेप करना पड़ा. झारखंड में भी ऐसा मामला देखने को मिला. हिमाचल प्रदेश में जरूर विधानसभा अध्यक्ष एक ही दिन में फैसला कर दिया.बिहार में बहुमत का जो आंकड़ा है वह बहुत ही कम मार्जिन का है. ऐसे में विधानसभा अध्यक्ष इस पर जल्दी फैसला लेंगे या नहीं वो उनका ही अधिकार है” अरुण पांडेय, वरिष्ठ पत्रकार
बागी विधायकों को लेकर हो सकता है हंगामाः मॉनसून सत्र शुरू होने से पहले ही जिस तरह से विपक्ष ने बागी विधायकों के खिलाफ कार्रवाई की मांग शुरू की है, वो इस बात का संकेत दे रहा है कि 22 जुलाई से शुरू हो रहे बिहार विधानसभा के मॉनसून सत्र में सब शांति-शांति से नहीं होनेवाला है. खासकर बागियों की सदस्यता का मुद्दा विपक्ष जोर-शोर से उठाएगा और तब सदन में हंगामा भी देखने को मिल सकता है।