16 शक्तियों के साथ मां अन्नपूर्णा सतयुग से है विराजित, इस जगह पर, पढ़िए पूरी खबर…

Screenshot 20231018 185123 Samsung Internet

 

माँ अन्नपूर्णा मंदिर रायपुर: प्राचीन काल से ही दक्षिण कौशल के नाम से विख्यात शिवरीनारायण में मां अन्नपूर्णा का मंदिर है। जहां नवरात्रि में हजारों की संख्या में भक्त मनोकामनाएं लेकर पहुंच रहे हैं। आस्था के इस दरबार में सभी को मां अन्नपूर्णा का आशीर्वाद मिल रहा है। महानदी के तट पर पूर्वाभिमुख लक्ष्मीनारायण का अति प्राचीन मंदिर है। इसी मंदिर परिसर में मां अन्नपूर्णा का भव्य मंदिर है। जिसके गर्भगृह में दक्षिणाभिमुख सौम्य मूर्ति है। मंदिर परिसर में समस्त सोलह शक्तियां मेदनीय, भद्रा, गंगा, बहुरूपा, तितिक्षा, माया, हेतिरक्षा, अर्पदा, रिपुहंत्री, नंदा, त्रिनेती, स्वामी सिद्ध और हासिनी मां अन्नपूर्णा के साथ विराजित हैं।

ज्योतिषाचार्य और मंदिर के सर्वराकार पंडित विश्वेश्वर नारायण द्विवेदी के संरक्षण में यहां सर्वसिद्ध मनोकामना ज्योति कलश प्रज्वलित की जाती है। नवरात्रि पर्व के दौरान मां अन्नपूर्णा प्रत्येक दिन अलग अलग रूपों में सुशोभित होती हैं। पहले दिन मां अन्नपूर्णा महागौरी, दूसरे दिन ज्येष्ठा गौरी, तीसरे दिन सौभाग्य गौरी, चौथे दिन श्रृंगार गौरी, पांचवे दिन विशालाक्षी गौरी, छठे दिन ललिता गौरी, सातवें दिन भवानी और आठवें दिन मंगलागौरी के रूप में विराजित होती हैं। छत्तीसगढ़ के विख्यात पुरातत्व विश्लेषक प्रो. अश्विनी केशरवानी के मुताबिक मां भवानी भक्तों की भावना के मुताबिक कई रुप धारण करती है। जिनमें दुर्गा, महाकाली, राधा, ललिता, त्रिपुरा, महालक्ष्मी, महा सरस्वती के साथ अन्नपूर्णा का एक रुप है। वे बताते हैं कि त्रेतायुग में श्रीरामचंद्रजी जब लंका पर चढ़ाई करने जाने लगे तब उन्होंने मां अन्नपूर्णा की आराधना करके अपनी बानर सेना की भूख को शांत करने की प्रार्थना की थी। तब मां अन्नपूर्णा ने सबकी भूख को शांत ही नहीं किया बल्कि उन्हें लंका विजय का आशीर्वाद भी दिया।

इसी प्रकार द्वापरयुग में पांडवों ने कौरवों से युद्ध शुरू करने के पूर्व मां अन्नपूर्णा से सबकी भूख शांत करने और अपनी विजय का वरदान मांगा था। मां अन्नपूर्णा ने उनकी मनोकामना पूरी करते हुए उन्हें विजय का आशीर्वाद दिया था। सृष्टि के आरंभ में जब पृथ्वी का निचला भाग जलमग्न था तब हिमालय क्षेत्र में भगवान नारायण बद्रीनारायण के रूप में विराजमान थे। कालांतर में जल स्तर कम होने और हिमालय क्षेत्र बर्फ से ढक जाने के कारण भगवान नारायण सिंदूरगिरि क्षेत्र के शबरीनारायण में विराजमान हुए। यहां उनका गुप्त वास होने के कारण शबरीनारायण गुप्त तीर्थ के रूप में जगत् विख्यात् हुआ। कदाचित इसी कारण देवी-देवता और ऋषि-मुनि आदि तपस्या करने और सिद्धि प्राप्त करने के लिए इस क्षेत्र में आते थे। उनकी क्षुधा को शांत करने के लिए मां अन्नपूर्णा यहां सतयुग से विराजित हैं।

शिवरीनारायण में और क्या देखें टेंपल सिटी शिवरीनारायण में मां अन्नपूर्णा देवी मंदिर के अलावा कई और विख्यात, ऐतिहासिक महत्व के मंदिर हैं। महानदी, शिवनाथ और जोंक नदी के त्रिधारा संगम तट पर बसे शिवरीनारायण में प्रभु श्री राम ने माता शबरी के जूठे बेर खाकर अपने प्रेम से कई संदेश दिए। यहां प्रदेश का इकलौता शबरी मंदिर है। प्राचीन स्थापत्य कला एवं मूर्तिकला के बेजोड़ नमूने वाले बड़ा मंदिर के बारे में कहा जाता है कि इसका निर्माण राजा शबर ने करवाया था। नर नारायण मंदिर की परिधि 136 फीट तथा ऊंचाई 72 फीट है जिसके ऊपर 10 फीट का स्वर्णिम कलश है। मंदिर के चारों ओर पत्थरों पर नक्काशी कर लता वल्लरियों व पुष्पों से सजाया गया है। शिवरीनारायण मंदिर में वैष्णव समुदाय द्वारा वैष्णव शैली की अदभुत कलाकृतियां हैं। शिवरीनारायण में 9 वीं शताब्दी से लेकर 12 वीं शताब्दी तक की प्राचीन मूर्तियां स्थापित है। शिवरीनारायण में बड़े मंदिर के अलावा चंद्रचूड़ और महेश्वर महादेव, केशवनारायण, श्रीराम लक्ष्मण जानकी, जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा, राधाकृष्ण, काली और मां गायत्री का भव्य और आकर्षक मंदिर है।

ऐसे पहुंचे शिवरीनायण हवाई मार्ग से शिवरीनारायण पहुंचने के लिए पहले आपको राजधानी रायपुर के स्वामी विवेकानंद एयरपोर्ट पहुंचना होगा। यहां से शिवरीनारायण की सड़क मार्ग की दूरी 130 किलोमीटर है। वहीं बिलासा एयरपोर्ट बिलासपुर पहुंचने के बाद वहां से शिवरीनारायण तक सड़क मार्ग की दूरी 64 किलोमीटर है। नजदीकी रेलवे स्टेशन हावड़ा-मुंबई रुट पर चांपा स्टेशन है। जहां से शिवरीनारायण की सड़क मार्ग की दूरी 49 किलोमीटर है। सड़क मार्ग से शिवरीनारायण सीधे दो नेशनल हाइवे से जुड़ा है, जहां आसानी से पहुंचा जा सकता है।

Kumar Aditya: Anything which intefares with my social life is no. More than ten years experience in web news blogging.
Recent Posts