माता रानी की पूजा और उन्हें प्रसन्न करने के लिए नवरात्रि का पर्व खास माना जाता है. यह साल में 4 बार आता है, जिसमें से एक चैत्र और दूसरी शारदीय नवरात्र के अलावा दो अन्य गुप्त नवरात्रि होती हैं. फिलहाल, अश्विन माह चल रहा है और इस महीने में शारदीय नवरात्रि आती हैं. इस बार इस महापर्व की शुरुआत 3 अक्टूबर से हुई है. बता दें कि, नवरात्रि के तीसरे दिन माता चंद्रघंटा की पूजा करने का विधान है. ऐसा माना जाता है कि उनकी पूजा से भक्तों के सभी तरह के पाप नष्ट हो जाते हैं और अगर जीवन में किसी तरह का भय है तो उससे भी मुक्ति मिलती है. माता के तीसरे स्वरूप का नाम चंद्रघंटा कैसे पड़ा, उन्हें भोग में क्या अर्पित करें और इनके जन्म के पीछे क्या है कथा, आइए जानते हैं.
कैसा है माता का स्वरूप
मां दुर्गा के तीसरा स्वरूप चंद्रघंटा के नाम से जाना जाता है. इस स्वरूप में माता युद्ध मुद्रा में सिंह पर विराजी नजर आती हैं और उनके माथे पर घंटे के आकार में अर्धचंद्र होने के कारण ही उन्हें चंद्रघंटा कहा गया है. उनके 10 हाथों में त्रिशूल, धनुष, गदा और तलवार आदि शस्त्रों को देखा जा सकता है. ज्योतिष शास्त्र में माता का संबंध मंगल ग्रह से माना गया है.
क्या लगाएं भोग?
नवरात्रि का तीसरा दिन मां चंद्रघंटा को समर्पित किया गया है. तीसरे दिन की पूजा में दूध या मेवा से निर्मित चीजों का भोग लगाना चाहिए. ऐसा करने से भक्त की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं. आप इस दिन मां को दूध से बनी मिठाई, ड्राईफ्रूट की बर्फी आदि बना कर भोग लगा सकते हैं.
कैसे हुआ इस स्वरूप का अवतरण
पौराणिक कथाओं के अनुसार, एक समय ब धरती पर राक्षसों ने अपना आधिपत्य कर लिया और लोगों को हर तरह से परेशान कर दिया. यहां तक कि महिषासुर नाम के राक्षस ने देवताओं को भी नहीं छोड़ा और देवराज इंद्र के सिंहासन को हथियाने स्वर्ग लोक तक पहुंच गया.
ऐसे में धरती और स्वर्ग को राक्षसों से मुक्त कराने देवतागण भगवान ब्रह्मा, विष्णु और महेश के पहुंचे. जिसके बाद तीनों देवों ने क्रोध जताया. इस दौरान उनके मुख से एक दैवीय ऊर्जा निकली, जो मां चंद्रघंटा के रूप में अवतरित हुईं. देवी चंद्रघंटा को भगवान शिव ने त्रिशूल, विष्णु जी ने चक्र, इंद्र ने अपना घंटा और सूर्य ने अपना तेज दिया. जिसके बाद देवी चंद्रघंटा ने महिषासुर का वध किया.