नवरात्र के चौथे दिन होती है माँ कुष्मांडा की पूजा

Kushmanda

नवरात्रि के चौथे दिन मां दुर्गा के चौथे स्वरूप मां कुष्‍मांडा की पूजा का विशेष महत्व है. इस दिन श्रद्धालु विधिपूर्वक मां दुर्गा की आराधना करते हैं और उन्हें मिठाई, फल तथा भोग अर्पित करते हैं. मां को मालपुआ बहुत पसंद है, इसलिए पूजा में मालपुआ का समावेश करना आवश्यक है. माता को प्रारंभिक स्वरूप और आदिशक्ति के रूप में जाना जाता है. व्रत कथा के बारे में जानें.

मां कुष्‍मांडा की व्रत कथा

सनातन शास्त्रों में वर्णित है कि प्राचीन काल में त्रिदेव ने सृष्टि की रचना का संकल्प लिया. उस समय सम्पूर्ण ब्रह्मांड में घना अंधकार व्याप्त था. समस्त सृष्टि एकदम शांत थी, न कोई संगीत, न कोई ध्वनि, केवल एक गहरा सन्नाटा था. इस स्थिति में त्रिदेव ने जगत जननी आदिशक्ति मां दुर्गा से सहायता की याचना की.

जगत जननी आदिशक्ति मां दुर्गा के चौथे स्वरूप मां कुष्मांडा ने तुरंत ही ब्रह्मांड की रचना की. कहा जाता है कि मां कुष्मांडा ने अपनी हल्की मुस्कान से सृष्टि का निर्माण किया. मां के चेहरे पर फैली मुस्कान से सम्पूर्ण ब्रह्मांड प्रकाशमय हो गया. इस प्रकार अपनी मुस्कान से ब्रह्मांड की रचना करने के कारण जगत जननी आदिशक्ति को मां कुष्मांडा के नाम से जाना जाता है. मां की महिमा अद्वितीय है.

मां का निवास स्थान सूर्य लोक है. शास्त्रों के अनुसार, मां कुष्मांडा सूर्य लोक में निवास करती हैं. ब्रह्मांड की सृष्टि करने वाली मां कुष्मांडा के मुखमंडल पर जो तेज है, वही सूर्य को प्रकाशवान बनाता है. मां सूर्य लोक के भीतर और बाहर हर स्थान पर निवास करने की क्षमता रखती हैं.

मां के मुख पर एक तेजोमय आभा प्रकट होती है, जिससे समस्त जगत का कल्याण होता है. उन्होंने सूर्य के समान कांतिमय तेज का आवरण धारण किया हुआ है. यह तेज केवल जगत जननी आदिशक्ति मां कुष्मांडा द्वारा ही संभव है. मां का आह्वान निम्नलिखित मंत्र से किया जाता है.

सुरासंपूर्णकलशं रुधिराप्लुतमेव च.

दधाना हस्तपद्माभ्यां कूष्माण्डा शुभदास्तु मे ॥

या देवी सर्वभू‍तेषु माँ कूष्माण्डा रूपेण संस्थिता.

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:..’

शास्त्रों में निहित है कि पूजा के समय निम्न मंत्र का जाप करना चाहिए.

कैसा है मां कुष्मांडा का स्वरूप

मां कुष्माण्डा का वाहन सिंह है और आदिशक्ति की 8 भुजाएं हैं. इनमें से 7 हाथों में कमल-पुष्प, अमृतपूर्ण कलश, कमण्डल और कुछ शस्त्र जैसे धनुष, बाण, चक्र तथा गदा हैं. जबकि, आठवें हाथ में सभी सिद्धियों और निधियों को देने वाली जप माला है. ऐसा उल्लेख मिलता है कि, माता को कुम्हड़े की बलि बेहद प्रिय है. वहीं कुम्हड़े को संस्कृत में कूष्माण्ड कहते हैं.

क्या भोग लगाएं?

नवरात्रि के पांचवें दिन मां कुष्मांडा को आटे और घी से बने मालपुआ का भोग लगाना चाहिए. माना जाता है कि ऐसा करने से भक्त को बल-बुद्धि का आशीर्वाद मिलता है.

पूजा से मिलते हैं ये लाभ

माता कुष्मांडा की पूजा से व्यक्ति को सभी प्रकार के रोगों से मुक्ति मिलती है, ऐसा माना जाता है, साथ ही उसे उत्तम स्वास्थ्य और लंबी आयु प्राप्त होती है. मान्यता है कि, जो भी व्यक्ति मां कुष्माण्डा की आराधना करता है उसे सुख-समृद्धि और उन्नति की प्राप्ति होती है.

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