भागलपुर की राष्ट्रीय पहचान बनी डॉल्फिन (प्लैटनिस्टा गैंगेटिका) का आशियाना बदल रहा है। भागलपुर देश का पहला गंगेटिक डॉल्फिन क्षेत्र है जो सुल्तानगंज से कहलगांव तक 60 किलोमीटर की लंबाई में फैला हुआ है। बताते हैं कि पिछले 28-30 दिनों में मुंगेर की ओर डॉल्फिन की संख्या बढ़ी है। इसके शिफ्ट होने के कयास लगाए जा रहे हैं। बरियारपुर से सटे सुल्तानगंज में पाई जाने वाली डॉल्फिन के इधर आने की संभावना बतायी जा रही है।
बरियारपुर में बहनेवाली गंगा में उछलती दिख रही डॉल्फिन ने मत्स्य विभाग और वन विभाग के कान खड़े कर दिए हैं। जिला मत्स्य पदाधिकारी कृष्ण कन्हैया बताते हैं, बरियारपुर के आसपास डॉल्फिन का मिलना हैरानी से कम नहीं है। डॉल्फिन की मौजूदगी बताती है कि वहां का पानी मीठा है। मीठे पानी में मछलियों का प्रजनन तेजी से होता है। जबकि वन विभाग को लगता है कि भोजन की अधिकता के चलते ग्रुप में डॉल्फिन अभी वहां मौजूद हो। लेकिन स्थायी प्रवास की संभावना का बगैर अध्ययन निष्कर्ष नहीं निकाला जा सकता है। वन प्रमंडल पदाधिकारी श्वेता कुमारी ने बताया कि गंगा में तो डॉल्फिन जगह-जगह है। संभव है कि आसपास मौजूद डॉल्फिन समूह में भोजन के लिए घाट के करीब गये हों। भागलपुर या सुल्तानगंज की डॉल्फिन की शिफ्टिंग होने के ठोस प्रमाण नहीं मिले हैं।
वन विभाग रख रहा नजर
जिला मत्स्य पदाधिकारी ने बताया कि डॉल्फिन शांत वातावरण और मीठे जल क्षेत्र में रहती है। डॉल्फिन का मुख्य निवाला छोटी मछलियां होती हैं। रिवर रैचिंग में लाखों की संख्या में मत्स्य अंगुलिका गिराये जाने से डॉल्फिन बरियारपुर की ओर आ गई हैं। डॉल्फिन स्थायी रूप से रह रही हैं या सिर्फ भोजन के लिए आई थीं, इस पर नजर रखी जा रही है।