कानून की भाषा में और न्यायालय में “नो कोर्सिव” (No Coercive) का मतलब होता है कि किसी भी व्यक्ति को किसी कार्य या व्यवहार के लिए बाध्य या मजबूर नहीं किया जाएगा. पटना हाई कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता राजन सिंह ने बताया कि जिस जज को बेल देने का अधिकार होता है, उसे विशेष परिस्थिति को देखते हुए अभियुक्त को नो कोर्सीव मेजर्स देने का भी अधिकार होता है।
विशेष परिस्थिति में कोर्ट देता है आदेशः नो कोर्सीव के आदेश का मतलब होता है कि पुलिस अभियुक्त के ऊपर कोई दंडात्मक कार्रवाई नहीं कर सकती है, उसे गिरफ्तार नहीं कर सकती है. उसके ऊपर दंडात्मक कार्रवाई करने के लिए कोर्ट की अनुमति लेनी होगी और इसके लिए नो कोर्सीव का आदेश तुड़वाना होगा. अभियुक्त के विरुद्ध जब पुलिस के पास अधिक साक्ष्य नहीं होते हैं, तो इस परिस्थिति में कोर्ट के पास अभियुक्त जाता है कि पुलिस उसे परेशान कर सकती है. विशेष परिस्थिति को देखते हुए ही कोर्ट नो कोर्सीव का आदेश देता है।
क्या है कोर्ट के आदेश मेंः राजन सिंह ने बताया कि संजीव कुमार के नाम पर जो नो कोर्सीव का आदेश है वह उसे 358/2024 के केस में मिला है, जो शास्त्री नगर थाना में मामला दर्ज है. एडीजे 5 के आदेश में स्पष्ट है कि अगली सुनवाई तक संजीव पर नो कोर्सीव मेजर्स लागू होगा. अर्थात पुलिस संजीव के ऊपर इस मामले में सुनवाई की अगली तारीख तक कोई दंडात्मक कार्रवाई नहीं कर सकती है. संजीव की गिरफ्तारी के लिए पुलिस कोई छापेमारी नहीं कर सकती है. पुलिस को यदि दंडात्मक कार्रवाई करनी है तो कोर्ट से अनुमति लेनी होगी।
कब कर सकते हैं आवेदनः शास्त्री नगर के केस संख्या 358/2024 में एफआईआर में संजीव कुमार का कहीं नाम नहीं है, लेकिन संजीव ने इस मामले में नो कोर्सीव प्राप्त किया है. इस पर राजन सिंह ने बताया कि एफआईआर दर्ज करने समय संजीव का भले नाम ना हो लेकिन मामले के अनुसंधान में जिन पर मामला दर्ज है उनके द्वारा यदि संजीव को भी आरोपी बनाया गया है तो अभियुक्त के नाम पर संजीव का नाम भी ऐड होगा. केस में नाम जुड़ने के बाद ही उस केस में अभियुक्त नो कोर्सीव के लिए आवेदन कर सकता है।