भाजपा की सीट हैं 240+. उन्हें मुश्किल से तीस सीट चाहिए बहुमत के लिए. कांग्रेस की हैं 90 के आस पास. उन्हें 175 और चाहिये बहुमत के लिए. भाजपा को बस एक दो सहयोगी चाहिए और कांग्रेस को सरकार बनाने के लिए भाजपा के अतिरिक्त सौ प्रतिशत लोगों को साथ रखना होगा. नीतीश चले गये तो क्या. भाजपा ममता के साथ चली जायेगी. राजनीति में कुछ असंभव नहीं. यह गठबंधन दोनों के लिए विन विन होगा. पाँच साल के लिए ममता के लिये बंगाल फ्री हो गया, इधर भाजपा के लिए केंद्र सेफ़. परफ़ेक्ट कॉम्बिनेशन है.
नीतीश कुमार ने तमाम राजनीतिक पंडितों को एक बार फिर गलत साबित कर दिया है. एग्जिट पोल का अनुमान हो या फिर तमाम राजनीतिक पंडितों का बयान, वो नीतीश कुमार के लिए गलत ही साबित हुआ है. ऐसे में 16 में से 15 सीटों पर लगभग जीत चुके नीतीश कुमार का कद केंद्र की राजनीति में परिणाम के बाद छलांग लगा चुका है.
यही वजह है कि आरजेडी के मनोज झा हों या एनसीपी के शरद पवार, दोनों नीतीश कुमार को इंडिया गठबंधन के पाले में लाने के लिए अलग-अलग तरीके का ऑफर देना शुरू कर चुके हैं. जाहिर है पिछले 15 साल से बिहार की सत्ता के सिरमौर रहे नीतीश का कद इस कदर बढ़ गया है कि केंद्र सरकार का रिमोट अब उनके हाथों में रहने वाला है, ये तय माना जा रहा है.
हारी बाजी पलटकर बाजीगर क्यों दिख रहे हैं नीतीश?
लोकसभा चुनाव में नीतीश की पार्टी 4 से 5 सीटों पर सिमट जाएगी, ऐसा बयान देकर प्रशांत किशोर खासे चर्चा में आए थे. कहा जाने लगा था कि बार-बार पाला बदलकर नीतीश अपनी विश्वसनीयता खो चुके हैं लेकिन लोकसभा चुनाव का परिणाम उन्हें बड़े बाजीगर के तौर पदस्थापित कर रहा है. नीतीश के फैसले शुरुआती तौर पर भले ही गलत दिखते हों लेकिन अंततोगत्वा नीतीश विनर के तौर पर बाहर निकलते हैं, ये नीतीश ने फिर साबित किया है.
एग्जिट पोल में भी बिहार में होने वाले नुकसान के लिए नीतीश कुमार को जिम्मेदार ठहराया जा रहा था. राजनीतिक पंडित जेडीयू की वजह से एनडीए को नुकसान होता देख रहे थे लेकिन चुनावी परिणाम में किशनगंज सीट पर कांग्रेस आगे चल रही है. साल 2019 में एकमात्र सीट किशनगंज से कांग्रेस पार्टी की जीत हुई थी. वैसे जेडीयू जहानाबाद गंवाती हुई दिख रही है लेकिन 16 में से 15 सीटों पर जेडीयू की जीत को बेहतरीन स्ट्राइक रेट माना जा रहा है.