जीत के प्रतीक ‘दशहरे’ का त्योहार मनाया जायेगा। पुराणों के अनुसार रावण पर भगवान श्री राम की जीत के उपलक्ष्य में विजयदशमी का ये त्योहार मनाया जाता है। विजयदशमी साल की तीन सबसे शुभ तिथियों में से एक है । अन्य दो तिथियां चैत्र शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा और कार्तिक शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा है। वास्तु शास्त्र में आज हम बात करेंगे दशहरे के दिन की जाने वाली पूजा की दिशा के बारे में।
अपराजिता देवी की पूजा
आज के दिन अपराजिता देवी की पूजा की जाती है । इसके लिये दोपहर बाद ईशान कोण, यानि उत्तर-पूर्व दिशा में जाकर साफ-सुथरी भूमि पर गोबर से लीपना चाहिए और उसी जगह पर चंदन से आठ पत्तियों वाला कमल का फूल बनाना चाहिए । इस आकृति के बीच में अपराजिता देवी की पूजा करनी चाहिए जबकि आकृति के दाहिनी ओर जया की पूजा करनी चाहिए और बायीं ओर विजया की पूजा करनी चाहिए।
शमी पूजा
वहीं शमी पूजा की बात करें तो इसके लिये गांव के बाहर उत्तर-पूर्व दिशा में शमी के पौधे की पूजा करनी चाहिए । ऐसा करने से बाहर यात्राओं में किसी प्रकार की परेशानी नहीं आती । आप चाहें तो घर के बाहर शमी का पौधा लगा भी सकते हैं। इससे निगेटिव एनर्जी घर के अन्दर नहीं आ पायेगी। वास्तु शास्त्र में ये थी चर्चा दशहरे के दिन की जाने वाली पूजा की दिशा के बारे में | उम्मीद है आप भी इस वास्तु टिप्स को अपनाकर जरुर लाभ उठाएंगे |