विपरीत परिस्थितियां इंसान की परीक्षा लेती हैं, जो लोग इस इम्तेहान में सफल नहीं हो पाते वे उन्हीं परिस्थितियों में फंस कर रह जाते हैं लेकिन इनका सामने कर अपने लक्ष्य की ओर बढ़ते रहने वाले इतिहास रचते हैं. कुछ ऐसा ही इतिहास रचने की राह पर है वो लड़का जिसे पूरे देश ने कोविड महामारी के दौरान मनरेगा में मजदूरी करते हुए देखा.
उस लड़के का नाम है राम बाबू, कभी अपने हालातों से मजबूर होकर मजदूरी करने वाले इस लड़के ने अपने लक्ष्य से नजरें नहीं हटाईं. यही वजह है कि मंजू रानी के साथ जोड़ी बना कर राम बाबू ने 19वें एशियाई खेलों में बुधवार को देश के लिए मेडल जीत लिया. मंजू और रामबाबू की जोड़ी ने 35 किमी रेस वॉक मिक्स्ड टीम स्पर्धा में कांस्य पदक जीतकर भारत के पदकों की संख्या 70 पर पहुंचा दी. राम बाबू ने 2 घंटे 42 मिनट 11 सेकेंड में रेस पूरी की जबकि मंजू रानी 3 घंटे 9 मिनट 3 सेकेंड का समय निकाला. भारत 5 घंटे 51 मिनट 14 सेकेंड के संयुक्त समय के साथ तीसरे स्थान पर रहा.
रामबाबू के लिए ये मेडल बहुत ही महत्वपूर्ण है. ये उनकी उस मेहनत का फल है जो उन्होंने तमाम बुरे हालातों के बाद भी जारी रखी. रामबाबू उस समय चर्चा में आए थे जब उनकी मनरेगा में मजदूरी करते हुए तस्वीरें और वीडियो वायरल होने लगे.
कभी मजदूरी तो कभी वेटर का किया काम
रामबाबू के पिता छोटेलाल एक भूमिहीन मजदूर हैं और मजदूरी से ही अपने परिवार का पालन-पोषण करते हैं. रामबाबू और उनके परिवार को 2020 के कोविड लॉकडाउन में भोजन तक के लिए संघर्ष करना पड़ा था. उस समय उनका एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ था. लॉकडाउन की कठिन परिस्थितियों में डेढ़ महीना उन्होंने तालाब खोदने का काम किया. मजदूरी करने से पहले वह वेटर का काम करते थे. इसके अलावा उन्हें कुरियर पैकेजिंग कंपनी में करीब 4 महीने बोरे सिलने का काम भी करना पड़ा.
नेशनल रिकॉर्ड तोड़ कर आए थे चर्चा में
दोबारा रामबाबू उस समय चर्चा में आए थे जब उन्होंने राष्ट्रीय खेलों में 35 किलोमीटर की पुरुष ‘रेस वॉक’ यानी पैदल चलने की रेस में दो घंटे 36 मिनट और 34 सेकेंड में वॉक रेस पूरी कर गोल्ड मेडल जीतते हुए राष्ट्रीय रिकॉर्ड तोड़ा था. राष्ट्रीय रिकॉर्ड तोड़ने के बाद रामबाबू आगे की ट्रेनिंग के लिए पुणे चले गए. कभी मजदूरी करने वाले रामबाबू के अंदर अपने खेल को लेकर जुनून भरा हुआ है. यही वजह है कि वह काफी समय से बिना अपने घर लौटे कड़ी मेहनत और ट्रेनिंग में लगे रहे. इसी का नतीजा है कि उन्होंने अब एशियन गेम्स में भारत के लिए पदक जीता है.
मीडिया से बात करते हुए रामबाबू ने बताया था कि, वह सितंबर 2018 से ट्रेनिंग ले रहे थे लेकिन 2020 में कोविड के कारण उन्हें गांव लौटना पड़ा. उनके पिता मजदूरी करके जैसे-तैसे उनकी ट्रेनिंग और बहन की पढ़ाई और का खर्च उठा रहे हैं. रामबाबू के अनुसार आर्थिक अच्छी न होने की वजह से उन्हें कभी अच्छी डाइट नहीं मिली. उनके गांव के हाल ऐसे हैं कि पानी लाने के लिए भी उन्हें एक किलोमीटर पैदल चलना पड़ता है.
नहीं पसंद था काम
मनरेगा के तहत मजदूरी करते हुए मिट्टी खोदने का काम करने के अलावा रामबाबू ने वाराणसी में वेटर के रूप में भी काम किया है. उन्हें वह नौकरी पसंद नहीं थी. पिछले साल नेशनल रिकॉर्ड बनाने के बाद राम बाबू ने कहा था कि, ‘लोग वेटरों के साथ अच्छा व्यवहार नहीं करते. वे उन्हें कमतर इंसान समझते हैं. जिस तरह से लोग उन्हें ‘छोटू’ और अन्य नामों से बुलाते थे, उससे उन्हें बहुत बुरा लगता था.’
रामबाबू ने अपने बारे में एक अनोखी बात बताई थी, उन्होंने दौड़ की शुरुआत स्पोर्ट्स फिल्मों से प्रेरित होकर की थी. पहले वह मैराथन करते थे लेकिन 2018 में घुटने की चोट के कारण राम बाबू का करियर पर ब्रेक लग गया. इसके बावजूद उन्होंने हार नहीं मानी और बहुत जल्द ही रेस-वॉकिंग सीखना शुरू कर दिया. आज उनकी मेहनत के कारण पूरा देश उन्हें सलाम कर रहा है.