एक आदमी हर आदमी को खुश नहीं कर सकता: डॉ. नन्दकिशोर साह
सुबह से रात तक ऑफिस में काम, काम और सिर्फ काम। टारगेट पूरा करना, घर की चिंता, लोन वापसी, किस्त भरना, भाई- बहनों, बच्चों की फीस जमा करनी है, कमरे की सफाई, ढेर सारे कपड़े व बर्तन थोने, दोस्तों/ रिश्तेदारों की परवाह, उन्हें बीच-बीच में फोन करना, मैसेज का जवाब देना, वरना नाराज हो जायेंगे। गाड़ी की सर्विसिंग और न जाने क्या-क्या हम सभी ने अपने ऊपर ढेर सारी जिम्मेदारियां ओढ़ ली हैं। कई बार ये खुद पर इतनी हावी हो जाती है कि दिल करता है, कहीं दूर चले जाए। फोन बंद कर दे। किसी को नजर ही नहीं आए, लेकिन हम कर कुछ नहीं पाते।
रीना भी कुछ ऐसी ही लड़की है। वह हमेशा मुस्कुराती रहती है, इस डर से कि कहीं दूसरों को पता न चल जाये कि उसे कितनी सारी तकलीफें व दुख हैं। हो सकता है कि लोग उसे ‘दुखी आत्मा’ पुकारने लगें और उससे धीरे-धीरे दूर चले जायें। वह किसी का कोई काम न कर पाये या उन्हें खुश न कर पाये, तो हो सकता है कि कोई अपना नाराज हो जाये। इन्हीं सब चिंताओं में घिरी वह सभी को खुश करने के लिए जी-जान से लगी रहती है और खुद को दुखी करती जाती है। वह हमेशा चेहरे पर एक दिखावटी मुस्कुराहट बनाये रखती है। दुख कई बार भीतर इतना बढ़ जाता है कि कभी-कभी वह उसकी आंखों में से छलक पड़ता है। कई सालों से इसी तरह व्यवहार करने की वजह से उसे गंभीर बीमारी ने घेर लिया है और अब उसका इलाज चल रहा है।
हम में से कई ऐसे लोग हैं, जो खुद से ज्यादा दूसरों की चिंता करते हैं और अपनी सेहत गिराते हैं। कई बार हम अपनी क्षमताओं से आगे बढ़ कर लोगों के लिए कुछ करते हैं और सोचते है कि कम-से-कम सामने वाला थैंक्यू तो कह दें। हम उसे बता भी नहीं पाते कि हमने कितनी मुश्किलों से उसे खुश करने के लिए जोखिम उठाया है। हम खुद को परेशानी में डाल कर, समय निकाल कर दूसरों की खुशी के लिए विभिन्न तरह की चीजें करते हैं, आधी रात को उठ कर लोगों की मदद करते हैं। ऑफिस से छुट्टी ले कर उनका काम करते हैं। बीमार होने के बावजूद उनके सारे मैसेज का जवाब देते हैं। आखिर क्यों हम ये तकलीफें सहते हैं?
दूसरों को हमेशा खुश रखने की इच्छा रखना पागलपन है। एक आदमी हर आदमी को खुश नहीं कर सकता है। सभी को खुश रखने वाला रोबोट बनने की कोशिश करेंगे, तो अपनी सेहत गिरायेंगे। सबसे पहले अपने लिए जीना सीखे। खुद की खुशी का ध्यान पहले रखें। बार-बार अपनी खुशियां मार कर जीना भी कोई जीना है?
डॉ. नन्दकिशोर साह(स्वतंत्र पत्रकार)
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