हर इंसान अपने हिस्से की मेहनत किसी ना किसी बहाने कर ही लेता है. फिर भले ही आप सोने के पालने में क्यों ना पले हों. अगर आपका जन्म किसी अमीर और संपन्न परिवार में हुआ है, तो आप इस बात से निश्चिंत नहीं हो सकते कि आपकी सारी उम्र आराम से कट जाएगी और आपको ज़्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ेगी. अगर कोनोसुके मात्सुशिता (Kōnosuke Matsushita) भी ऐसा ही सोच लेते तो शायद वो सफलता की ऊंचाइयों को छू नहीं पाते.
क्या आप इस नाम से परिचित हैं? अगर नहीं तो Panasonic जैसी इलेक्ट्रॉनिक कंपनी के नाम से तो ज़रूर परिचित होंगे. तो चलिए हम आपको बताते हैं कि कोनोसुके मात्सुशिता और Panasonic के बीच कितना गहरा संबंध है और कोनोसुके मात्सुशिता ने ये संबंध मजबूत करने के लिए अपने जीवन में क्या संघर्ष किए:
कौन हैं Kōnosuke Matsushita?
सन 1894, जगह जापान का वाकायामा प्रांत, इसी साल और इसी जगह पर हुआ था कोनोसुके मात्सुशिता का जन्म. पिता गांव के जानेमाने जमींदार थे. घर से सुखी संपन्न होने के कारण मात्सुशिता के पालन-पोषण में किसी तरह की कोई कमी नहीं आई. शायद उन दिनों मात्सुशिता के माता पिता को लगा होगा कि वो अपने बेटे को एक अच्छी ज़िंदगी दे सकते हैं, लेकिन उन्हें क्या पता था कि बुरा वक्त बाहें फैलाए उनका इंतजार कर रहा है. उन दिनों मात्सुशिता की उम्र 5 साल थी जब एक दिन अचनाक एक ही झटके में सबकुछ बदल गया. 1899 में एक गलत फैसले के कारण मात्सुशिता के पिता को इतना बड़ा नुकसान उठाना पड़ा कि उनका सबकुछ बिक गया.
गांव के जमींदार कहलाने वाला ये परिवार अचानक से गरीब हो गया. ऐसी स्थिति आने के बाद परिवार को सबकुछ बेचकर किसी अन्य स्थान पर जाना पड़ा. अपना घर और जमीन छोड़ कर मात्सुशिता का परिवार अब एक ऐसी जगह में रहने लगा था जहां उनकी मूल जरूरतों का पूरा हो पाना भी मुश्किल हो रहा था. हालात ऐसे बदतर हो गए कि 9 साल की उम्र तक कोनोसुके मात्सुशिता के हाथों से किताबें तक छिन गईं.
पढ़ाई छोड़ कर परिवार की आर्थिक मदद के लिए मात्सुशिता काम करने लगे. छोटे मोटे काम करते हुए मात्सुशिता को एक दुकान में नौकरी मिल गई. एक सुखी संपन्न परिवार में जन्मे मात्सुशिता की ज़िंदगी इतनी बदल चुकी थी कि अब हर सुबह आंख खुलने के साथ ही उन्हें ज़िंदगी की जद्दोजहद के लिए जूझना पड़ता था और उनका सारा दिन दुकान पर काम करते हुए ही बीत जाया करता था. वो सिर्फ दुकान का ही नहीं बल्कि दुकान के मालिक के घर का काम भी किया करते थे. कोनोसुके मात्सुशिता की इतनी मेहनत भी ज़्यादा दिनों तक उनकी नौकरी ना बचा पाई और एक साल में ही उनके मालिक ने दुकान में अच्छा मुनाफा न होने के कारण उन्हें नौकरी से निकाल दिया.
अनजाने में मिली ज़िंदगी को नई राह
इंसान की ज़िंदगी में आने वाला कोई भी मौका उसके लिए सुनहरा साबित हो सकता है. इस बात को कोनोसुके मात्सुशिता ने प्रमाणित किया. नौकरी के लिए भटकते हुए मात्सुशिता की तलाश खत्म हुई ओसाका इलेक्ट्रिक लाइट कंपनी में. उन्होंने कहां सोचा था कि जो काम वो महज पेट भरने के लिए कर रहे हैं उसी का अनुभव उनकी ज़िंदगी बदल देगा. इसी कंपनी ने इन्हें आगे बढ़ने के कई मौके दिए. कोनोसुके मात्सुशिता ने शादी कर के अपना नया परिवार भी बना लिया.
वो अपनी जिम्मेदारियों को समझते हुए अपने काम पर पहले से अधिक ध्यान देने लगे थे. 22 साल की उम्र तक वह इलेक्ट्रिकल इंस्पेक्टर बन गए. ऐसा नहीं था कि कोनोसुके मात्सुशिता सिर्फ काम कर के अपनी ज़िंदगी चला रहे थे बल्कि वो काम के साथ साथ कुछ नया बनाने में भी लगे हुए थे. उनकी इसी सोच ने तैयार कर दिया नया इलेक्ट्रिकल सॉकेट.
वह इसे मालिक को दिखा कर इस सॉकेट को प्रयोग में लाना चाहते थे मगर उनके हाथ निराशा ही लगी. कंपनी के मालिक ने उनके इस आइडिया को रिजेक्ट कर दिया. उनका कहना था कि ये आइडिया काम नहीं करेगा. अच्छी बात ये थी कि भले ही कोनोसुके मात्सुशिता का आइडिया रिजेक्ट हो गया था लेकिन उनका हौसला और विश्वास अभी भी कायम था. उन्हें पूरा यकीन था कि उनका बनाया इलेक्ट्रिकल सॉकेट काम करेगा.
साल 1917 में कोनोसुके मात्सुशिता ने ओसाका इलेक्ट्रिक लाइट कंपनी की जॉब छोड़ दी. मात्सुशिता अब अपना खुद का काम शुरू करना चाहते थे लेकिन इसके लिए ना तो इनके पास पूंजी थी और ना ही इस क्षेत्र में कोई शिक्षा, था तो केवल अनुभव और खुद पर पूरा विश्वास. उनके लिए यही दो बातें काफी थीं. इसी के दम पर उन्होंने घर के बेसमेंट में एक दुकान शुरू कर दी.
जॉब छोड़ शुरू किया अपना खुद का काम
शुरुआत में कई दोस्तों ने कहा कि उनका ये फैसला सही नहीं है और वो कामयाब नहीं हो पाएंगे लेकिन वहीं उनका परिवार उनके इस फैसले के साथ खड़ा रहा. मात्सुशिता ने अपने प्रोडक्ट के सैंपल तैयार करने शुरू कर दिए और थोक विक्रेताओं के पास जाकर सॉकेट बेचने की कोशिश करने लगे लेकिन समस्या ये थी कि कोई भी इन पर और इनके प्रोडक्ट पर विश्वास नहीं दिखा रहा था. सब ने इनके सैंपल को रिजेक्ट किया.
हर बार की तरह कोनोसुके मात्सुशिता इस बार भी निराश नहीं हुए और कोशिश करते रहे. समय बीतने के साथ साथ इनके प्रोडक्ट की तकनीक को देखते हुए इन्हें कुछ ऑर्डर मिलने शुरू हुए. काम चलने लगा था लेकिन इतनी रफ्तार से नहीं कि उसके सहारे घर चल सके. देखते ही देखते इनकी आर्थिक स्थिति इतनी बुरी हो गई कि इनके साथ काम करने वालों ने भी इनका साथ छोड़ दिया. घर चलाने के लिए कोनोसुके मात्सुशिता को अपने घर के सामान तक बेचने पड़े.
घर की आर्थिक स्थिति भले ही बेकार होती जा रही थी लेकिन कोनोसुके मात्सुशिता का विश्वास अभी भी कम होने का नाम नहीं ले रहा था. उनके परिचित लोगों ने उन्हें जिद छोड़ कर कहीं नौकरी करने की सलाह दी मगर वो नहीं माने. भले ही लोगों को उनका फैसला देखकर लगा हो कि मात्सुशिता पागल हो गए हैं लेकिन उन्होंने अपने विश्वास के दम पर खुद को सही साबित कर ही लिया.
एक दिन अचानक ही उन्हें उनके सॉकेट के हजार पीस तैयार करने का ऑर्डर मिला और इसी ऑर्डर ने उनकी किस्मत बदल दी. इस सफलता के बाद तो उन्हें कभी पीछे मुड़ कर देखने की ज़रूरत ही नहीं पड़ी. देखते ही देखते इनके द्वारा बनाए गए प्रोडक्ट की मांग अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी होने लगी. जानते हैं इन्होंने जो छोटी सी कंपनी शुरू की थी उसका नाम क्या था?
पैनासोनिक को बुलंदियों तक पहुंचाया
13 मार्च 1918 को इनके द्वारा शुरू की गई एक छोटी सी सॉकेट कंपनी का नाम था पैनासोनिक. जी हां वही पैनासोनिक जिस कंपनी में आज हजारों लोग काम करते हैं और जिसका टर्न ऑवर आज बिलियन डॉलर्स में है.
103 साल पहले पैनासॉनिक कंपनी की स्थापना करने वाले कोनोसुके मात्सुशिता 1989 में 94 साल की उम्र में इस दुनिया को अलविदा कह गए. जिस समय कोनोसुके मात्सुशिता का निधन हुआ उस समय इनकी कंपनी का रेवेन्यू बिजनेस 42 बिलियन यूएस डॉलर था. घर के बेसमेंट से शुरू हुई ये पैनासोनिक कंपनी आज किसी परिचय की मोहताज नहीं है. कोनोसुके मात्सुशिता अपनी आने वाली नस्लों के लिए दौलत छोड़ गए, इसके साथ ही उन्होंने दुनिया के लिए ये सीख भी छोड़ी कि खुद पर आपका अटूट विश्वास ही आपको कामयाब बनाता है. अगर आप खुद पर विश्वास नहीं कर सकते तो दुनिया भी आप पर कभी विश्वास नहीं कर पाएगी.