बिहार विधानसभा चुनाव की उल्टी गिनती शुरू हो गई है. सभी दल चुनावी मोड में आ गए हैं. महागठबंधन और एनडीए के बीच आमने-सामने की लड़ाई होने की संभावना है. दोनों गठबंधन से चुनाव लड़ने वाले संभावित प्रत्याशी तैयारी में जुट गए हैं. कुछ ऐसे भी नेता हैं जो किसी दल में नहीं हैं, लेकिन चुनाव लड़ने को लेकर दरवाजे-दरवाजे घूम रहे हैं. जिसके दरवाजे पर टिकट मिलने की संभावना है, वहां जा रहे, संभावना क्षीण दिखने पर दूसरे दरवाजे पर पहुंच जा रहे. आज हम बिहार के डॉक्टर पिता-पुत्र की चर्चा करेंगे. लोकसभा चुनाव 2024 में डॉक्टर साहब खुद चुनाव लड़ने को इच्छुक थे, भाजपा से लेकर लोजपा के दरवाजे पर दस्तक दी, कहीं दाल नहीं गली. आस पूरी नहीं हुई तो अब बेटे को विधानसभा चुनाव लड़ाना चाहते हैं. लिहाजा, अभी से तैयारी शुरू है. डॉ. बेटा को विधानसभा चुनाव का टिकट दिलाने के लिए खूब दौड़ लगा रहे हैं. कभी भाजपा के दरवाजे जा रहे, तो कभी कांग्रेस के. हालांकि कहीं से सफलता मिलते दिख नहीं रही है.
पिता,नवादा लोकसभा सीट से दावेदार थे
बात पटना के एक चिकित्सक पिता-पुत्र की. पिता बिहार के बड़े चिकित्सक रहे हैं. पुत्र भी चिकित्सक हैं. पिता-पुत्र के मन में नेता बनने का भूत सवार है. वैसे तो नेता बनने की इच्छा 2019-20 से ही शुरू हुई. लेकिन लोकसभा चुनाव 2024 में यह इच्छा परवान चढ़ी. लिहाजा नवादा लोस सीट से टिकट के दावेदार हो गए. नवादा इसलिए, क्यों कि सीटिंग सांसद का टिकट कटना तय हो गया था. एनडीए के अंदर यह सीट भाजपा के खाते में जाते दिख रही थी. लिहाजा ये बीजेपी से नजदीक हो गए. टिकट की आस में नेताओं के दरवाजे-दरवाजे दौड़ने लगे, भाजपा के कई बड़े नेताओं के दरवाजे पर दस्तक दी, पटना से दिल्ली तक दौड़ लगाई, नवादा जाकर माहौल बनवाया, मीडिया में बताया मैं संभावित प्रत्याशी हूं. लेकिन कुछ भी काम न आया. बीजेपी से भाव नहीं मिलने पर विपक्षी खेमे में अपना भविष्य देखा, पर कहीं दाल नहीं गली. लिहाजा शांत बैठ गए.
अब चिकित्सक पुत्र को विधायक बनवाना चाहते हैं….
लोकसभा चुनाव 2024 में नवादा लोकसभा क्षेत्र से टिकट की आस पूरी नहीं होने पर चिकित्सक पिता अब अपने डॉक्टर पुत्र के लिए मैदान में उतर गए हैं. बताया जाता है कि चिकित्सक पिता-पुत्र ने स्वजातीय बहुल सीट जो नवादा लोकसभा क्षेत्र में आता है, का चयन किया है. वर्तमान में इस सीट पर जेडीयू का कब्जा है. वर्तमान विधायक कांग्रेस के कद्दावर नेता रहे के पौत्र हैं. महागठबंधन में यह सीट कांग्रेस के खाते में है. 2015 के चुनाव में इस सीट से कांग्रेस प्रत्याशी की जीत हुई थी. डॉक्टर साहब पहले इस कोशिश में थे कि कांग्रेस में दाल गले. क्यों कि कांग्रेस में टिकट की ज्यादा संभावना दिख रही थी. जानकार बताते हैं कि इन्होंने तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष के दरबार में हाजिरी लगाई. मकसद था, किसी भी विधि से उक्त विधानसभा सीट से टिकट को लेकर बात बढ़े. सूत्र बताते हैं कि तब तत्कालीन अध्यक्ष ने अपने स्वजातीय डॉक्टर साहब को साफ मना कर दिया. बेचारे उस दरवाजे से भी वापस हो गए.अब भाजपा में कोशिश कर रहे हैं.
ब्रांडिंग करा कर टिकट पाना चाहते हैं डॉक्टर साहब…..
वैसे सीटिंग विधायक होने की वजह से उक्त सीट जेडीयू के खाते में ही रहेगी. इसकी पूरी संभावना है. फिर भी डाक्टर साहब भाजपा के बड़े नेताओं के आवास के बाहर बैनर-पोस्टर लगा रहे, दरबारी कर रहे, ताकि उनकी बात सुन ली जाय. इधऱ, चिकित्सक पुत्र मीडिया को अपना माध्यम बनाकर अपनी ब्रांडिंग करा रहे हैं. अपने प्रचार के लिए पानी की तरह पैसे बहा रहे हैं. हालांकि अपनी ब्रांडिंग कराने से भी कोई फायदा होते दिख नहीं रहा. लोग समझ रहे हैं. चर्चा है कि चुनाव के समय पिता-पुत्र को नेता बनने का भूत सवार हो जाता है. जेडीयू का सीटिंग सीट है, लिहाजा भाजपा में संभावना तो है ही नहीं. कांग्रेस से भी टिकट मिलने की आस नहीं है. ऐसे में निर्दलीय ही एक रास्ता बचता है.