बिहार की नीतीश कुमार सरकार ने जातीय गणना को लेकर रिपोर्ट सार्वजनिक कर दी है। इसमें सूबे की जातीय स्थिति की जानकारी मुहैया कराई गई है। इसी बीच जातीय जनगणना पर सुप्रीम कोर्ट में शुक्रवार को सुनवाई हुई। जिसमें सर्वोच्च अदालत नीतीश कुमार सरकार को नोटिस जारी किया है। कोर्ट ने कहा कि सरकार को नीति बनाने से रोक नहीं सकते। हालांकि, कास्ट सर्वे के दौरान लिए गए लोगों के निजी आंकड़े सरकार सार्वजनिक नहीं करे। अब इस मामले पर जनवरी में सुनवाई होगी
गांधी जयंती यानी दो अक्टूबर को नीतीश सरकार ने जातीय सर्वे की रिपोर्ट सार्वजनिक की थी। इसी बीच कास्ट सर्वे पर याचिका सुप्रीम कोर्ट पहुंची थी। जिस पर 6 अक्टूबर को सुनवाई की तारीख तय की गई थी। अब सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई करते हुए बिहार की नीतीश कुमार सरकार को नोटिस दिया है। इसमें कहा गया है कि जातीय गणना में लोगों के निजी आंकड़े सार्वजनिक नहीं की जाए। साथ ही कोर्ट ने बिहार सरकार से जनवरी तक नोटिस का जवाब देने के लिए कहा है।
बिहार में जातीय जनगणना की रिपोर्ट के अनुसार, अत्यंत पिछड़ा वर्ग (ईबीसी) की आबादी 36.01 फीसदी, अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) 27 फीसदी है। अनुसूचित जाति 19.65 प्रतिशत, अनुसूचित जनजाति 1.68 फीसदी हैं। राज्य की कुल 13 करोड़ से अधिक आबादी में ऊंची जातियां 15.52 फीसदी हैं। सुप्रीम कोर्ट ने सर्वे प्रक्रिया या सर्वेक्षण के परिणामों के प्रकाशन पर रोक लगाने के लिए कोई अंतरिम आदेश पारित करने से बार-बार इनकार कर दिया था। हालांकि, अब कोर्ट ने कहा है कि किसी के पर्सनल डेटा सार्वजनिक नहीं होने चाहिए।