देश के सर्वोच्च न्यायालय में राज्यों में उपमुख्यमंत्रियों को हटाने को लेकर एक जनहित याचिका दाखिल की गई थी। इस याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस डी.वाई.चंद्रचूड़ ने कहा कि एक उप-मुख्यमंत्री राज्य सरकार में सबसे पहले और सबसे महत्वपूर्ण मंत्री होता है और इस पद का संवैधानिक अर्थों में कोई वास्तविक संबंध नहीं है।
यह केवल एक लेबल है- सीजेआई
इस मामले में सुनवाई करते हुए सीजेआई डी.वाई.चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा, “यह केवल एक लेबल है। भले ही आप किसी को डिप्टी सीएम कहें, लेकिन संवैधानिक दर्जा तो मंत्री का ही है। किसी व्यक्ति विशेष की उपमुख्यमंत्री पद से संबद्धता का संवैधानिक अर्थों में कोई वास्तविक संबंध नहीं है। वे उच्च वेतन नहीं लेते हैं, वे मंत्रिपरिषद के किसी भी अन्य सदस्य की तरह हैं।”
संविधान में केवल मुख्यमंत्री पद का प्रावधान
वहीं न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा भी शामिल थे, ने कहा कि भारत के संविधान के तहत ऐसी नियुक्तियों के लिए कोई प्रावधान किए बिना राज्य सरकारों में उपमुख्यमंत्रियों की नियुक्ति को चुनौती देने वाली याचिका में सार नहीं है और इसे खारिज किया जाना चाहिए। वकील मोहन लाल शर्मा द्वारा दायर जनहित याचिका (पीआईएल) में कहा गया है कि संविधान के अनुच्छेद 164 में केवल मुख्यमंत्रियों की नियुक्ति का प्रावधान है और उपमुख्यमंत्रियों की नियुक्ति का राज्यों के नागरिकों या जनता से कोई लेना-देना नहीं है।
याचिका में क्या कहा था?
इसमें कहा गया है कि उपमुख्यमंत्रियों की नियुक्ति से बड़े पैमाने पर जनता में भ्रम पैदा होता है और राजनीतिक दलों द्वारा काल्पनिक विभाग बनाकर गलत और अवैध उदाहरण स्थापित किए जा रहे हैं क्योंकि उपमुख्यमंत्री कोई भी स्वतंत्र निर्णय नहीं ले सकते हैं, लेकिन उन्हें मुख्यमंत्रियों के बराबर दिखाया जाता है।
कई राज्यों में है उपमुख्यमंत्री
बता दें कि इस समय देश के ज्यादातर राज्यों में उपमुख्यमंत्री बनाए हुए हैं। हालांकि यह कोई संवैधानिक पद नहीं है लेकिन इसे राजनीतिक रूप से संतुष्ट करने के लिए माना जाता है। गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, बिहार, राजस्थान और कर्नाटक समेत कई अन्य राज्यों में उपमुख्यमंत्री बने हुए हैं।