कृत्रिम गर्भाधान के चलन ने स्वदेश गाय-भैंसों पशुओं की आनुवंशिकी को अत्यधिक परिवर्तित किया है। इससे दूध की मात्रा में तो वृद्धि हुई है एवं भारत विश्व का सबसे बड़ा दुग्ध उत्पादक देश बन गया है, लेकिन इसका दूसरा पक्ष है कि दूध की गुणवत्ता में गिरावट आई है।
भारत ने ऐसी जीनोमिक चिप डेवलप किया है, जो गाय-भैंसों के पिछले सात पुश्तों की आनुवंशिक स्थिति को तुरंत बता देगी। यह चिप आत्मनिर्भर भारत के उदाहरण के साथ-साथ देसी नस्लों की मवेशियों के संरक्षण एवं गो-पालकों की आय बढ़ाने में सहायक होगी। चिप तैयार है, जिसे 26 नवंबर को राष्ट्रीय दुग्ध दिवस के मौके पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी लांच कर सकते हैं।
भारतीय पशुओं की स्थितियां भिन्न
जीनोमिक चिप के जरिए किसी जीव के आनुवंशिक इतिहास का अध्ययन किया जाता है। कई विकसित राष्ट्रों ने डेयरी क्षेत्र की समृद्धि के लिए मवेशियों की आनुवांषिकी में काफी सुधार किया है, लेकिन उनके द्वारा तैयार चिप उनके ही पशुओं के अनुकूल है। भारतीय पशुओं की स्थितियां भिन्न हैं। इसलिए पशुपालन मंत्रालय ने गाय-भैंसों की स्वदेसी एवं उत्तम नस्लों के चयन के लिए अपना चिप बनाया है, जिसे गोवंश के लिए ‘गौ चिप’ एवं भैंस के लिए ‘महिष चिप’ नाम दिया गया है।
कृत्रिम गर्भाधान के चलते अपने देश की लगभग दो तिहाई से ज्यादा स्वदेसी गोवंश की पीढि़यां संकर नस्ल की हो चुकी हैं। वैज्ञानिक तरीके से देसी नस्ल के संरक्षण एवं संवर्धन के लिए गोकुल मिशन की शुरुआत 2014 में की गई थी।
देश में पहली बार बोवाइन आइवीएफ को प्रोत्साहित किया गया। किंतु सब्सिडी के बावजूद यह तकनीक किसानों की जेब पर भारी पड़ रही है। अन्य तकनीक है सेक्स सार्टेड सीमेन, जो प्रति डोज दो सौ रुपये में उपलब्ध है। एक गाय के लिए एक बार में तीन डोज लेना पड़ता है। इसके जरिए गायों को 90 प्रतिशत मामलों में सिर्फ बछिया पैदा होती है। किंतु इससे नस्ल का पता नहीं चल पाता।
कैसे काम करेगी चिप
गायों की देसी नस्ल जैसे गिर, कांकरेज, साहीवाल एवं ओंगोल का संरक्षण बड़ी चुनौती है। चिप के जरिए उच्च आनुवंशिक देसी गुणों वाले पशुओं का चयन कम उम्र में ही कर लिया जाएगा। ब्लड का ड्राप चिप पर डालते ही तुरंत पता चल जाएगा कि बछड़े की कौन सी नस्ल है। ब्लड स्पॉट में कुछ ज्ञात जीन के साथ कई अज्ञात जीन भी दिख सकते हैं।
पशुपालन एवं डेयरी मंत्री ने कही ये बात
मत्स्य पालन, पशुपालन एवं डेयरी मंत्री राजीव रंजन उर्फ ललन सिंह के मुताबिक आमतौर पर सात पीढि़यों के बाद नस्ल में बड़ा बदलाव आ जाता है। यह पता चलने पर कि बछिया या बछड़े का स्वदेसी मूल कितना बचा है, उसका इस्तेमाल उसी के अनुरूप किया जाएगा। बच्चे बड़े हो जाएंगे तो श्रेष्ठ गुणवत्ता के सांड के सीमेन को उत्तम नस्ल की गाय में फर्टाइल करने पर सर्वोत्तम नस्ल की स्वस्थ बछिया पैदा होगी, जिससे अधिक मात्रा में दूध (ए2) लिया जा सकेगा।
आगे कहा कि यह संकर नस्ल की गायों की तुलना में महंगा भी होगा, जिससे किसानों की आमदनी में वृद्धि होगी। चिप के आंकड़ों के विश्लेषण से गाय-भैंसों पर दवाओं का असर एवं बीमारियों का भी पता लग सकेगा, जिससे स्वास्थ्य को बेहतर बनाए रखने में मदद मिलेगी।