ये है सरिता कश्यप…पिछले 20 साल से अकेली महिला (सिंगल मदर) है, एक बेटी है जो कालेज में पढ़ती है! घर खर्चे के लिए पीड़ागढ़ी मे सीएनजीपंप के पास अपने स्कूटी पर राजमा चावल का स्टाल लगाती हैं.. रेट- छोटा प्लेट 40 रुपये, फुल प्लेट 60 रुपये. अगर आपके पास पैसे नहीं है तो भी आपको ये भूखा नहीं जाने देंगी. “खाना खा लो, पैसे जब हो तब दे जाना, या मत देना “ये कहकर आपको खिला देंगी, चाहे आप किसी भी जाति धर्म या सम्प्रदाय से जुड़े हुए हों. ये अपने पास के गरीब बच्चों को मुफ्त मे खिलाती है और उनके स्कुल के कापी, किताब, ड्रेस, जुते यानी कुछ भी कम हो तो खरीद कर देती हैं और हां… खाली समय मे बच्चों को पढ़ाती भी हैं.क्या इस महिला को किसी भी चैनल ने हाईलाइट किया ? नही.. क्योकि इस महिला की खबर में कोई ग्लैमर नही है… अगर हिंदू मुस्लिम वाली बात होती तब इसको अब तक हर कोई जान गया होता…खैर, इस महिला को इस नेक काम के लिये धन्यवाद और ये दिन दूनी रात चौगुनी तरक्की करें, यही कामना है।
सरिता कश्यप पश्चिम दिल्ली के पीरागढ़ी क्षेत्र में स्कूटी पर “अपनापन राजमा चावल” स्टॉल लगाती हैं और रोज़ लगभग 100 लोगों को मुफ़्त में राजमा चावल और रायता खिलाती हैं.
Hindustan Times के एक लेख के अनुसार, आस-पास की बस्तियों के बच्चे आंटी के स्टॉल पर रोज़ाना आते हैं. सरिता उन बच्चों के चेहरे पर मुस्कुराहट लाती हैं और यही उनका सुकून है. पश्चिम दिल्ली के पीड़ा गढ़ी में सरिता रोज़ाना सड़क पर भूखे घूमने वाले बच्चे, कचरा उठाने वाले, बेघर लोगों को खाना खिलाती हैं. सुबह के लगभग 11:30 बजे से सरिता अपनी स्कूटी लगाती हैं. ये स्टॉल 3-4 घंटे तक चलता है. खाना बनाने से लेकर, परोसने तक सब सरिता अकेले ही करती हैं।
सरिता ने 17 साल पहले अपनी नौकरी छोड़ी क्योंकि वो दूसरों के लिए कुछ करना चाहती थीं. स्टॉल लगाने के पहले दिन उन्होंने आस-पास कुछ बच्चों को घूमते देखा और उन्हें अपनी ज़िन्दगी का मकसद मिल गया. बच्चे भूखे थे लेकिन उनके पास खाना खरीदने के पैसे नहीं थे. सरिता ने बच्चों को राजमा चावल खिलाया और धीरे-धीरे बच्चों की संख्या बढ़ती गई. सरिता की कोशिशों की वजह से कई बच्चों को रोज़ाना घर का बना, स्वादिष्ट और स्वास्थवर्धक खाना मिल जाता है. सरिता भिखारियों, बेघरों को भी खाने के लिए बुलाती हैं।