स्थानीय शीला मैरिज हॉल में आयोजित आध्यात्मिक कार्यक्रम में राम कथा में अयोध्या से आए विश्व विख्यात मानस मर्मज्ञ संत शिरोमणि रामानंद दास जी महाराज ने चौथे दिन भगवान राम के पूज्य पिता राजा दशरथ से जुड़े कई प्रसंग का जिक्र किया । राजा दशरथ के शब्दभेदी बाण चलाने में दक्षता की चर्चा की जिसमें भक्त श्रवण कुमार की मौत और श्रवण के बूढ़े माता पिता से राजा दशरथ को श्राप दिए जाने की चर्चा की।
रामानंद दास जी महाराज ने कहा कि श्रवण ने मरते समय प्यासे मां पिता को जाकर पानी पिला देने का अनुरोध किया और जब राजा दशरथ श्रवण के माता पिता के पास पानी लेकर गए तो अंधे माता पिता ने श्रवण कुमार के नहीं होने का एहसास कर लिया और बेटे की मौत का जब उन्हें पता चला तब बूढ़े माता पिता ने राजा दशरथ को श्राप दे दिया कि जिस तरह बेटे के सदमें में हमलोग मरेंगे, वैसे ही तुम्हारी भी मौत बेटे के शोक में होगी ।
संत शिरोमणि रामानंद दास जी महाराज ने मंथरा प्रसंग और राम वनवास प्रसंग को विस्तार से बताया। उन्होंने कहा कि भगवान श्री राम को 14 वर्ष का वनवास दिलाने में मंथरा की भूमिका क्या रही और महारानी कैकेई ने क्या कुछ किया। संत रामानंद दास जी महाराज ने कहा कि महारानी कैकेई ने दशरथ से बकाया अपने दो वरदान के एवज में राजकुमार भरत के लिए राज गद्दी और श्री राम को 14 साल का बनवास मांग लिया ।
मंथरा द्वारा बताए गए योजना के तहत कैकेई के कोप भवन में जाने व वरदान मांगने से पहले भगवान राम की कसम खिलाने की बात कही ताकि राजा दशरथ वरदान देने से मुकर नहीं सकें। राजा दशरथ ने भरत की राजगद्दी की मांग तो मान ली मगर राम के वनवास के बदले कुछ और मांगने का अनुरोध रानी कैकेई से किया मगर कैकेई अपना दोनों वरदान लेने के लिए अड़ गई और राजा दशरथ को आखिरकार कैकेई की दोनो मांग माननी पड़ी। भगवान राम को 14 साल का वनवास देने के बाद गुस्से में राजा दशरथ ने कैकेई से उसका मुंह नही देखने की बात कह दी । और तभी राजा दशरथ को श्रवण के मरते अंधे मां-पिता के श्राप की भी अनुभूति हो गई ।
चौथे दिन के प्रवचन में ज्यादा भीड़ नजर आई और श्रोताओं व भक्तों के बीच महिलाओं की भी अच्छी संख्या रही।
उल्लेखनीय है कि प्रतिदिन अपराह्न तीन बजे से पाठ, प्रवचन शुरू होता है और संत रामानंद दास जी महाराज का राम कथा वाचन सांय 5 बजे के बाद से होता है।