केन्द्र से मैथिली को शास्त्रीय भाषा की मान्यता देने का अनुरोध

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पटना। बिहार ने केन्द्र सरकार से मैथिली भाषा को भारत की शास्त्रीय भाषा के रूप में मान्यता देने का अनुरोध किया है। इस संबंध में बिहार के शिक्षा मंत्री सुनील कुमार ने केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह को पत्र लिखा है, इसमें उन्होंने कहा है कि मैथिली शास्त्रीय भाषा का दर्जा पाने के सभी मानदंडों को पूरा करती है।

मंत्री ने अपने पत्र में लिखा है कि यह मान्यता केवल प्रतिष्ठा का विषय नहीं है, अपितु हमारी समृद्ध भाषाई विरासत को संरक्षित और प्रोत्साहित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। राज्य सरकार के इस पहल की जानकारी जदयू के कार्यकारी राष्ट्रीय अध्यक्ष व सांसद संजय कुमार झा ने ट्वीट कर सार्वजनिक की।

मैथिली का इतिहास 2000 वर्षों से अधिक पुराना 

प्राचीन शैक्षणिक संस्थाओं में प्रयुक्त मैथिली लिपि इसकी स्वतंत्र उत्पत्ति को रेखांकित करती है, जो कई अन्य भाषाओं से पुरानी है। इसके अलावा मैथिली में ऐतिहासिक गहराई है। भाषाई अध्ययन से पुष्टि होती है कि मैथिली का इतिहास 2000 वर्षों से अधिक पुराना है, जो ऋग्वेद के युग तक जाता है। मंत्री ने कहा कि मैथिली के इतिहास एवं सांस्कृतिक महत्व का विस्तृत संकलन संलग्न किया गया है। यह इसकी शास्त्रीय प्रतिष्ठा को प्रमाणित करता है। मैथिली को शास्त्रीय भाषा के रूप में मान्यता प्रदान करने से न केवल बिहार की भाषाई, सांस्कृतिक विरासत का सम्मान होगा अपितु प्राचीन ग्रंथों में निहित ज्ञान से दुनिया को भी अवगत कराया जा सकेगा।

संजय झा ने मुख्यमंत्री के प्रति आभार जताया

पूर्व मंत्री और जदयू सांसद संजय झा ने ट्वीट कर कहा कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के निर्देश पर बिहार सरकार के शिक्षा विभाग ने मैथिली भाषा को शास्त्रत्त्ीय भाषा की सूची में शामिल करने का आधिकारिक अनुरोध केन्द्र सरकार के पास भेज दिया है। इसके लिए सभी मिथिलावासियों की ओर से मुख्यमंत्री के प्रति आभार व्यक्त करता हूं। उन्होंने कहा कि हमें विश्वास है कि मैथिली भाषा को शास्त्रत्त्ीय भाषा का दर्जा मिलने से न सिर्फ इसके संरक्षण एवं संवर्धन के प्रयासों को बल मिलेगा और हमारे मिथिला एवं बिहार की भाषाई विरासत का सम्मान होगा, बल्कि मैथिली भाषा के प्राचीन ग्रंथों में निहित गहन ज्ञान से दुनिया को अवगत भी कराया जा सकेगा। पिछले माह नई दिल्ली में परिवहन, पर्यटन एवं संस्कृति संबंधी स्थाई संसदीय समिति की बैठक के दौरान मैंने संस्कृति मंत्रालय के अधिकारियों से भी इस संबंध में बात की थी।

मैथिली का प्रभाव तीस हजार वर्गमील में फैला : मंत्री

केन्द्र को भेजे पत्र में शिक्षा मंत्री ने कहा है कि मैथिली पूर्वोत्तर बिहार में लाखों लोगों की मातृभाषा है। इसका प्रभाव बिहार-नेपाल क्षेत्र के तीस हजार वर्ग मील में फैला हुआ है। साथ ही झारखंड में भी व्यापक रूप से बोली जाती है। इंडो-आर्यन भाषा परिवार के सदस्य के रूप में मैथिली एक समृद्ध लिपि परंपरा है। इसमें मिथिलाक्षर (तिरहुत), कैथी, देवनागरी और नेवारी जैसी लिपियां शामिल हैं। 2003 में भारत सरकार ने मैथिली भाषा को संविधान की 8वीं अनुसूची में शामिल करके इसके महत्व को स्वीकार किया है। आज मैथिली न केवल शिक्षा का माध्यम है बल्कि शासन और प्रशासन की भाषा भी है।

चार बिंदुओं पर बताई शास्त्रीय दर्जा की पात्रता

मंत्री ने अपने पत्र में शास्त्रत्त्ीय दर्जा के लिए चार बिन्दुओं पर मैथिली की पात्रता बतायी है। उन्होंने कहा कि मैथिली की प्राचीन साहित्यिक विरासत है। मैथिली लिपि, नालंदा और विक्रमशिला के प्राचीन विश्वविद्यालयों का अभिन्न अंग रही है। महापंडित राहुल सांकृत्यायन की ओर से तिब्बत से लाए गए दुर्लभ बौद्ध ग्रंथ जैसे प्रमाणवार्तिक भाष्य एवं प्रमाणवार्तिक वृत्ति इसकी ऐतिहासिक गहराई एवं साहित्यिक समृद्धि के प्रमाण हैं। इसी तरह मैथिली सांस्कृतिक रूप से भी समृद्ध है। यह अद्वितीय और जीवंत सांस्कृतिक विरासत का भंडार है, जो इसके साहित्य, लोककथाओं तथा परंपराओं में परिलक्षित होती है।

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