मिथिला की रोहू मछली को मिलेगा GI टैक, मछुआरों को मिलेगा ग्लोबल मार्केट, बढ़ेगी आय

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मिथिला की रोहू मछली को जीआई टैग मिलने की उम्मीद बढ़ गई है। पशु एवं मत्स्य विभाग अनुसंधान केंद्र, पटना के डॉ. टुनटुन सिंह के नेतृत्व में एक टीम ने हायाघाट के होरलपट्टी स्थिल गंगा सागर तालाब का जिला मत्स्य पदाधिकारी के साथ निरीक्षण किया। इसके बाद किशनगंज और मुजफ्फरपुर की टीम यहां से मछली का सैंपल लेकर गई है।

जिले में दो जगहों पर रोहू मछली की 10 से 15 साल पुरानी प्रजाति पाई जाती है, जिसमें बिरौल प्रखंड की पोखराम पंचायत स्थित कोनी घाट और दूसरी हायाघाट प्रखंड के होरलपट्टी स्थित गंगासागर तालाब शामिल हैं।

पिछले दिनों कोनी घाट में पानी काला हो जाने के कारण बड़े पैमाने पर मछलियां मर गई थीं। इस कारण पटना की टीम ने होरलपट्टी स्थित गंगासागर तालाब का चयन कर निरीक्षण किया। इस सप्ताह जिले की टीम उक्त तालाब से मछली का सैंपल लेगी। रोहू मछली तालाब की मछलियों की सबसे विशिष्ट प्रजातियों में से एक है।

मिथिला क्षेत्र की रोहू मछली विशेष रूप से दरभंगा और मधुबनी में अपने स्वाद के लिए विशिष्ट है। मत्स्य विभाग की मानें तो विशेषज्ञों ने इसे लेकर अपनी रिपोर्ट तैयार कर केंद्रीय वाणिज्य मंत्रालय को सौंप दिया है।

मिलेगा वैश्विक बाजार, बढ़ेगी आय

मत्स्य पालकों का कहना है कि मिथिला की रोहू मछली को जीआई टैग मिलने से विशेष पहचान के साथ वैश्विक बाजार मिलेगा। इससे किसानों की आय में बढ़ोतरी होगी। मत्स्य विभाग के अनुसार, जिले में 17 हजार टन रोहू मछली का वार्षिक उत्पादन होता है। इसके साथ ही जिले में रोहू, नैनी, कतला सहित अन्य मछलियों का सालाना उत्पादन 75 हजार टन है।

जीआई टैग मिलने की प्रक्रिया तेज

दरभंगा के जिला मत्स्य पदाधिकारी अनुपम कुमार ने बताया कि रोहू मछली को जीआई टैग मिलने की दिशा में प्रक्रिया तेज हो चुकी है। इसके लिए रोहू मछली का सैंपल एकत्रित कर जांच के लिए किशनगंज और मुजफ्फरपुर के लैब में भेजा गया है। यहां के लोग अभी आंध्र प्रदेश व पश्चिम बंगाल से आयातित मछलियों पर निर्भर हैं। यह क्षेत्र निकट भविष्य में मछली निर्यातक बन जाएगा।

Rajkumar Raju: 5 years of news editing experience in VOB.