देश-दुनिया में भूखों का पेट भरने के लिए भले ही नित्य नए-नए उपक्रम किए जा रहे हैं, लेकिन अब भी बड़ी आबादी भूखमरी के साये में जी रही है।
संयुक्त राष्ट्र खाद्य एवं कृषि संगठन (वर्ल्ड फूड आर्गेनाइजेशन) की रिपोर्ट के अनुसार विश्व का हर सातवां व्यक्ति यानी करीब 83 करोड़ लोग रोज भूखा सोता है। वहीं भारत में रोज 19 करोड़ लोग भूखे सोते हैं।
नेशनल हेल्थ सर्वे की मानें तो, इसके पीछे एक बड़ा कारण खाद्य पदार्थों की बर्बादी है। अगर खाद्य हानि को रोका जाए, तो इनमें कई लोगों का पेट भरा जा सकता है।
बिहार कृषि विश्वविद्यालय के विज्ञानियों ने खाद्य हानि और बर्बादी रोकने के लिए क्रांतिकारी खोज की है। अब जैविक विधि के माध्यम से लंबे समय तक खाने-पीने की चीजें सुरक्षित रखी जा सकेंगी।
संस्थान ने केला के छिलके से कार्बन क्वांटम डाट्स विकसित कर नई तकनीक का पेटेंट भी प्राप्त कर लिया है। ये नैनो कार्बन डाट्स ताजे खाद्य पदार्थों के भंडारण और हैंडलिंग में अहम भूमिका निभाएंगे।
विज्ञानियों की मानें तो दुनियाभर में हर साल मानव उपभोग के लायक लगभग 250 करोड़ टन खाद्य पदार्थ नष्ट या बर्बाद होता है। ऐसे में खाद्य पदार्थों की हानि और बर्बादी वैश्विक स्तर पर एक बड़ी चुनौती बन गई है। जिसका खाद्य सुरक्षा और आर्थिक-पर्यावरणीय स्थिरता पर गहरा प्रभाव पड़ रहा है।
बीएयू के वरिष्ठ विज्ञानी सह विश्व खाद्य संरक्षण संस्थान, अमेरिका के कार्यकारी निदेशक डॉ मोहम्मद वसीम सिद्दीकी ने बताया कि वर्ष 2015 में इसी संस्थान से खाद्य संरक्षण क्रांति की शुरुआत हुई है।
वह कहते हैं कि 2023 में उनके पदभार ग्रहण करने के बाद खाद्यान्न और अपशिष्ट के नुकसान को कम करने की दिशा में अभिनव पहल कर कई तकनीक विकसित की गई है। आम और केला अपशिष्ट (छिलके) से कार्बन डॉट्स विकसित करने में सफलता मिली है। इन नैनो डॉट्स में फसल कटाई के बाद होने वाले नुकसान को कम करने की क्षमता है।
सेकेंडरी एग्रीकल्चर कॉलेज खोलने की प्रक्रिया शुरू
खाद्य अपशिष्टों के न्यूनीकरण और उससे नए उत्पाद बनाने के लिए देश में पहला सेकेंडरी एग्रीकल्चर कालेज, बीएयू में खोलने की प्रक्रिया आरंभ कर दी गई है।
वहीं, बिहार का चौथा कृषि रोडमैप में द्वितीयक कृषि पर ध्यान केंद्रित किया गया है। जिसमें कृषि उपज के लिए प्रसंस्करण, मूल्य संवर्धन और बेहतर बाजार संपर्क शामिल हैं। इसके तहत फसल कटाई के बाद की तकनीक और खाद्य प्रसंस्करण में पेशेवरों को प्रशिक्षित करना है।
वर्तमान में बीएयू में खाद्य और मिष्ठान्नों में प्राकृतिक रंग भरने के लिए लीची के छिलके से लाल रंग (एंथोसायनिन) निकालने पर सफलता पूर्वक शोध किया जा रहा है।
ताजे फलों और सब्जियों की शेल्फ लाइफ और गुणवत्ता को बढ़ाने के लिए फलों के छिलके पर आधारित खाद्य कोटिंग विकसित की है, जो फलों और सब्जियों की लाइफ बढ़ा सकती है।
इसके लिए अमरुद, केला, तरबूज, कटहल, परवल जैसे विभिन्न फलों और सब्जियों के छिलकों का इस्तेमाल किया गया है। संस्थान ने गिरे हुए फलों यथा हरे आम के स्क्वैश, पाउडर (आमचूर), अचार आदि नए मूल्यवर्धित उत्पादों को विकसित किया है।
शोध, नवाचार से खाद्य अपशिष्ट का न्यूनीकरण
खाद्य अपशिष्ट के न्यूनीकरण के लिए बीएयू में नए शोध और नवाचार पर जोर है। इस कड़ी में लंबे समय तक ताजा नीरा का संग्रह करने के साथ ही ताड़ के पेड़ से निकलने वाली ताड़ी के बजाय मूलनीरा स्क्वैश, आरटीएस, जैम, कैंडी आदि बनाने की विधि विकसित की गई है।
विश्वविद्यालय ने इसके किण्वन को रोकने के लिए नीरा संग्रह कंटेनर (6-8 घंटे तक), स्वच्छ संग्रह के लिए रस संग्रह पालीबैग और रस पाउडर तैयार करने की विधि विकसित की है। तीनों तकनीकों का पेटेंट भी हासिल कर लिया गया है।
अनाज को सूखाने की प्रक्रिया के दौरान होने वाले नुकसान को कम करने के लिए एसटीआर ड्रायर विकसित किया है। जबकि चूहों, कीड़ों आदि से होने वाले नुकसान/क्षति से बचने के लिए अनाज के भंडारण के लिए हर्मेटिक बैग को बढ़ावा दिया गया है।हम खाद्य संरक्षण क्रांति की दिशा में सतत कार्य कर रहे हैं।
खाद्य हानि एवं बर्बादी रोकने के लिए विश्व खाद्य संरक्षण केंद्र (डबल्यूएफपीसी) के साथ मिलकर बिहार कृषि विश्वविद्यालय ने बड़ी पहल शुरू की है। कार्बन क्वांटम डाट्स से खाद्य संरक्षण में सफलता मिलेगी। डॉ. वसीम सिद्दीकी, कार्यकारी निदेशक, विश्व खाद्य संरक्षण केंद्र सह बीएयू विज्ञानी
खाद्य अपशिष्ट का न्यूनीकरण करने, उससे नए उत्पाद बनाने से संबंधित कई बेहतर तकनीक विकसित किए गए हैं। जिसका पेटेंट भी बीएयू को मिला है। इसी कड़ी में सेकेंडरी एग्रीकल्चर कालेज खोलने की पहल की जा रही है। ताकि, कृषि क्षेत्र व खाद्य पदार्थों के नुकसान को कम किया जा सके। डॉ. डीआर सिंह, कुलपति, बीएयू सबौर