भारतीय नौसेना के लिए सातवां एंटी-सबमरीन युद्धपोत जलयान लॉन्च, युद्धपोत का इस तरह किया जाता है नामकरण
गार्डन रीच शिपबिल्डर्स एंड इंजीनियर्स (जीआरएसई) लिमिटेड ने भारतीय नौसेना के लिए बनाए जा रहे आठ एंटी-सबमरीन वॉरफेयर शैलो वॉटर क्राफ्ट (एएसडब्ल्यू एसडब्ल्यूसी) में से सातवें जलयान का शुक्रवार को शुभारंभ किया। इस जलयान का शुभारंभ नेवी वेलफेयर एंड वेलनेस की अध्यक्ष संध्या पेंढारकर द्वारा किया गया। वे पूर्वी नौसेना कमान के फ्लैग ऑफिसर कमांडिंग-इन-चीफ वाइस एडमिरल राजेश पेंढारकर की पत्नी हैं। इस अवसर पर वाइस एडमिरल पेंढारकर मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित थे।
युद्धपोत का नामकरण और उसकी माता
जलयान का लॉन्च एक महत्वपूर्ण अवसर होता है जब जहाज को पहली बार पानी में उतारा जाता है और उसे नाम दिया जाता है। एक युद्धपोत के लॉन्च के समय ही उसका नामकरण होता है और यह उसे जन्म देने जैसा माना जाता है। जिस महिला द्वारा जलयान लॉन्च किया जाता है, उसे उस युद्धपोत की ‘माता’ माना जाता है जब तक कि उसे दशकों की सेवा के बाद निष्क्रिय नहीं कर दिया जाता। संस्कारों के बाद, इस एंटी-सबमरीन युद्ध शैलो वॉटर क्राफ्ट (यार्ड 3032) का नाम संध्या पेंढारकर ने “आईएनएस अभय” रखा।
एंटी-सबमरीन युद्धपोत की विशेषता
ये एंटी-सबमरीन युद्ध शैलो वॉटर क्राफ्ट (एएसडब्ल्यू एसडब्ल्यूसी) 2.7 मीटर के गहरे पानी में ही संचालन करने में सक्षम हैं और तटीय क्षेत्रों के नजदीक काम कर सकते हैं। ये कम तीव्रता समुद्री संचालन और खदान बिछाने के कार्यों में भी सक्षम हैं। 77.6 मीटर लंबा और 10.5 मीटर चौड़ा यह शक्तिशाली युद्धपोत तटीय जल के साथ-साथ विभिन्न सतहों और उप-सतह की पूर्ण निगरानी में सक्षम है और विमानों के साथ समन्वित एंटी-सबमरीन अभियानों में भाग ले सकता है।
एएसडब्ल्यू-एसडब्ल्यूसी पानी के जेट से चलने वाले जहाज हैं जो अधिकतम 25 नॉट्स की गति तक पहुंच सकते हैं। इन जहाजों में हल्के टॉरपीडो, एएसडब्ल्यू रॉकेट और खदानें शामिल होती हैं, जो एक प्रभावी एंटी-सबमरीन सेटअप का हिस्सा हैं। इन्हें 30 मिमी क्लोज-इन वेपन्स सिस्टम और 12.7 मिमी स्थिर रिमोट-कंट्रोल गन से भी सुसज्जित किया गया है। इसके साथ ही, इन जहाजों में हल-माउंटेड सोनार और लो-फ्रीक्वेंसी वैरिएबल डेप्थ सोनार लगे हैं, जो पानी के नीचे निगरानी में सहायक हैं।
नौसेना में एक आईएनएस अभय पहले से
वर्तमान में भारतीय नौसेना में एक आईएनएस अभय पहले से ही सेवा में है, जो पूर्व में सोवियत संघ में निर्मित एएसडब्ल्यू कोरवेट्स की अभय श्रेणी की अगुआई करता है। 1989 में भारतीय नौसेना में शामिल हुए इस जलयान के अन्य तीन जहाजों को पहले ही सेवामुक्त कर दिया गया है। 35 वर्ष पुराना आईएनएस अभय जल्द ही सेवामुक्त हो जाएगा, जिसके बाद इस नई उन्नत क्षमताओं वाले जलयान को उसकी जगह दी जाएगी, जो आधुनिक युग के सब-सतह खतरों से निपटने के लिए अधिक सक्षम है।
भारतीय शिपयार्डों में 63 युद्धपोत निर्माणाधीन
वाइस एडमिरल पेंढारकर ने भारतीय नौसेना को आधुनिक युद्धपोतों की आपूर्ति में जीआरएसई के प्रयासों की सराहना की। उन्होंने बताया कि वर्तमान में भारतीय शिपयार्डों में 63 युद्धपोत निर्माणाधीन हैं और भविष्य में नौसेना को और अधिक जहाजों की आवश्यकता होगी। उन्होंने कहा, भारतीय जलक्षेत्र में दुश्मन की पनडुब्बियों के होने की संभावना हमेशा बनी रहती है। इन एएसडब्ल्यू एससीडब्ल्यू के चालू होने के बाद एएसडब्ल्यू कोरवेट्स की सेवानिवृत्ति के बाद उत्पन्न हुआ मुख्य अंतर भरा जाएगा। महत्वपूर्ण यह है कि इन युद्धपोतों के 80 प्रतिशत उपकरण भारतीय आपूर्तिकर्ताओं और ओईएम से लिए गए हैं। जीआरएसई ने जहाज के लॉन्च से पहले ही लगभग 40 प्रतिशत कार्य पूरा कर लिया है। शिपयार्ड तीन उन्नत पी-17ए फ्रिगेट और चार नेक्स्ट जेनरेशन ऑफशोर पेट्रोल वेसल्स भी बना रहा है।
अब तक 72 युद्धपोतों की डिलीवरी
कमोडोर हरी ने बताया कि जीआरएसई ने जहाज निर्माण में नवीनतम तकनीक अपनाई है और सबसे उन्नत जलयानों पर कार्य कर रहा है। उन्होंने बताया कि आठ एएसडब्ल्यू एसडब्ल्यूसी के अनुबंध पर हस्ताक्षर के तुरंत बाद कोविड महामारी और उसके बाद आपूर्ति श्रृंखलाओं में आने वाली बाधाओं का सामना करना पड़ा था। उन्होंने कहा, हमने सभी चुनौतियों को पार कर अपनी प्रतिबद्धताओं को बनाए रखा। हमने भारतीय नौसेना को अब तक 72 युद्धपोतों की डिलीवरी की है और अगले एक दशक में शतक बनाने की उम्मीद है।
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