16 को शरद पूर्णिमा; जानिए इसका इतिहास और महत्व

Sharad Purnima

भागलपुर। शरद पूर्णिमा 16 अक्टूबर को है। हिंदू कैलेंडर के अनुसार, सालभर में 12 पूर्णिमा की तिथियां होती हैं। इसमें शरद पूर्णिमा का विशेष महत्व है। जगन्नाथ मंदिर के पंडित सौरभ कुमार मिश्रा ने बताया कि यह हर साल आश्विन माह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को मनाई जाती है। वैदिक पंचांग के अनुसार, पूर्णिमा तिथि 16 अक्टूबर बुधवार की रात 7:59 बजे शुरू होगी।

धार्मिक महत्व
शरद पूर्णिमा को भगवान श्रीकृष्ण और गोपियों के रासलीला से भी जोड़ा जाता है। मान्यता है कि इसी दिन भगवान श्रीकृष्ण ने वृंदावन में गोपियों के साथ महारासलीला की थी, जिसे ‘रास पूर्णिमा’ भी कहा जाता है। इस दिन चंद्रमा अपनी 16 कलाओं से पूर्ण होता है और उसकी किरणें अमृतमयी मानी जाती हैं।

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, शरद पूर्णिमा की रात को जागकर मां लक्ष्मी का स्वागत करना समृद्धि का प्रतीक है। खुले आसमान के नीचे खीर रखने की परंपरा का धार्मिक महत्व यह है कि चंद्रमा की किरणों से खीर में अमृत का संचार होता है, जिससे वह अधिक पौष्टिक और दिव्य भोजन बन जाता है। इसे प्रसाद के रूप में ग्रहण करने से स्वास्थ्य और समृद्धि में वृद्धि होती है। साथ ही, यह भी माना जाता है कि शरद पूर्णिमा की रात में मां लक्ष्मी पृथ्वी पर विचरण करती हैं और जो लोग जागरण करते हैं और खीर का भोग लगाते हैं, उन्हें मां लक्ष्मी का आशीर्वाद प्राप्त होता है।

वैज्ञानिक महत्व
शरद पूर्णिमा का समय वर्ष का वह चरण होता है जब मौसम बदल रहा होता है। गर्मियों के बाद यह पहली पूर्णिमा होती है और वातावरण में ठंडक का आगमन होने लगता है। इस दिन चंद्रमा पृथ्वी के सबसे नजदीक होता है, जिससे उसकी किरणें अत्यधिक प्रभावी होती हैं। वैज्ञानिक दृष्टिकोण से चंद्रमा की किरणें वातावरण में उपस्थित नकारात्मक ऊर्जा को कम करती हैं और खीर जैसे भोजन पर सकारात्मक ऊर्जा का प्रभाव डालती हैं। चंद्रमा की किरणों का सकारात्मक प्रभाव खीर के माध्यम से शरीर और मन दोनों पर पड़ता है, जो इसे एक विशेष और पवित्र अनुष्ठान बनाता है। आयुर्वेद के अनुसार, शरद पूर्णिमा की रात को चंद्रमा की किरणों में बैठकर खीर खाने से शारीरिक और मानसिक संतुलन बना रहता है और यह पाचन तंत्र को भी सुधारता है।

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