Uttar Pradesh

भाजपा से अपना गढ़ कन्नौज छीनना चाहती है सपा, अखिलेश यादव ने बनाया ये प्लान

देश में इस साल होने वाले लोकसभा चुनाव 2024 को लेकर सभी राजनीतिक पार्टियों ने वोटरों को साधने के लिए अपनी-अपनी रणनीति तैयार कर ली है। इस बार का चुनाव काफी दिलचस्प होने वाला है, क्योंकि सिर्फ दो गठबंधन एनडीए और इंडिया ही आमने-सामने हैं। उत्तर प्रदेश में इंडिया गठबंधन के बीच सीट शेयरिंग की प्रक्रिया चल रही है। इस बीच सपा के संभावित उम्मीदवारों की लिस्ट सामने आई है। अखिलेश यादव ने भारतीय जनता पार्टी (BJP) से अपना गढ़ छीनने का प्लान बनाया है।

चर्चा है कि सपा के अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव अपनी कर्मभूमि कन्नौज लोकसभा सीट से चुनाव लड़ सकते हैं। सपा की यह परंपरागत सीट रही है, लेकिन अभी यहां भाजपा का कब्जा है। अखिलेश यादव यह अच्छी तरह चाहते हैं कि अगर भाजपा से अपना गढ़ छीनना है तो उन्हें ही मैदान में उतरना पड़ेगा। उन्होंने कन्नौज से ही अपनी राजनीतिक करियर की शुरुआत की थी और वे यहीं से ही पहली बार सांसद बने थे। ऐसे में उनके सामने अपने गढ़ को बचाना बड़ी चुनौती है।

साल 2019 में कन्नौज से हारी थीं डिंपल यादव

पिछले लोकसभा चुनाव 2019 में भाजपा के प्रत्याशी सुब्रत पाठक ने कन्नौज से अखिलेश यादव की पत्नी डिंपल यादव को हराया था, जबकि साल 2014 के चुनाव में डिंपल यादव से इसी सीट से दूसरी बार सांसद बनी थीं। इससे पहले उन्होंने साल 2012 के उपचुनाव में निर्विरोध जीत दर्ज की थी। अगर इस बार भी सपा का कोई प्रत्याशी इस सीट से हार जाता है तो सियासी खेमे और लोगों में इसका गलत संदेश जाएगा, जिससे अन्य सीटों पर असर पड़ सकता है। ऐसे में अखिलेश यादव ने अपनी परंपरागत सीट कन्नौज हासिल करने के लिए खुद मैदान में उतरने का फैसला किया है।

जानें कन्नौज सीट का इतिहास?

साल 1967 में अस्तित्व में आई कन्नौज लोकसभा सीट से पहली बार संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी की ओर से समाजवादी नेता राम मनोहर लोहिया ने चुनाव लड़ा था और जीत दर्ज की थी। इसके बाद कांग्रेस से सत्य नारायण मिश्र ने साल 1971 में जीत हासिल की थी तो वहीं जनता पार्टी सेक्युलर से छोटे सिंह यादव साल 1980 में इसी सीट से सांसद बने थे। कांग्रेस ने फिर 1984 में इस सीट पर कब्जा कर लिया और शीला दीक्षित सांसद बन गईं। इसके बाद फिर साल 1989 और 1991 में छोटे सिंह यादव ने वापसी की। भाजपा के खाते में पहली बार 1996 में यह सीट आई थी और चंद्र भूषण सिंह सांसद बने थे। इसके दो साल बाद ही साल 1998 में प्रदीप यादव सांसद बने और एक साल बाद साल 1999 से लेकर 2000 तक मुलायम सिंह यादव यहीं से सांसद रहे थे।

मुलायम सिंह ने अपने बेटे के लिए छोड़ी थी सीट

मुलायम सिंह यादव ने साल 2000 में अपने बेटे अखिलेश यादव के लिए अपनी सीट छोड़ दी थी। 2000, 2004 और 2009 में अखिलेश यादव के पास यह सीट थी। साल 2012 में मुख्यमंत्री बनने के बाद उन्होंने लोकसभा सीट से इस्तीफा दे दिया था। इसके बाद उनकी पत्नी डिंपल यादव ने साल 2012 और 2014 के चुनाव में जीत हासिल की थी। हालांकि, साल 2019 में एक बार फिर भाजपा ने वापसी करते हुए कन्नौज सीट पर कब्जा कर लिया। अबतक भाजपा को सिर्फ दो बार ही इस सीट पर जीत मिली है।


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Sumit ZaaDav

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