भारत में यदि सबसे मुश्किल या यूं कहें कि सबसे कठिन परीक्षा कोई होती है तो वह है संघ लोक सेवा आयोग की परीक्षा। इस परीक्षा में सफल होने के बाद स्टूडेंट भारतीय प्रशासनिक सेवा या भारतीय पुलिस सेवा में नौकरी हासिल करते हैं। यानी साफ़ -साफ़ शब्दों में कहें तो आईएस या आईपीएस बनते हैं। ऐसे में आज हम आपको एक ऐसी कहानी बताएंगे जिसे जानकार आप भी दंग रह जाएंगे की आखिर उन्होंने यह फैसला लिया कैसे?
दरअसल, भारत में सिविल सेवा परीक्षा (UPSC) पास करना हर विद्यार्थी का सपना होता है। लेकिन यह राह इतनी आसान नहीं होती उसमें भी खासकर जब आपके सामने सामाजिक बंधनों और पारिवारिक परिस्थितियों की चुनौतियां भी सामने हो। लेकिन आज हम आपको बिहार की पहली और भारत की पांचवीं महिला आईपीएस अधिकारी मंजरी जरुहर की कहानी बताने वाले हैं जो अपने आप में काफी प्रेरणादायक कहानी है।
मंजरी जरुहर का जन्म एक प्रतिष्ठित परिवार में हुआ। उनके फैमली से कई सदस्य IAS और IPS अधिकारी रह चुके थे। ऐसे में हर किसी को यही लगता था कि इनके लिए अधिकारी बनना कोई बड़ी और नई बात नहीं होगी। लेकिन हकीकत इससे काफी परे थी। इसकी वजह थी कि उन्हें उस सपोर्ट की कमी महसूस हुई, जिसकी उन्होंने उम्मीद की थी। इनकी शिक्षा के प्रति उनकी गहरी रुचि थी, लेकिन समाज की बेड़ियों और पारिवारिक दायित्वों ने उनके रास्ते में कई तमाम रुकावटें खड़ी कर दी थी।
सबसे पहले तो महज 19 साल की उम्र में मंजरी की शादी एक IFS अधिकारी से कर दी गई। ऐसे में शादी के बाद उन्हें महसूस हुआ कि उनके पति और ससुराल वाले शिक्षा को लेकर गंभीर नहीं थे। लिहाजा घर की जिम्मेदारियों के बीच उनकी पढ़ाई और करियर के सपने कहीं खोने लगे। इसके बाद एक समय ऐसा भी आया जब उन्हें लगा कि वह पूरी जिंदगी सिर्फ गृहिणी बनकर रह जाएंगी।
वहीं, सबसे बड़ी बात यह है कि इस मुश्किल हालत में भी इन्होंने कभी भी खुद को कमजोर नहीं पड़ने दिया और अपनी पहचान खुद बनाने का फैसला किया। सबसे पहले इन्होंने अपने ससुराल से अलग होने का साहसिक कदम उठाया। इसके बाद मंजरी ने पटना वीमेंस कॉलेज से इंग्लिश ऑनर्स और फिर दिल्ली विश्वविद्यालय से पोस्ट ग्रेजुएशन पूरा किया।
इसके बाद उन्होंने UPSC परीक्षा की तैयारी शुरू की। साल 1974 में उन्होंने पहली बार परीक्षा दी, जिसमें प्रीलिम्स और मेंस तो पास कर लिया, लेकिन इंटरव्यू क्लियर नहीं कर पाईं। लेकिन सबसे बड़ी बात यह रही कि इस असफलता ने उन्हें तोड़ा नहीं, बल्कि और भी ज्यादा मजबूत बना दिया। उन्होंने 1975 में दोबारा परीक्षा दी और इस बार सफलता उनके कदम चूमी।
इधर, मंजरी जरुहर को IPS पद तो मिला, लेकिन IAS नहीं। इसके बाद उन्होंने 1976 में दोबारा UPSC परीक्षा दी। लेकिन इस बार न तो मेंस क्लियर हुआ और न ही इंटरव्यू। हालांकि, उन्होंने अपने IPS करियर को आगे बढ़ाया और देश के लिए उत्कृष्ट सेवा दी। उनकी यह कहानी संघर्ष, आत्मनिर्भरता और दृढ़ संकल्प का प्रतीक है। उन्होंने साबित किया कि परिस्थितियां कितनी भी विपरीत क्यों न हों, अगर इरादे मजबूत हों तो कोई भी मंजिल पाई जा सकती है।