दिल्ली-एनसीआर समेत उत्तर भारत के कई हिस्सों में 5.6 तीव्रता का भूकंप आया। यह तीन दिनों में दूसरा और एक महीने से कम समय में तीसरा भूकंप आया था। सोमवार को जहां दिल्ली-एनसीआर में 5.6 तीव्रता का भूकंप आया था। इससे पहले चार नवंबर को नेपाल में रिक्टर पैमाने पर 5.8 तीव्रता का भूकंप आया था जिसमें कम-से-कम 128 लोगों की मौत हो गई। बार-बार आ रहे भूकंप के झटकों ने एक बार फिर विशाल हिमालयी भूकंप के बारे में चर्चा शुरू कर दी है।
वैज्ञानिकों ने नियमित रूप से एक सख्त चेतावनी जारी की है कि हिमालय क्षेत्र में 8.5 की तीव्रता से अधिक का एक बड़ा भूकंप आने वाला है। भारतीय भूकंपविज्ञानियों के नेतृत्व में 2018 के एक अध्ययन में सुझाव दिया गया कि उत्तराखंड से पश्चिमी नेपाल तक फैला मध्य हिमालय “भविष्य में कभी भी” प्रभावित हो सकता है।
गुजरात और नेपाल में आया था विनाशकारी भूकंप
बेंगलुरु में जवाहरलाल नेहरू सेंटर फॉर एडवांस्ड साइंटिफिक रिसर्च के शोधकर्ताओं ने पिछले विनाशकारी भूकंपों से तुलना की है। 2015 के नेपाल भूकंप में लगभग 9,000 लोगों की जान चली गई थी। भूकंप की तीव्रता रिक्टर पैमाने पर 8.1 मापी गई थी। वहीं, साल 2001 में गुजरात में आए भूकंप में करीब 13,000 से अधिक मौतें हुईं थीं। भूकंप की तीव्रता 7.7 दर्ज की गई थी।
उससे पहले, 14वीं और 15वीं शताब्दी के बीच मध्य हिमालय में एक विनाशकारी भूकंप आया था, जिसकी तीव्रता 8.5 और 9 के बीच आंकी गई थी, जिससे 600 किलोमीटर का भूभाग खुल गया था। मध्य हिमालय में लगातार कम तीव्रता वाले भूकंपों के बावजूद, कई शताब्दियों से कोई बड़ी भूकंपीय गतिविधि नहीं हुई है। महत्वपूर्ण झटकों की अनुपस्थिति इस क्षेत्र में तनाव के पर्याप्त निर्माण का संकेत देती है, जिससे यह निष्कर्ष निकलता है कि एक बड़ा भूकंप आने वाली है।
भूकंप विज्ञानियों ने बताया कि हिमालय के नीचे दबाव बन रहा है, जो यूरेशियन प्लेट और भारतीय प्लेट की टेक्टोनिक रूप से सक्रिय सीमा पर स्थित है। विशेषज्ञों का लंबे समय से यह मानना रहा है कि छोटे भूकंपों को सामान्य घटना के रूप में खारिज नहीं किया जाना चाहिए, बल्कि इसे आने वाले बड़े भूकंप के संकेतक के रूप में देखा जाना चाहिए।