इमारत-ए-शरिया में सत्ता का संग्राम, भारी विवाद के बाद बड़ी संख्या में पुलिस बल तैनात

IMG 2854IMG 2854

पटना के फुलवारी शरीफ में स्थित इमारत-ए-शरिया मुख्यालय शनिवार को एक बड़े बवाल का गवाह बना। यहाँ नेतृत्व को लेकर दो गुटों में जमकर टकराव हुआ। अमीर-ए-शरियत और नाजिम के पद पर कब्जे की होड़ में धक्का-मुक्की तक बात पहुँच गई। एक तरफ मौजूदा अमीर-ए-शरियत हजरत अहमद वली फैसल रहमानी का गुट था, तो दूसरी ओर पूर्व सचिव मौलाना शिबली अलकासमी और पूर्व नाजिम मौलाना अनीसुर रहमान कासमी ने उनकी नियुक्ति को अवैध ठहराते हुए हंगामा खड़ा कर दिया। मामला इतना बढ़ गया कि पुलिस को बीच-बचाव के लिए भारी बल के साथ मौके पर उतरना पड़ा। आखिर क्या है पूरा माजरा? चलिए, इस विवाद की तह तक जाते हैं।

विवाद की जड़

शनिवार की सुबह इमारत-ए-शरिया मुख्यालय में तनाव उस वक्त शुरू हुआ, जब शिबली अलकासमी और अनीसुर रहमान कासमी के समर्थकों ने वली फैसल रहमानी के नेतृत्व को चुनौती दी। शिबली अलकासमी का दावा है कि फैसल रहमानी के पास विदेशी नागरिकता है, जिसके चलते उन्हें कुछ महीने पहले ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड से हटाया गया था। उनका कहना है, “फैसल न तो आलिम हैं और न ही इस पद के योग्य। बोर्ड ऑफ ट्रस्टी ने बहुमत से उन्हें हटाकर अनीसुर रहमान को अमीर और मुझे नाजिम नियुक्त किया।” यह आरोप अपने आप में गंभीर है, क्योंकि इमारत-ए-शरिया जैसे संस्थान में नेतृत्व की वैधता पर सवाल उठना आम बात नहीं।

दूसरी ओर, फैसल रहमानी के गुट ने इसे साजिश करार दिया। उनके समर्थकों का कहना है कि यह सब कुछ जदयू नेताओं की शह पर हो रहा है। उनके बयान में कहा गया, “इमारत शुरू से वक्फ संशोधन विधेयक का विरोध कर रही है। 26 मार्च को गर्दनीबाग में हमारा धरना-प्रदर्शन सफल रहा, जिससे जदयू बौखला गई। शनिवार को जदयू नेता पुलिस के साथ मिलकर संस्था पर कब्जा करने आए, लेकिन स्थानीय लोगों ने इसका विरोध किया।” इस गुट का आरोप है कि पुलिस ने भी हमलावरों का साथ दिया।

धक्का-मुक्की से लेकर पुलिस के हस्तक्षेप तक

जैसे ही दोनों गुटों के बीच बहस गर्म हुई, बात हाथापाई तक जा पहुँची। इमारत मुख्यालय में धक्का-मुक्की और शोर-शराबे की खबरें बाहर आईं। हालात बेकाबू होते देख एसडीपीओ सदर गौरव कुमार और फुलवारी शरीफ एसडीपीओ सुनील कुमार पुलिस बल के साथ मौके पर पहुँचे। दोनों पक्षों को समझाने की कोशिश की गई और काफी मशक्कत के बाद मामला शांत हुआ। लेकिन तनाव को देखते हुए मुख्यालय के आसपास भारी पुलिस बल तैनात कर दिया गया। यह दृश्य उस संस्था के लिए हैरान करने वाला था, जो बिहार, झारखंड और ओडिशा के मुस्लिम समुदाय की सबसे बड़ी आवाज मानी जाती है।

मुस्लिम लीग और सियासी साजिश

इस घटना ने उलमा-ए-किराम और सामाजिक संगठनों को भी मैदान में ला दिया। कई संगठनों ने इसे असंवैधानिक करार देते हुए कहा कि यह मुस्लिम लीग को कमजोर करने की साजिश का हिस्सा है। एक संगठन के नेता ने कहा, “इमारत-ए-शरिया को डराकर चुप नहीं कराया जा सकता। यह संस्था देश की पवित्रता, स्वतंत्रता और अधिकारों के लिए हमेशा लड़ती रहेगी। आने वाले चुनावों में इसका असर जरूर दिखेगा।” कुछ लोगों ने इसे जदयू और बीजेपी की रणनीति से भी जोड़ा, क्योंकि बीजद की हार के बाद ओडिशा में सियासी समीकरण बदले हैं और बिहार में भी ऐसा कुछ करने की कोशिश दिख रही है।

Related Post
Recent Posts
whatsapp