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‘स्लेट के टुकड़े पर की पढ़ाई’ भूख भी नहीं तोड़ पाई हौसला..फिर किया कमाल, बने IPS

इस तरह के कई उदाहरण समाज में दिए जाते हैं. आज ईटीवी भारत आपको ऐसी ही शख्सियत के बारे में बताने जा रहा है. एक ऐसे शख्स की कहानी के बारे में हम आपको बता रहे हैं, जिसका कोई स्थाई पता नहीं था. हम बात कर रहे हैं पटना के जिला अग्निशमन पदाधिकारी मनोज कुमार नट की. उन्होंने पहले तो बीपीएससी की परीक्षा पास की, अब वह आईपीएस हो गए हैं. अभी फिलहाल पटना के जिला अग्निशमन पदाधिकारी पद पर तैनात हैं.

कहीं स्थाई घर नहीं: मनोज कुमार नट बताते हैं कि वह जिस परिवार से आते हैं वह खानाबदोश जीवन जीता है. शुरुआती जीवन में वह अलग-अलग स्कूलों में पढ़े हैं क्योंकि, उनका कोई स्थाई पता नहीं था. उनका समुदाय लगातार घूमता रहता था. उनका परिवार लगातार यहां से वहां जाता रहता था और ऐसे में घूम-घूम कर उन्होंने पढ़ाई की.

“जीवन में एक टर्निंग पॉइंट यह आया कि सिवान के गोरिया कोठी में किसी की दी हुई जमीन पर स्थाई रहने का मौका मिला तो, प्रारंभिक पढ़ाई वहीं से शुरू की. फिर वहीं से मिडिल स्कूल और हाई स्कूल की पढ़ाई की. चूंकि मुझे पढ़ाई में ज्यादा दिलचस्पी थी तो पटना विश्वविद्यालय में भी साइंस से पढ़ाई पूरी की और 40वीं बीपीएससी में मेरा चयन हुआ और लगातार मैं मेहनत के बदौलत प्रमोशन पाता गया और आज मैं जिला पदाधिकारी अग्निशमन हूं.”मनोज कुमार नट, जिला अग्निशमन अधिकारी, पटना

‘हैंड टू माउथ की स्थिति थी’: मनोज कुमार नट बताते हैं कि देखिए शुरुआती दौर में काफी तंगी थी. हैंड टू माउथ की स्थिति थी. हमारे घर में खाने की कोई व्यवस्था नहीं थी. मेरे घर में कोई कमाने वाला भी नहीं था और ना ही हम लोगों की कोई खेती थी. हम लोग भूमिहीन थे और कहीं कृषि कार्य भी नहीं करते थे. हमारा पूरा परिवार मजदूरी ही किया करता था. जिसके आधार पर हमारा जीवनयापन हो रहा था.

पिता करते थे मजदूरी: मनोज कुमार नट आगे बताते हैं कि मेरा प्रारंभिक जीवन काफी परेशानियों भरा रहा. मेरे पिताजी मोती नट लकड़ी काटने और मजदूरी करने का काम करते थे और हम लोग चार भाई थे. पैसे के अभाव में दो भाई पढ़ नहीं पाए. तीसरे नंबर पर मैं था. मैं पढ़ने गया. ऐसा नहीं था कि मेरे परिवार वाले मुझे पढ़ाना चाहते थे. आस-पड़ोस में मैंने देखा कि कुछ बच्चे स्कूल जा रहे हैं तो मेरे मन में पढ़ने की ललक उठी.

‘टूटे हुए स्लेट पर पढ़ा’: एक महीना तो मैंने ऐसे ही पढ़ाई की. तब शिक्षक को लगा कि इस बच्चे को पढ़ने में काफी दिलचस्प है तो मेरे पिताजी को आकर उन्होंने कहा कि इसको पढ़ाइये. मेरे शिक्षक ने कहा कि यह बच्चा पढ़ेगा तो आगे कुछ करेगा. तब मुझे एक स्लेट मिला तो मैंने पढ़ाई शुरू की. बाकी सब लोग मजदूरी ही करते थे. मेरे पास पूरा स्लेट नहीं था. फूटा हुआ स्लेट लोगों से लेकर मैंने उस टुकड़े पर पढ़ाई की है.

‘समाज में शिक्षा का स्तर था काफी निम्न’ : मनोज कुमार नट बताते हैं कि हमारे समाज का शिक्षा स्तर भी काफी निम्न था. आपको बता दूं कि जब मैं पढ़ता था तो बहुत सारी महिलाएं और हमारी जो बहनें हैं वह पत्र लिखवाने के लिए घंटों इंतजार करती थीं. मुझे अच्छा नहीं लगता था कि हमारे समाज में शिक्षा का स्तर बहुत नीचे है. मुझे पढ़ना चाहिए. इसको लेकर मैंने लगातार मेहनत की.

‘बिहार-झारखंड में रहा अधिकारी’: उन्होंने आगे कहा कि मैंने स्कॉलरशिप लिया. मैं नेशनल यूथ सिवान जिला के तौर पर गोल्ड मेडलिस्ट चुना गया. मैं अपने स्कूल में अक्सर फर्स्ट आता था. 1997 में मेरी फायर डिवीजन में सर्विस शुरू हुई थी और मैं लगातार मेहनत कर रहा था और समय-समय पर मुझे प्रमोशन मिलते गया. बिहार में कई जगह पर काम करने के बाद मुझे झारखंड में भी काम करने का मौका मिला.

“डाल्टनगंज में मैंने शिक्षा की अलख जगाया. वहां के बच्चों को मैं पढ़ने के लिए प्रेरित करता था. लगातार काम करते हुए हमने जो मुख्य धारा से भटके हुए लोग हैं उनको मुख्य धारा में लाने की कोशिश की है. इसको लेकर सुदूर इलाके में भी लोगों तक पहुंच बनाकर काम किया. मैं रांची में भी कमांडेंट रहा हूं.”- मनोज कुमार नट, जिला अग्निशमन अधिकारी, पटना

बीएसएफ कमांडेंट पद पर हुआ था चयन: मनोज कुमार नट ने बताया कि यह मेरी पहली नौकरी नहीं है. इससे पहले मैं बीएसएफ कमांडेंट पद पर चयनित हुआ था. मैं वहां ज्वाइन नहीं किया, मैं बीपीएससी की परीक्षा पास करके यहां आ गया. लगातार मैं अपनी सेवा दे रहा हूं. अब मैं प्रमोशन पाकर फायर सर्विस में सीनियर डिविजिनल कमांडेंट बन गया हूं.


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