सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को बिहार के पूर्व सांसद आनंद मोहन सिंह की समयपूर्व रिहाई को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई की। कोर्ट ने सुनवाई को दौरान बाहुबली नेता आनंद मोहन सिंह को तुरंत अपना पासपोर्ट जमा करने को कहा। जस्टिस सूर्यकांत की अध्यक्षता वाली पीठ ने यह भी कहा कि आनंद मोहन सिंह हर पखवाड़े स्थानीय पुलिस स्टेशन में रिपोर्ट किया करें। बता दें कि याचिका मारे गए IAS अधिकारी जी. कृष्णैया की पत्नी ने दायर की थी।
जस्टिस सूर्यकांत की अध्यक्षता वाली बेंच ने आदेश दिया, ‘प्रतिवादी नंबर 4 (आनंद मोहन सिंह) को अपना पासपोर्ट स्थानीय पुलिस स्टेशन में जमा करने का निर्देश दिया जाता है और वह हर पखवाड़े उक्त पुलिस स्टेशन में अपनी उपस्थिति दर्ज कराएगा।’ बेंच में जस्टिस के.वी. विश्वनाथन भी शामिल थे। बेंच ने यह कहते हुए कि वह आगे कोई मौका नहीं देगी, केंद्र सरकार से कहा कि अगर जरूरी हो तो एक हफ्ते के भीतर अपना हलफनामा दाखिल करें। मारे गए नौकरशाह की विधवा की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ लूथरा ने केंद्र के 4 सप्ताह के अतिरिक्त समय के अनुरोध का विरोध किया।
27 फरवरी को होगी केस की अगली सुनवाई
लूथरा ने कहा कि केंद्र सरकार को पिछले साल मई में एक नोटिस जारी किया गया था और याचिका की एक प्रति भारत के अटॉर्नी जनरल के कार्यालय को भी दी गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने मामले की अगली सुनवाई 27 फरवरी को तय की है। बता दें कि बिहार जेल नियमावली में संशोधन के बाद आनंद मोहन सिंह को सहरसा जेल से रिहा कर दिया गया। मारे गए IAS अधिकारी की विधवा द्वारा दायर याचिका में आरोप लगाया गया है कि बिहार सरकार ने 2012 के बिहार जेल मैन्युअल में पूर्वव्यापी प्रभाव से संशोधन किया, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि आनंद मोहन सिंह को छूट का लाभ मिल जाए।
1994 में हुई थी IAS कृष्णैया की हत्या
वहीं, बिहार सरकार ने यह कहकर आनंद मोहन की रिहाई का बचाव किया है कि संशोधित छूट नीति का लाभ अन्य मामलों में भी बढ़ाया गया है और संशोधन में पीड़ित की स्थिति के आधार पर भेदभाव दूर किया गया है। बता दें कि साल 1994 में गोपालगंज के तत्कालीन जिला मजिस्ट्रेट कृष्णैया को भीड़ ने पीट-पीटकर मार डाला था। उस समय उनकी गाड़ी से गैंगस्टर छोटन शुक्ला के अंतिम संस्कार के जुलूस से आगे निकलने की कोशिश कर रही थी। कथित तौर पर भीड़ को आनंद मोहन सिंह ने उकसाया था।