कहते हैं न जब तक लक्ष्य की प्राप्ति न हो, तब तक उस काम को छोड़ना नहीं चाहिए. इसी वाक्या को कृति अग्रवाल (Kriti Agarwal) ने पूरा करके दिखाया है. उन्होंने मेडिकल प्रवेश परीक्षा तीसरी बार में क्लियर किया है. उन्होंने AIPMT 2012 इसके बाद 2013 में NEET और 2014 में भी नीट की परीक्षा दी. डॉक्टर बनने के अपने सपने को पूरा करने के लिए उन्होंने दो बार ड्राप भी किया है. कृति ने जब वर्ष 2012 में AIPMT दी थी, तो उन्होंने प्री राउंड क्वालिफाई कर ली, लेकिन वह मेन राउंड क्वालिफाई नहीं कर पाई. फिर उन्होंने ड्रॉप लिया और NEET 2013 की परीक्षा दी.
फेसबुक, व्हाट्सएप से बना ली थी दूरी
कृति ने परीक्षा पास करने के लिए जी तोड़ मेहनत की. उन्होंने पढ़ाई के लिए सभी सामाजिक संबंध तोड़ दिए थे और फेसबुक से भी दूरियां बना ली. इसके अलावा व्हाट्सएप भी बंद कर दिया था और स्कूल के सभी दोस्तों से संपर्क तोड़ लिया था. मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार वह उठते ही पहले दिन से ही परीक्षा के लिए पढ़ाई शुरू कर देती थी. वह अपने कमजोर बिंदुओं पर ध्यान देना शुरू किया, जो मुख्य रूप से फिजिक्स और केमिस्ट्री थे. उन्होंने प्रतिदिन फिजिक्स के प्रश्नों का प्रैक्टिस करना शुरू कर दिया और फिजिक्स के लिए कड़ी मेहनत की. वह पूरे साल सारे टेस्ट दिए थे. वह NCERT के बायोलॉजी में परफेक्ट थी.
पढ़ाई का था जुनून
कृति अग्रवाल (Kriti Agarwal) कोचिंग क्लास जाते समय पूरी सफर में अध्ययन करती थी. मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार जब वह बस स्टॉप पर बस का इंतज़ार करती थी, तब भी वह पढ़ाई करती रहती थी. यहां तक की वह प्लेटफ़ॉर्म पर लोकल ट्रेन का इंतज़ार करते हुए, लोकल ट्रेन में पढ़ाई करती थी. आपके जीवन का बहुत बड़ा प्रभाव आपके परिवार पर भी पड़ता है. कृति के माता-पिता समझ गए थे कि वह परीक्षा के लिए कड़ी मेहनत कर रही हैं इसलिए उन्हें ज्यादा परेशान नहीं करने की कोशिश की और मोरल सपोर्ट भी किया.
NEET में की अच्छा स्कोर
कृति ने UPCPMT भी दिया था, लेकिन कोर्स यूपी बोर्ड होने की वजह से वह अच्छा स्कोर नहीं कर पाईं. इस परीक्षा में उन्हें 1900 रैंक मिली लेकिन चयन नहीं हुआ. इसके बाद उनके पास दो विकल्प थे: या तो बीएससी करें या फिर छोड़ दें. लेकिन उन्होंने मेडिकल कॉलेज में सीट पाने के लिए इतना पागल थी कि खुद को बीएससी कॉलेज में बैठने की कल्पना भी नहीं कर सकती थी. उन्होंने अपने कोचिंग क्लास सर से अपनी समस्या पर चर्चा की और फिर से छोड़ने का फैसला किया. फिर पूरे साल मेहनत की और ऑल इंडिया रैंक 1084 हासिल की. इसके साथ ही डॉक्टर बनने के पहले पड़ाव को पार चुकी थीं.