बिहार सरकार द्वारा राज्य में सूफी परिपथ की स्थापना एक ऐतिहासिक कदम के रूप में देखी जा रही है। सूफी परंपरा जो प्रेम, सहिष्णुता और आध्यात्मिकता की प्रतीक मानी जाती है, अब बिहार के पर्यटन को एक नई ऊंचाई देने जा रही है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व में इस पहल को धर्मनिरपेक्षता और सांस्कृतिक धरोहर के संरक्षण की दिशा में एक महत्वपूर्ण प्रयास माना जा रहा है।
सूफी संस्कृति को सहेजने की दिशा में बढ़ा कदम
बिहार अपनी बौद्ध और जैन विरासत के लिए प्रसिद्ध है लिहाजा अब सूफी संस्कृति को भी सहेजने और बढ़ावा देने की दिशा में बड़ा कदम उठाया जा रहा है। इस परिपथ के अंतर्गत बिहार के विभिन्न हिस्सों में स्थित सूफी स्थलों को विकसित किया जा रहा है ताकि न केवल स्थानीय श्रद्धालुओं बल्कि देश-विदेश से आने वाले पर्यटकों को भी सूफी परंपरा से अवगत कराया जा सके।
सूफी स्थलों का होगा विकास
इस संबंध में राज्य के पर्यटन मंत्री राजू कुमार सिंह ने बताया कि हिंदू, बौध, सिख, जैन के साथ सूफी मान्यताओं के सभी स्थलों को चिह्नित कर सही रूप से पर्यटकीय दृष्टिकोण के साथ विकास के कार्य किए जा रहे हैं। पर्यटन विभाग के अनुसार इन स्थलों को विश्वस्तरीय सुविधाओं से लैस किया जाएगा, जिसमें बेहतर सड़क, रेस्ट हाउस, प्रकाश व्यवस्था और जानकारीपूर्ण साइनबोर्ड की व्यवस्था की जाएगी। इसके अलावा हर साल सूफी संगीत महोत्सव और अन्य सांस्कृतिक कार्यक्रमों का भी आयोजन किया जाएगा, जिससे लोगों को सूफी परंपरा से रू-ब-रू होने का अवसर मिल सके।
धर्मनिरपेक्षता की मिसाल
विशेषज्ञों का मानना है कि ये पहल बिहार में धार्मिक सौहार्द को मजबूत करेगी और सांस्कृतिक पर्यटन को बढ़ावा देगी। सूफी परंपरा की बुनियाद प्रेम और एकता पर आधारित होती है और सरकार का यह कदम समाज में भाईचारे को और मजबूत करेगा। बिहार का यह सूफी परिपथ न केवल राज्य की ऐतिहासिक धरोहर को जीवंत बनाएगा बल्कि आध्यात्मिकता और पर्यटन के माध्यम से राज्य की अर्थव्यवस्था को भी सशक्त करेगा।
पुनौराधाम के लिए तैयार किया जा रहा ब्लूप्रिंट
इसके अतिरिक्त हिंदू धर्म के स्तंभ प्रभु श्रीराम की अर्धांगिनी माता सीता की जन्मस्थली पुनौराधाम को भी एक नए धार्मिक स्थल के रूप में विकसित करने व पर्यटकीय दृष्टिकोण से अवसंरचनात्मक निर्माण के लिए पर्यटन विभाग, बिहार सरकार द्वारा ब्लूप्रिंट तैयार किया जा रहा है।
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