अमृत योजना वाले 500 शहरों को स्मार्ट सिटी मिशन के दायरे में लेने का सुझाव, जून के बाद चल सकता है दूसरा चरण
इस साल जून के बाद स्मार्ट सिटी मिशन (Smart City Mission) का दूसरा चरण शुरू हो सकता है। वैसे तो इस बारे में कोई भी अंतिम फैसला आम चुनाव के नतीजे आ जाने के बाद ही होगा, लेकिन आवासन और शहरी कार्य मंत्रालय इसके लिए तैयार है।
मंत्रालय ने शुरू की तैयारी
देश के सौ शहरों की व्यवस्थाओं में बदलाव लाने और उसे अधिक से अधिक तकनीक से जोड़ने के लिए 2015 में शुरू किए गए इस मिशन के दूसरे चरण के लिए मंत्रालय ने तैयारी भी शुरू कर दी है। इसके लिए मंत्रालय ने व्यय विभाग को एक प्रस्ताव भी भेजा है।
फेस-टू में रखा जाएगा खासा ध्यान
मंत्रालय ने कहा है कि पिछले आठ-नौ सालों में स्मार्ट सिटी मिशन के क्रियान्वयन से जो सीख मिली है, उसका फेस-टू में ध्यान रखा जाएगा, ताकि देश के ज्यादा से ज्यादा शहर बेहतर बन सकें। मंत्रालय के समक्ष यह सुझाव भी आया है कि शहरी विकास के लिए चलाई जा रही अमृत योजना में शामिल 500 शहरों और आजीविका मिशन वाले 4041 शहरी स्थानीय निकायों में स्मार्ट सिटी मिशन जैसा ढांचा उपयोगी हो सकता है।
मंत्रालय को दिया गया है सुझाव
मंत्रालय को यह सुझाव भी दिया गया है कि स्मार्ट सिटी मिशन के अगले चरण में टियर टू शहरों पर जोर दिया जाना चाहिए, खासकर ऐसे शहरों में जो राज्यों की राजधानी से 50 से सौ किलोमीटर के दायरे में बसे हों या फिर पर्यटन के लिहाज से अहम हों। इससे न केवल राजधानियों में भीड़भाड़ कम करने में मदद मिलेगी, बल्कि टियर थ्री शहरों को विकास के लिए पर्याप्त अवसर और प्रेरणा भी मिलेगी।
राज्य सरकारों ने मिशन को आगे बढ़ाने की दिखाई इच्छा
कई राज्य सरकारों ने समय सीमा के बाद भी स्मार्ट सिटी मिशन को आगे बढ़ाने की इच्छा दिखाई है। शहरी कार्य मंत्रालय अब जून के बाद पहले चरण को और विस्तार देने की मनोदशा में नहीं है। इसलिए उसने सारा ध्यान इस समय सीमा के भीतर ज्यादा से ज्यादा परियोजनाओं को पूरा करने पर लगाया है। इस मिशन में कुल 7200 परियोजनाएं हैं, जिनमें 73 प्रतिशत यानी 5700 पूर्ण हो चुकी हैं। बाकी 2200 में केवल चार सौ ही ऐसे हैं (वह भी ज्यादातर पूर्वोत्तर में) जो अधूरे ही रह जाने के आसार हैं।
मंत्रालय के सचिव ने क्या कहा?
मंत्रालय के सचिव ने मनोज जोशी ने कहा है कि इस मिशन को आगे ले जाने का हमारा कोई इरादा नहीं है। सौ प्रतिशत परियोजनाएं पूर्ण होना बहुत मुश्किल है। जो प्रोजेक्ट बच जाएंगे, उन्हें जहां है जैसा है, के आधार पर बंद कर दिया जाएगा। इनसे राज्य सरकारें निपटेंगी और अपने पैसे से इन्हें पूरा करेंगी। हर स्कीम में ऐसा होता है। इसके अलावा कोई उपाय नहीं है। अगर कोई राज्य सरकार पांच साल में परियोजना का क्रियान्वयन नहीं कर पाई तो और क्या उपाय हो सकता है।
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