सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय संविधान बेंच ने 4 और 1 के बहुमत से असम के अवैध प्रवासियों से संबंधित नागरिकता अधिनियम की धारा 6ए को सही करार दिया है। 01 जनवरी 1966 से 25 मार्च 1971 तक पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) से असम आए लोगों की नागरिकता बनी रहेगी। उसके बाद आए लोग अवैध होंगे। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि असम की कम आबादी देखते हुए कट ऑफ डेट बनाना सही था।
नागरिकता कानून की धारा 6ए को संवैधानिक रूप से वैध
पांच सदस्यीय बेंच के सदस्य जस्टिस जेबी पारदीवाला ने अपने फैसले में नागरिकता कानून की धारा 6ए को असंवैधानिक करार दिया। जबकि चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस एमएम सुंदरेश और जस्टिस मनोज मिश्रा ने नागरिकता कानून की धारा 6ए को संवैधानिक रूप से वैध करार दिया।
प्रावधान के तहत 17,861 लोगों को नागरिकता प्रदान की गई
सुप्रीम कोर्ट ने 12 दिसंबर 2023 को फैसला सुरक्षित रख लिया था। सुनवाई के दौरान केंद्र ने कहा था कि देश के विभिन्न हिस्सों में रह रहे अवैध प्रवासियों का आंकड़ा जुटना संभव नहीं है क्योंकि ऐसे लोग देश में चोरी-छिपे प्रवेश करते हैं। केंद्र की ओर से दाखिल हलफनामे में कहा गया था कि इस प्रावधान के तहत 17,861 लोगों को नागरिकता प्रदान की गई है। केंद्र ने कहा था कि 1966 से लेकर 1971 के बीच फॉरेन ट्रिब्यूनल के आदेशों के तहत 32,381 ऐसे लोगों को पता लगाया गया, जो विदेशी थे।
अवैध प्रवासियों का सटीक आंकड़ा जुटाना संभव नहीं
कोर्ट ने सवाल पूछा था कि 25 मार्च 1971 के बाद भारत में अवैध तरीके से घुसे प्रवासियों की अनुमानित संख्या कितनी है। इस पर केंद्र ने कहा कि अवैध प्रवासी बिना वैध यात्रा दस्तावेजों के गुप्त तरीके से देश में प्रवेश कर लेते हैं। अवैध रूप से रह रहे ऐसे विदेशी नागरिकों का पता लगाना, उन्हें हिरासत में लेना और निर्वासित करना एक जटिल प्रक्रिया है। चूंकि देश में ऐसे लोग गुप्त तरीके से और चोरी-छिपे प्रवेश कर जाते हैं इसलिए देश के विभिन्न हिस्सों में रह रहे ऐसे अवैध प्रवासियों का सटीक आंकड़ा जुटाना संभव नहीं है। याचिकाओं में असम समझौते को आगे बढ़ाने के लिए 1985 में हुए संशोधन को चुनौती दी गई थी।