बिहार में आरक्षण का दायरा बढ़ाकर 65 फीसदी करने के राज्य सरकार के निर्णय पर पटना हाई कोर्ट की रोक के खिलाफ शुक्रवार को राष्ट्रीय जनता दल (RJD) की याचिका पर सुनवाई हुई. राजद की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने बिहार आरक्षण संशोधन कानून को रद्द करने के पटना HC के आदेश के विरुद्ध नोटिस जारी किया. राजद ने पटना हाई कोर्ट के उस फैसले को चुनौती दी है जिसमें आरक्षण का दायरा 50 से बढ़ाकर 65 फीसदी किए जाने के प्रावधान को रद्द कर दिया गया था. सुप्रीम कोर्ट से नोटिस जारी होने के बाद लालू यादव की पार्टी राजद की ओर से जारी एक बयान में कहा गया कि राजद वंचितों, उपेक्षितों के आरक्षण और अधिकार को लेकर सड़क, सदन और न्यायालय तक लड़ती रहेगी. 43 सीट वाले CM नीतीश कुमार RSS की गोद में बैठ BJP को लाड़-प्यार करते रहे लेकिन हम पिछड़ों-दलितों-आदिवासियों के लिए अपनी वैचारिक लड़ाई आमने-सामने से लड़ते रहेंगे.
दरअसल, बिहार में पिछले वर्ष जब लालू यादव की पार्टी राजद के समर्थन से नीतीश कुमार राज्य में सरकार चला रहे थे तब जातीय गणना कराई गई थी. तेजस्वी यादव उस सरकार में उप मुख्यमंत्री थे. जातीय गणना की 2 अक्टूबर 2023 को पेश आंकड़ों के बाद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार एससी-एसटी और ओबीसी वर्ग के आरक्षण की सीमा को बढ़ाकर 50 प्रतिशत से 65 फीसदी कर दिया था. हालांकि बाद में इसके खिलाफ कुछ संगठनों द्वारा पटना हाई कोर्ट में याचिका दायर की गई और कोर्ट ने 65 फीसदी आरक्षण बढ़ाने के फैसले को रद्द कर दिया.
राजद ने अब इस मामले में खुद को पार्टी बनाते हुए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है. इसी को लेकर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई. सुप्रीम कोर्ट ने अब इस मामले में नोटिस जारी किया है. इसी पर राजद ने कहा है कि उनकी लड़ाई जारी रहेगी. वंचितों के हक में वे सड़क, सदन और न्यायालय तक लड़ेंगे. साथ ही मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर भी जोरदार हमला करते हुए तेजस्वी यादव की राजद ने सीएम नीतीश पर आरएसएस-बीजेपी के गोद में जाकर पिछड़ों-दलितों-आदिवासियों के विरुद्ध काम करने का आरोप लगाया है.