नई दिल्ली/पटना: संघ लोक सेवा आयोग (BPSC) की 70वीं प्रारंभिक परीक्षा को रद्द कराने की मांग करने वालों को सुप्रीम कोर्ट से बड़ा झटका लगा है। सुप्रीम कोर्ट की दो सदस्यीय पीठ ने इस संबंध में दाखिल याचिका को खारिज करते हुए कहा कि परीक्षा में गड़बड़ी का कोई ठोस और विश्वसनीय प्रमाण नहीं मिला है।
क्या कहा सुप्रीम कोर्ट ने?
सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस मनमोहन की पीठ ने याचिका को खारिज करते हुए कहा कि पेपर लीक का जो दावा किया गया है, वह केवल आरोपों पर आधारित है और उसके समर्थन में प्रस्तुत डिजिटल सबूत (व्हाट्सएप मैसेज और वीडियो क्लिप्स) की प्रमाणिकता संदिग्ध है। कोर्ट ने कहा कि “हमारे सामने कोई ऐसा साक्ष्य नहीं रखा गया, जो यह साबित कर सके कि परीक्षा प्रक्रिया संपूर्ण रूप से भ्रष्ट हुई है।”
पीठ ने यह भी स्पष्ट किया कि जिस परीक्षा केंद्र — बापू परीक्षा परिसर — को लेकर सबसे अधिक आरोप लगाए गए थे, वहां पहले ही पुनर्परीक्षा कराई जा चुकी है। ऐसे में पूरी परीक्षा रद्द करने का कोई औचित्य नहीं है।
हाईकोर्ट भी कर चुका है याचिकाएं खारिज
इससे पहले पटना हाईकोर्ट ने भी BPSC परीक्षा रद्द करने को लेकर दाखिल की गई सभी याचिकाओं को खारिज कर दिया था। याचिकाकर्ताओं ने इसके बाद सुप्रीम कोर्ट में विशेष अनुमति याचिका (SLP) दाखिल की थी।
याचिकाकर्ताओं के तर्क और कोर्ट की प्रतिक्रिया
सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता अंजना प्रकाश और कॉलिन गोंसाल्वेस ने दलीलें पेश कीं। उन्होंने कोर्ट में व्हाट्सएप चैट, वीडियो क्लिप्स और कोचिंग सेंटरों से मिलते-जुलते प्रश्नों को आधार बनाकर पूरे पेपर की सत्यता पर सवाल उठाए। कोर्ट ने हालांकि इन दलीलों को पर्याप्त नहीं माना।
जस्टिस मनमोहन ने कहा, “आजकल कोई भी परीक्षा विवादों से अछूती नहीं रह पाती। हम हर किसी को संदेह की नजर से देखने लगे हैं, जो दुर्भाग्यपूर्ण है।” उन्होंने यह भी कहा कि “कई बार मॉक टेस्ट के प्रश्न वास्तविक परीक्षा में आ जाते हैं, यह असामान्य नहीं है।”
सरकार और BPSC का पक्ष
भारत के सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सरकार और आयोग की ओर से पेश होकर बताया कि परीक्षा में चार अलग-अलग सेट थे और कुल 150 प्रश्नों में से केवल 2 प्रश्न ऐसे थे जो मॉक पेपर्स से हूबहू मेल खाते थे। उन्होंने कहा कि आयोग ने पारदर्शिता बनाए रखने की हर संभव कोशिश की है।