देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने गरीब और अमीर की दो जातियों की चर्चा कर बिहार के जातीय गणना की राजनीति को कुंद करने की कोशिश कर रहे हैं,वहीं बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री एवं राज्यसभा सांसद सुशील कुमार मोदी ने नीतीश –तेजस्वी की सरकार पर बड़ा आरोप लगाया हैउन्हौने कहा कि सरकार के इशारे पर उपजाति जोड़ो और तोड़ो अभियान चलाया गया जिसमें नीतीश कुमार की कुर्मी और तेजस्वी यादव की यादव जातियों की उपजातियों को एक साथ जोड़कर गणना की गयी जिससे कि उनकी संख्या ज्यादा दिखे,वहीं अति पिछड़े,बनिया एवं दूसरे अन्य जातियों की उपजातियों को खंड-खंड करके गणना करवाई जिसकी वजह से उनकी संख्या इतनी कम दिख रही है कि वे अपने राजनीतिक और सामाजिक हिस्सेदार मांगने की सोच भी नहीं सकतें हैं।
सुशील मोदी ने कहा कि बिहार के जातीय सर्वे में कुछ जातियों को कम और कुछ खास जातियों को उनकी उपजातियों को जोड़ कर ज्यादा दिखाने जैसी कई गंभीर शिकायतें मिल रही हैं। इसके निराकरण और जातियों का नया वर्गीकरण करने के लिए सरकार को हाईकोर्ट के किसी रिटायर्ड जज की अध्यक्षता में आयोग गठित करना चाहिए।
सुशील मोदी ने आगे कहा कि सर्वे में ग्वाला, अहीर, गोरा, घासी, मेहर , सदगोप जैसी दर्जन-भर यदुवंशी उपजातियों को एक जातीय कोड “यादव” देकर इनकी आबादी 14.26 फीसद दिखायी गई। वहीं कुर्मी जाति की आबादी को भी घमैला, कुचैसा, अवधिया जैसी आधा दर्जन उपजातियों को जोड़ कर 2.87 फीसदी दिखाया गया और ये संयोग है कि मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री की जाति को उपजातियों-सहित गिना गया, जबकि वैश्य, मल्लाह, बिंद जैसी जातियों को उपजातियों में खंडित कर इऩकी आबादी इतनी कम दिखायी गई कि इन्हें अपनी राजनीतिक ताकत का एहसास नहीं हो ?
उन्होंने कहा कि बनिया (वैश्य) जाति की आबादी मात्र 2.31 फीसद दिखाने के लिए इसे तेली, कानू, हलवाई, चौरसिया जैसी 10 उपजातियों में तोड़ कर दिखाया गया। यदि उपजातियों को जोड़ कर एक कोड दिया गया होता, तो बनिया की आबादी 9.56 प्रतिशत होती। इसी तरह मल्लाह जाति को 10 उपजातियों में तोड़ कर इनकी आबादी 2.60 फीसद दर्ज की गई। उपजातियों को जोड़ने पर मल्लाह जाति की आबादी 5.16 फीसद होती। नोनिया जाति की आबादी 1.9 प्रतिशत दर्ज हुई, जबकि इनकी बिंद, बेलदार उपजातियों को जोड़ कर आबादी 3.26 प्रतिशत होती है।
सुशील मोदी ने आरोप लगाया कि कुछ चुनिंदा जाति-धर्म के लोगों की गिनती में सरकार ने एक साजिश के तहत “उपजाति-जोड़ो” फार्मूला लगाया, तो कई अन्य जातियें के लिए “उपजाति-तोड़ो” फार्मूला लगाया। यह भेद-भाव किसके आदेश से हुआ, इसकी जाँच होनी चाहिए।