स्वामी विवेकानंद के शिकागो भाषण ने पिरोया था दुनिया को एकता के सुर में, छोड़ी थी भारत की छाप

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दुनिया में ऐसे कई महान व्यक्ति हुए हैं जिन्होंने विचारों ने न केवल लोगों को नया नजरिया दिया बल्कि समग्र विकास की दिशा में अपना योगदान भी दिया. इसी कढ़ी में स्वामी विवेकानंद के उस शिकागो भाषण को भी याद किया जाता है जिसने अपने विचारों से दुनिया को हिला दिया. 11 सिंतबर के दिन को स्वामी विवेकानंद के शिकागो भाषण के दिन के रूप में याद किया जाता है और दिग्विजय दिवस के रूप में मनाया जाता है.

इस साल 131 वां दिग्विजय दिवस मनाया जा रहा है, साल 1893 में स्वामी विवेकानंद ने यह भाषण उस समय दिया था जब भारत अंग्रेजी हुकुमत की गुलामी की बेड़ियों में जकड़ा हुआ था और स्वतंत्र होने की राह देख रहा था. साल 1892 में स्वामीजी अपने 12 वर्षों तक भारत की यात्रा के बाद कन्याकुमारी पहुंचे थे. कई दिनों तक ध्यान करने और भारत का ध्यान करने के बाद उन्होंने जाना कि अपने देश के पतन का सबसे बड़ा कारण यहां के लोगों में आत्मविश्वास और एकता की कमी थी. इसके बाद स्वामी विवेकानंद तकरीबन 2 महीनों तक 8000 मील की यात्रा करने के बाद जुलाई के महीने में 1893 में शिकागों पहुंचे.

जब स्वामी विवेकानंद शिकागों शहर पहुंचे, उस वक्त उन्हें इस बात की जानकारी मिली कि विश्व धर्म संसद को सितंबर तक के लिए टाल दिया गया है. उस वक्त वो शहर उनके लिए एकदम अंजान था, रहने-खाने का कोई भी जुगाड़ नहीं था. पैसे भी नहीं थे, जिस वजह से उन्हें ज़ीरों डिग्री तापमान पर एक स्टेशन के खाली डिब्बे के बीच में ही सोना पड़ा. हालांकि बाद में संसद को जानकारी मिलने पर उन्होंने उनकी मदद की.

वो 11 सिंतबर 1893 का ही दिन था जब विश्व के प्रसिद्ध प्रतिनिधियों के साथ स्वामी विवेकानंद भी मौजूद थे जोकि विश्व धर्म संसद में भाग लेने वाले थे. स्वामीजी की बिल्कुल भी तैयारी नहीं थी, उन्होंने उस वक्त सरस्वती को प्रणाम करते हुए मेरे अमरिकी बहनों और भाइयों के साथ शुरुआत की. इतना सुनते ही पूरा ऑडिटोरियम तेज तालियों की गूंज से गड़गड़ा उठा. उनकी हर एक शब्द को वहां मौजूद हर एक व्यक्ति ने बड़ी ही उत्सुकता के साथ सुना.

स्वामी विवेकानंद ने कहा कि मुझे ऐसे धर्म से जुड़े होने पर गर्व है जिसने पूरी दुनिया को सहष्णुता और सार्वभौमिकता का रास्ता दिखाया है. हम सार्वभौमिक सहिष्णुता में विश्वास रखने के साथ सभी धर्मों का भी सम्मान करते हैं और उन्हें स्वीकार करते हैं. स्वामीजी ने वहां पर सार्वभौमिक धर्म की बात कही जोकि कोई और नहीं बल्कि मानवता का धर्म है. उस धर्म संसद को इसाइयों को एकमात्र धर्म को सबसे सच्चा धर्म घोषित करने के आयोजित किया गया था वहां मौजूद सभी लोग स्वामी विवेकानंद के विचारों को सुनकर उनके विचारों से प्रभावित हुए. उनका दृष्टिकोण समावेशी था जोकि सभी को साथ चलने की बात करता था.

असल में स्वामी विवेकानंद के वक्तव्य के पीछे का मुख्य संदेश सभी को विश्व बंधुत्व की भावना को उजागर करना था जिसकी बात उस वक्त शायद ही किसी ने की थी. उस वक्त स्वामी विवेकानंद ने कहा था कि मुझे एक ऐसे देशे में पैदा होने पर गर्व है जिसने सभी देशों से सताए हुए शरणार्थियों को शरण दी है, और उनका भरण पोषण किया है.

आगे स्वामी विवेकानंद कहते हैं कि मुझे ये कहते हुए भी गर्व होता है कि हमने उन इसाइयों को भी इकट्ठा किया है, जोकि दक्षिण से भारत आए शरण भी ली. स्वामी विवेकानंद ने उस वक्त कई बातें बोली जोकि आज ही हर देशवासी के लिए प्रेरणा है. उस भाषण में न केवल कई अलंकृत शब्दों का संग्रह था बल्कि पूरी दुनिया के लिए सीख भी थी. इस दृष्टिकोण ने भारतीयों के विचारों को पूरी तरह से बदल कर रख दिया था.

Kumar Aditya: Anything which intefares with my social life is no. More than ten years experience in web news blogging.
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