बिहार में पटना स्थित निगरानी की विशेष अदालत ने रिश्वत लेने के पैंतीस वर्ष पुराने मामले में एक दारोगा को एक वर्ष के सश्रम कारावास के साथ दस हजार रुपए जुर्माने की सजा सुनाई।
निगरानी के विशेष न्यायाधीश मोहम्मद रुस्तम ने उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालय के निर्देश पर पुराने मामलों के निष्पादन के क्रम में मामले की सुनवाई की और पटना के दरीगांव थाना के तत्कालीन दारोगा उमेश सिंह को भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम की अलग अलग धाराओं में दोषी करार देने के बाद यह सजा सुनाई है। जुर्माने की राशि अदा नहीं करने पर दोषी को दो माह के कारावास की सजा अलग से भुगतानी होगी।
मामले के विशेष लोक अभियोजक कृष्ण मुरारी ने बताया कि वर्ष 1988 में भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम लागू होने के बाद शुरुआती दिनों में ही इस मुकदमे को दर्ज किया गया था लेकिन मामला विभिन्न कारणों से वर्ष 1990 से लंबित था। उच्चतम न्यायालय के निर्देश पर विशेष अदालत ने इस मामले के निष्पादन के लिए आवश्यक निर्देश दिए, जिसके अनुपालन में इस मामले में 15 अभियोजन साक्षियों का बयान अदालत में कलमबंद करवाया गया। उन्होंने बताया कि निगरानी के अधिकारियों ने 04 फरवरी 1989 को दोषी दारोगा को एक स्थानीय व्यक्ति से उसके खिलाफ दर्ज किए गए मुकदमे में मदद पहुंचाने के एवज में 3000 रुपए की रिश्वत लेते हुए रंगेहाथ गिरफ्तार किया था।