साल 2016 से भागलपुर समेत पूरे बिहार में शराब के सेवन से लेकर बिक्री तक पर प्रतिबंध है। जैसे-जैसे शराबबंदी को अमलीजामा पहनाने के लिए पुलिस एवं प्रशासन कड़ा रुख अख्तियार कर रहा है, वैसे-वैसे शराबी अपनी नशे की आदत को दूसरे मादक पदार्थों की तरफ शिफ्ट कर रहे हैं। यही कारण रहा है कि जिले में शराबियों से ज्यादा ब्राउन शुगर के आदतियों की संख्या बढ़ी है। ये हम नहीं कह रहे हैं बल्कि नशा मुक्ति के लिए बनाये गये केंद्र पर इलाज के लिए आने वाले नशेड़ियों की संख्या इस बात की गवाही दे रही है।
नशेड़ियों की पहली पसंद ब्राउन शुगर, दूसरे नंबर पर नशे में प्रयुक्त होने वाली दवाएं
नशा मुक्ति केंद्र पर इलाज के लिए आने वाले मरीजों का ट्रेंड इस बात की गवाही दे रहा है कि केंद्र पर इलाज में आने वाले हर दस में से छह नशेड़ी ब्राउन शुगर का आदती मिल रहा होता है। वहीं 25 प्रतिशत नशेड़ी, जिन्हें ब्राउन शुगर नहीं मिल पाता है, वे नशे में प्रयुक्त होने वाली दवाओं का इस्तेमाल नशे के रूप में करते हैं।
नशे के रूप में इस्तेमाल होने वाली प्रमुख दवाएं कोडिनयुक्त कफ सीरप और नाइट्रापॉम प्रमुख है। इसके अलावा अल्प्राजोलम, स्पास्मो प्रॉक्सीवान जैसी दवाएं भी नशे के रूप में खूब इस्तेमाल की जा रही है। वहीं 15 प्रतिशत नशेड़ी गांजा, स्मैक, भांग का इस्तेमाल कर रहे होते हैं। शराब के आदती इक्का-दुक्का ही इलाज के लिए आते हैं।
हर सप्ताह 60 मरीज आ रहे, भर्ती होने से कर रहे परहेज
सदर अस्पताल में 20 बेड का नशा मुक्ति केंद्र अप्रैल 2016 से संचालित किया जा रहा है। नशा मुक्ति केंद्र के प्रभारी सह गैर संचारी रोग पदाधिकारी भागलपुर डॉ. पंकज कुमार मनस्वी कहते हैं कि समाज से नशा पूरी तरह से खत्म नहीं हुआ है, लेकिन नशे की आदत जरूर बदली है। ओपीडी में हर सप्ताह औसतन 60 से 70 नशे के आदती अपनी आदत को छुड़ाने के लिए आते हैं। ये नशे से मुक्ति तो चाहते हैं, लेकिन जब इन्हें भर्ती होने की बात कही जाती है तो ज्यादातर भर्ती होने से इंकार कर देते हैं।