खून का रिश्ता कभी खत्म नहीं होता. यह जन्मों जनमांतर तक चलता रहता है. इसका उदाहरण बिहार के छपरा में देखने को मिला. ‘सात समंदर पार‘ से जब एक परिवार 135 साल बाद वेस्टइंडीज से छपरा (बिहार) लौटा तो घर के लोगों में वह खुशी का ठिकाना नहीं रहा.
शताब्दी बाद मिला परिवार: आज ऐसे ही एक परिवार के बारे में चर्चा करेंगे, जिसे ‘खून का रिश्ता’ भारत खींच लाया. शताब्दी बाद अपने परिवार से मिले तो सबकी आंखें नम हो गयी. विदाई के दौरान तो ऐसा लगा कि जैसे कोई सबसे कीमती चीज मिलने के बाद फिर से वापस ले लिया जाता है.
1890 छोड़ा देश: हम बात कर रहे हैं छपरा के जनता बाजार के लश्करी गांव निवासी छटांकी मियां. बात सन 1890 की है. छटांकी मियां वेस्टइंडीज गए थे और वहीं के होके रह गए. वहां की नागरिकता ले ली और कभी भारत नहीं आए. इस बीच छटांकी मियां के बेटे, पोते और परपोते तक हुए. तीन पुश्त बीत गए, लेकिन कोई भारत नहीं आया.
सात समंदर पार पहुंची माटी की खुशबू: शायद चौथी पीढ़ी को अपनी माटी की खुशबू सात समंदर पार मिली. फाजिल जोहार, जो छटांकी मियां के परपोते हैं. इन्होंने भारत में रहने वाले लोगों से संपर्क साधना शुरू किया. यह आसान नहीं था लेकिन मुश्किल भी नहीं. लंबे समय तक संपर्क करने बाद आखिर में पता चल गया कि उनका गांव भारत के किस कोने में है. उन्होंने भारत अपने परिवार के लोगों से मिलने का फैसला किया.
135 साल चौथी पीढ़ी भारत आयी: करीब 135 साल बाद छटांकी मियां की चौथी पीढ़ी फाजिल जोहार अपनी पत्नी मशीन मरीन के साथ भारत पहुंचे. बिहार राज्य सिया वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष सैयद अफजल अब्बास से मुलाकात की. फाजिल जोहार को उस समय सबसे ज्यादा खुशी मिली जब पता चला कि अफजल अब्बास भी उसी गांव के हैं, जहां उनके पूर्वज रहते थे.
परिवार में भव्य स्वागत: इसके बाद फाजिल जोहार और उनकी पत्नी को अफजल अब्बास लेकर गांव पहुंचे. हालांकि तीन पुश्त बीतने के बाद एक दूसरे को पहचानना काफी मुश्किल था लेकिन कहते हैं कि ‘खून का रिश्ता कभी खत्म नहीं होता’. यह बात सच साबित हुई. छपरा में रहने वाले परिवार ने इनका भव्य स्वागत किया.
“अपनी जड़ों की तलाश करके यह परिवार वेस्टइंडीज के टबेगो से भारत आया है. हम लोगों ने उनके परिवार की तरह स्वागत किया है.” -सैयद अफजल अब्बास, अध्यक्ष, बिहार राज्य सिया वक्फ बोर्ड
भाईयों मिलकर हुए भावुक: रिश्ते भाई शौकत और परवेज दोनों ने भाई फाजिल जोहार का स्वागत किया. सभी पूरे गांव का भ्रमण किए. फाजिल जोहार उस घर में भी गए जहां उनके पूर्वज रहा करते थे. सालों पुराना घर जाकर जोहार की आंखें नम हो गयी.
‘मैं वापस आऊंगा’: बता दें कि इस परिवार का गांव में अब कोई नहीं है लेकिन जो बचे हैं उन्होंने दोनों दंपती की खूब खातिरदारी की. सभी से मिल मिलाप के बाद जब विदाई का समय आया तो एक फिर सबकी आंखें नम हो गयी. हालांकि फाजिल जोहर ने अपने भाईयों से वादा किया कि वे फिर आएंगे.
Discover more from Voice Of Bihar
Subscribe to get the latest posts sent to your email.