बिहार के दत्तक ग्रहण संसाधन केंद्र से नि:संतान दंपति द्वारा गोद लिए गए बच्चों में बेटियों की संख्या अधिक है।आमतौर पर देखा जाता है कि ठुकराए गए बच्चों में बच्चियों की संख्या अधिक होती है, लेकिन एडॉप्शन एजेंसी के आंकड़े बताते हैं कि उन बच्चियों को अपनाने वालों की संख्या भी कम नहीं है। आंकड़े यह भी बताते हैं कि अब लोगों में जागरूकता के कारण गोद लेने वाले दंपतियों की संख्या में वृद्धि हुई है।अब लोग भी खुले दिल से बच्चों को अपने जीवन में स्वागत कर रहे हैं।
जिलाधिकारी सुब्रत कुमार सेन ने शुक्रवार को बेंगलुरु के दंपती को विशिष्ट दत्तक ग्रहण संस्थान की बच्ची को गोद दिया। गोद लेने वाले दंपती पेशे से पत्रकार हैं। दंपती ने बताया कि 2020 में कारा (सीएआरए) की वेबसाइट पर रजिस्ट्रेशन करवाया था। मौके पर जिला बाल संरक्षण इकाई की सहायक निदेशक नेहा नूपुर, संस्थान की समन्वयक कुमारी अनुश्री आदि मौजूद रहे।
बच्चे को गोद लेने के लिए ऐसे करें आवेदन
विदेशी दंपतियों के लिए भारतीय बच्चे को गोद लेने के लिए केंद्रीय दत्तक ग्रहण संस्थान प्राधिकरण पर आवेदन करना होता है. जिला बाल संरक्षण इकाई के आंकड़ों पर गौर करें तो वर्ष 2019 में कुल 23 बच्चों को गोद लिया गया. जिनमें 9 लड़के और 14 लड़कियां शामिल थी. इनमें 23 में 16 बच्चों को अपने ही देश में दंपतियों ने गोद लिया जबकि 7 को विदेशी दंपतियों ने गोद लिया. वर्ष 2020 में 22 बच्चों को गोद लिया गया, इनमें 5 लड़के और 17 लड़कियां थी. इनमें 13 को देश के ही दंपतियों ने गोद लिया जबकि दो को विदेशी दंपतियों ने गोद लिया. इसी प्रकार 2022 में अब तक 11 बच्चों को गोद लिया जा चुका है, जिनमें 5 लड़के और 6 लड़कियां शामिल हैं. जिला बाल संरक्षण इकाई के सहायक निदेशक उदय कुमार भी मानते हैं कि गोद लेने की दिलचस्पी बढ़ने से सूनी पड़ी गोद हरी हो जा रही हैं. उन्होंने कहा कि लोगों में इसे लेकर जागरूकता बढ़ी है तथा नियम आसान और पारदर्शी हुए हैं. इधर, समाजशास्त्री विवेक कुमार कहते हैं कि आज की भाग दौड़ की जिंदगी में सभी की व्यस्तता है और सभी पहले अपनी सारी सुविधाओं को पूरा करने में जुटे हैं. उन्होंने कहा कि लोग अब शादी विवाह करने के बजाय लिव-इन रिलेशनशिप में रहना चाहते हैं, जिससे लोग बच्चे को पैदा करने की जो जिम्मेदारी होती है, उसे नहीं उठाना चाहते हैं.