स्वतंत्रता आंदोलन में अग्रणी रहे थे सारण के लाल वीर सपूतों के शौर्य, त्याग और बलिदान से लिखी गई है आजादी की अमर गाथा

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छपरा: देश को ब्रिटिश हुकूमत की गुलामी की बेड़ियों से मुक्ति दिलाने के लिए हुए संघर्ष में सारण के सपूतों ने भी अग्रणी भूमिका निभाई थी। देश की आजादी के लिए सारण जिले के वाशिंदो ने 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के पूर्व ही अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ विद्रोह का बिगुल बजा दिया था। सारण में प्रथम स्वतंत्रता आंदोलन के पूर्व1775 से 1785तक हुए बगावत की इस जंग की कमान हुस्सेपुर के युवराज फतेशाही के हाथों में थी।दस वर्षों तक चली बगावत के बाद फतेशाही भूमिगत हो गए और ये हिंसक क्रांति कुंद पड़ गई लेकिन सारण के वाशिंदो ने आजादी पाने की आग को कभी अपने अंदर ठंडा नहीं होने दिया।

जिसके बाद सारण के वाशिंदो ने देश को आजादी दिलाने के लिए हुए 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में वीर कुंवर सिंह के साथ कंधे से कन्धा मिलाकर स्वंतत्रता आन्दोलन में कूद पड़े 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के बाद भी सारण वासियों ने आजादी की धधकती ज्वाला को कम नहीं पड़ने दिया एवं महात्मा गांधी के नेतृत्व में चलाए गए असहयोग आन्दोलन, सविनय अवज्ञा आंदोलन, भारत छोड़ो आंदोलन सहित हुए अन्य आंदोलनों में सारण के सपूतों ने बढ़चढकर हिस्सा लिया एवं भारत माता की आजादी के लिए हंसते हंसते अपने प्राण न्यौछावर कर दिए।1920-21 में महात्मा गांधी द्वारा चलाए गए असहयोग आंदोलन के दौरान महात्मा गांधी मौलाना शौकत अली के साथ छपरा पहुंचे एवं छपरा स्थित विश्वेश्वर सेमिनरी स्कूल में आयोजित जनसभा में उन्होंने ब्रिटिश सरकार के खिलाफ एकजुट होने का आह्वान किया।

जिसके फलस्वरूप सारण जिले के बुद्धिजीवी,छात्र, व्यापारी, नौजवान,कृषक सहित सभी वर्गों के लोग एकजुट होकर अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ मोर्चा खोल दिया।इसी तरह सविनय अवज्ञा आंदोलन के दौरान भी सारण जिले में महापंडित राहुल सांकृत्यायन, के नेतृत्व में प्रभुनाथ सिंह, पंडित गिरीश तिवारी, डॉ राजेन्द्र प्रसाद के अग्रज महेंद्र प्रसाद की अगुवाई में सारण जिले के वाशिंदो अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ होकर आजादी के सुर में सुर मिलाने लगे।

वहीं 1942 में शुरू हुआ भारत छोड़ो आंदोलन में भी सारण जिले के सपूतों ने मातृभूमि के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर कर ब्रिटिश हुकूमत की जड़ें हिला दी इसी क्रम में सारण जिले के मलखाचक निवासी रामविनोद सिंह एवं उनके साथियों के क्रांतिकारी कार्यो के लिए मलखाचक को आजदी के समय क्रांतिकारियों का स्वर्ग कहा जाता था। आजादी के इस आंदोलन में जिले के पहले शहीद राम देवी सिंह हुए । जिन्हें अंग्रेजों ने फांसी दी थी।

इनके अलावा भी भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को जीवंतता प्रदान करने के लिए सारण की धरती के सपूत मांझी निवासी दलन सिंह, इसुआपुर के डोईला गांव निवासी यमुनानंदन प्रसाद, द्वारिका प्रसाद,मधु राय सहित अनेक वीर सपूतों के त्याग, शौर्य एवं बलिदान से आजादी की अमर गाथा लिखी गई है।

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